अभी 1500 करोड़ खर्च करके दे रहीं भर-भर डिस्काउंट, क्या जल्द वसूली शुरू करेंगी… – भारत संपर्क


कैश बर्न हुआ 1500 करोड़ तक
देश में क्विक कॉमर्स एक तेजी से उभरता सेगमेंट है. इस काम में लगी 3 प्रमुख कंपनी BlinkIt, Instamart और Zepto तेजी से अपना विस्तार कर रही हैं और देश के छोटे शहरों तक भी अपनी पहुंच बना रही हैं. इसके लिए वह कस्टमर्स को भर-भर कर डिस्काउंट दे रही हैं और कैश बर्न कर रही हैं. क्या ये इशारा है कि जल्द ही ये कंपनियां डिस्काउंट पर किए जाने वाले खर्च की ग्राहकों से वसूली शुरू कर देंगी, क्योंकि कंपनियों का कैश बर्न 1,500 करोड़ रुपए तक जा चुका है.
जी हां, देश की प्रमुख क्विक कॉमर्स कंपनी जोमेटो की ब्लिंकइट और स्विगी इंस्टामार्ट के साथ-साथ जेप्टो का हर महीने का कैश बर्न 1,300 करोड़ से 1,500 करोड़ रुपए तक जा चुका है. इसमें जोमेटो और स्विगी, ये दोनों तो शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनी हैं.
कैश बर्न के लिए उठाई है भारी फंडिंग
ईटी की खबर के मुताबिक मार्केट में कॉम्प्टीशन और कस्टमर एक्विजिशन के लिए इन तीनों ही कंपनी ने भारी फंड उठाया है. ब्लिंकइट, इंस्टामार्ट और जेप्टो ने करीब 3 अरब डॉलर की फंड रेजिंग की है. इसमें जेप्टो का आईपीओ इसी साल आने की संभावना है. बड़ी बात ये है कि इस कैश बर्न की वजह से इन कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी पर पड़ रहा है जिसका असर जोमेटो और स्विगी के शेयर प्राइस पर भी दिख रहा है.
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कैश बर्न, असल में कंपनियों द्वारा कस्टमर एक्विजिशन, मार्केटिंग, ग्रोथ को मेंटेन करने के लिए किया जाने वाला खर्च होता है. ये खर्च कंपनियां आम तौर पर ग्राहकों की आदत में बदलाव लाने और खुद के प्रॉफिट में आने तक के लिए करती हैं.
जेप्टो को हुआ कैश बर्न का फायदा
जेप्टो इस सेगमेंट की सबसे नई कंपनी है. उसने तेजी से अपना कैश बर्न किया है. इसका फायदा भी उसे मिलता दिख रहा है. BofA रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक जेप्टो के मंथली एक्टिव यूजर की संख्या अब 4.3 करोड़ हो गई है. कंपनी ने इस मामले में ब्लिंकइट को पीछे छोड़ दिया है, जिसके मंथली एक्टिव यूजर की संख्या 3.9 करोड़ रह गई है.
क्विक कॉमर्स सेगमेंट में बिग बास्केट नाउ, फ्लिपकार्ट मिनट्स और अमेजन नाउ के साथ-साथ मिंत्रा नाउ भी उतर आई हैं. कंपनियों के मंथली कैश बर्न में इन कंपनियों द्वारा किया जा रहा खर्च भी शामिल है.
क्या जल्द होगी वसूली शुरू?
पहले भी ये देखा गया है कि ई-कॉमर्स और फूड डिलीवरी कंपनियों ने लोगों की आदत बदलने के लिए पहले भारी डिस्काउंट दिए. कैश बर्न करके ऑफर्स, फ्री डिलीवरी और कैश बैक भी दिया. उसके बाद जब कंपनियां शेयर मार्केट में लिस्ट हुईं, तो प्रॉफिटेबिलिटी और परफॉर्मेंस उनके लिए बड़ा सवाल बन गया. इससे निपटने के लिए कंपनियों ने प्लेटफॉर्म फीस, डिलीवरी फीस और सब्सक्रिप्शन फीस जैसे विकल्प अपनाने शुरू कर दिए.