17 साल से कर रहे नौकरी, महज 12-13 हजार रुपए मिल रहा…- भारत संपर्क
17 साल से कर रहे नौकरी, महज 12-13 हजार रुपए मिल रहा वेतन,मजदूरों ने प्रबंधन के खिलाफ खोला मोर्चा, किया प्रदर्शन
कोरबा। देव शिल्पी मजदूर कल्याण समिति के बैनर तले एनटीपीसी सीपत बिलासपुर के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों ने प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मजदूरों ने शोषण का आरोप लगाते हुए कलेक्टोरेट के सामने प्रदर्शन किया और वेतन वृद्वि सहित अन्य मांगों को लेकर प्रशासन को ज्ञापन सौंपा।
मजदूरों का कहना है कि पिछले 17 साल से रेलवे प्लेटफार्म, यार्ड, गेट मैन सहित अन्य जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इसके बावजूद 12-13 हजार रुपए मासिक वेतन दिया जा रहा है, इस काम में 400 से अधिक मजदूर कार्यरत हैं। समिति ने चेतावनी दी है कि मांगे पूरी नहीं हुई तो 3 सितम्बर से रेलवे लाइन जाम कर आंदोलन करेंगे। रेल रोको आंदोलन कर कोल रेलवे साइड से मालगाड़ी की आवाजाही बंद करेंगे। इस स्थिति के लिए पूरी जिम्मेदारी एनटीपीसी सीपत प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन की होगी। समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि शासन-प्रशासन और एनटीपीसी प्रबंधन से बार-बार आग्रह के बावजूद मजदूरी दर संशोधित नहीं किया जा रहा है। इसे लेकर ठेका मजदूरों में नाराजगी है और वह 28 अगस्त से आंदोलन, धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि, 17 साल से वेतन नहीं बढाया गया है। विरोध करने पर काम से निकालने की धमकी दी जाती है। किसी तरह घिसी पिटी जिंदगी जी रहे हैं, कर्ज लेकर अपना घर चला रहे हैं। हमें कम से कम 25 से 30 हजार का वेतन मिलना चाहिए। केंद्र से तय दर पर मजदूरी मिलना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. मजदूरों को न मेडिकल सुविधा मिल रही है, और न ही उनका किसी तरह का कार्ड बना है। मजदूरों के साथ कोई दुर्घटना हो जाए तो कोई राहत या मुआवजा भी नहीं मिलता है। दीपका साइलो से सीपत तक रेलवे लाइन पर काम करने वाले मजदूरों का लंबे समय से शोषण हो रहा है। 400 से अधिक ठेका मजदूर कार्यरत हैं जिनमें से अधिकांश भू-विस्थापित है। मजूदरों को तय दर पर मजदूरी नहीं दी जा रही है। जब उनकी जमीन ली गई थी तब उन्हें कहा गया था कि एनटीपीसी में नौकरी देंगे, लेकिन अब हमें ठेका मजदूर बना दिया गया है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि, मजदूरी बढ़ाने की मांग पर एनटीपीसी द्वारा कहा जाता है कि मजदूरी बढ़ाना केंद्र सरकार का काम है। जब उनकी जमीन ली गई थी तब तो एनटीपीसी ने ली थी। केंद्र सरकार उनकी जमीन लेने नहीं आई थी।