*हाथ में उठी सड़क, रेत की तरह भरभरा कर गिरी, घटिया निर्माण की भेंट चढ़ी…- भारत संपर्क

जशपुरनगर। प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाभियान के तहत करनपुर में बन रही 3.3 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कार्य पूरी तरह सवालों के घेरे में है। लगभग 238 लाख रुपये की लागत से बन रही इस सड़क में शुरुआत में ही जगह-जगह से क्रैक (दरार) आ गया है और बीच-बीच से डामरीकरण की परत उखड़ कर बिखर गई है, जो साफ दर्शाता है कि निर्माण कार्य में गुणवत्ता को ताक पर रख दिया गया है।
गांववालों की शिकायत पर जब हमारी टीम मौके पर पहुंची, तो नजारा हैरान कर देने वाला था। कई जगहों पर सड़क की डामर परत पूरी तरह टूट चुकी थी और सड़क के बीचोंबीच दरारें साफ नजर आ रही थीं। हद तो तब हो गई जब टीम ने सड़क के बीच से एक टुकड़ा उठाया, जो हाथ में आते ही बालू की रेत की तरह भरभरा कर गिर गया। यह सब इस बात का सबूत था कि निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग हुआ है।
*ईई ने दिया ये जवाब*
जब इस मामले में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के EE एस. एन. साय से बात की गई, तो उन्होंने कार्ययोजना पर ही सवाल उठाते हुए कहा,
“इस कार्य के लिए स्वीकृत राशि में कटौती की गई है। इतने कम बजट में कितनी अच्छी सड़क बन सकती है? अभी निर्माण अधूरा है, बरसात के बाद मरम्मत करा दी जाएगी।” EE का यह बयान न केवल गैरजिम्मेदाराना है, बल्कि यह खुद सिस्टम की गंभीर खामियों की स्वीकारोक्ति भी है। क्या अब सरकारें अधूरी और कमजोर सड़कें बनाकर बाद में “मरम्मत” का झुनझुना पकड़ा देंगी?
*जनप्रतिनिधि भी उठा रहे सवाल*
इस मामले को अब जनप्रतिनिधि भी गंभीरता से उठाने लगे हैं।
सन्ना क्षेत्र के जनपद सदस्य राकेश गुप्ता ने हाल ही में जशपुर कलेक्टर रोहित व्यास को पत्र लिखकर जनमन योजना के तहत हो रहे सड़क निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए हैं और जांच की मांग की है।
यह सवाल भी अब ज़रूरी हो गया है कि जब कलेक्टर खुद हर समीक्षा बैठक में निर्माण कार्यों को गुणवत्तापूर्ण करने के निर्देश दे रहे हैं, तो फिर ज़मीनी स्तर पर यह लापरवाही क्यों और कैसे हो रही है? क्या विभागीय अधिकारी कलेक्टर के निर्देशों को नजरअंदाज कर रहे हैं, या फिर मिलीभगत से पूरे सिस्टम को गुमराह किया जा रहा है?
*ग्रामीणों ने की जांच और कार्रवाई की मांग*
ग्रामीणों ने निर्माण कार्य की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। वे यह भी कह रहे हैं कि यह सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की ढिलाई और जवाबदेही की पोल खोलती तस्वीर है।