ईरान-इजराइल और महंगा होता कच्चा तेल, क्या भारत पहले भी हो…- भारत संपर्क

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ईरान-इजराइल और महंगा होता कच्चा तेल, क्या भारत पहले भी हो…- भारत संपर्क

ईरान-इजराइल वॉर में अमेरिका का कूदना कई देशों के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है. उसका कारण भी है. इसकी वजह से मिडिल ईस्ट की टेंशन में इजाफा होगा और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी देखने को मिलेगी. इस तेजी का असर दुनिया के उन देशों की इकोनॉमी पर देखने को मिलेगा जो कच्चे तेल के लिए सिर्फ इंपोर्ट पर ही निर्भर हैं. जैसे कि भारत इसका सबसे बेहतरीन और बड़ा उदाहरण है. जब जब भी इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा देखने को मिलता है. उसकी वजह से देश में महंगाई बढ़ती है. भारत के इंपोर्ट बिल में इजाफा होता है. भारत के खजाने पर असर देखने को मिलता है. रुपए में गिरावट देखने को मिलती है. इन सबसे और भी बड़ा नुकसान जीडीपी को होता है.

अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत कच्चे तेल की महंगाई को झेल पाएगा? इस सवाल के जवाब के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटने की जरुरत है. जब 2008 में इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों 140 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर गई थीं. तब देश की इकोनॉमी को किस तरह का नुकसान उठाना पड़ा था. तब तत्कालिक सरकार ने इकोनॉमी को कैसे संभाला था? आइए उस समय के आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं…

करीब दो सप्ताह पहले इजरायल और ईरान के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद से कच्चे तेल की कीमत में 14 से 15 फीसदी का उछाल देखने को मिल चुका है. ईरान, जो एक प्रमुख तेल उत्पादक है, से सप्लाई गंभीर रूप से बाधित हो सकती है. अब ईरान ने होमुर्ज स्ट्रेट को बंद करने का भी ऐलान कर दिया है. ऐसे में कच्चे तेल की कीमतें और भी ज्यादा हाई लेवल पर पहुंच सकती है. ऐसे में भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा? क्या भारत की इकोनॉमी इस महंगाई को झेल पाएगी? ऐसे तमाम सवाल उभरकर सामने आ गए हैं. इसे समझने के लिए हमें करीब दो दशक पीछे जाना होगा.

Wti Crude Oil 20 Year Chart

2008 में पीक पर पहुंचे थे क्रूड ऑयल के दाम

भारत अपने कच्चे तेल का करीब 90 फीसदी आयात करता है, जिसका मतलब है कि यह तेल की ऊंची कीमतों के प्रति संवेदनशील है. लेकिन क्या तेल की कीमतें वाकई इतनी अधिक हैं? हाल ही में हुई बढ़ोतरी के बावजूद, तेल की कीमतें हिस्टोरिकल स्टैंडर्ड के हिसाब से कम बनी हुई हैं. पिछले दो दशकों में कच्चे तेल की कीमतें कितनी रही हैं उसका चार्ट यहां पर दिया गया है.

कच्चे तेल की कीमतें 2008 में चरम पर थीं, जब कीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं. उन दिनों, पूर्वानुमान लगाने वाले लोग 200 डॉलर के तेल की भविष्यवाणी कर रहे थे, जो कभी साकार नहीं हुआ. मौजूदा समय में कच्चे तेल की कीमतों 75 से 80 डॉलर प्रति बैरल के बीच हैं. इसका मतलब है कि करीब 17 साल पहले के मुकाबले कच्चे तेल के मौजूदा दाम करीब आधे हैं.

Brent Crude Oil 20 Year Chart

लेकिन यह चार्ट यह नहीं बताता कि आज कीमतें कितनी कम हैं. यहां एक और चार्ट दिया गया है, यह तेल की रुपए में वास्तविक कीमत है. इसका मतलब है कि इसे महंगाई के हिसाब से समायोजित किया गया है. वास्तविक रूप में, आज तेल की कीमत 2008 के अपने उच्चतम स्तर से 66 फीसदी कम है. यदि तेल की कीमतें और भी बढ़ती हैं, तो भी 2008 के स्तर के आसपास पहुंचने में हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है. वैसे कुछ जानकारों का कहना है कि होमुर्ज के बंद होने से क्रूड ऑयल के दाम 110 से 120 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच सकते हैं.

17 साल पहले जीडीपी पर क्या पड़ा था असर

2008 में, जीडीपी ग्रोथ रेट 7 फीसदी और 8 फीसदी के बीच के सामान्य लेवल की तुलना में 3.1 फीसदी तक गिर गई. हालांकि तेल की कीमतें की वजह से ही जीडीपी की ग्रोथ नीचे नहीं आई थी, लेकिन ये एक प्रमुख वजह थी. पिछली बार जब 2011-12 में तेल की कीमतें अधिक थीं, तो जीडीपी वृद्धि 5.2 फीसदी तक गिर गई थी, जो कि सामान्य स्तर 7 फीसदी और 8 फीसदी के बीच थी. हाल के वर्षों में, तेल की कीमतें कम रही हैं, और जीडीपी ग्रोथ मजबूत रही है. कोविड-19 महामारी के दौर को छोड़ दिया जाए तो जीडीपी ग्रोथ लगातार 7 फीसदी से ऊपर रही है.

India Crude Oil 20 Year Chart

कितनी थी महंगाई

अगर बात महंगाई के मोर्चे पर करें तो कच्चे तेल की कीमतों की वजह से देश में मंहगाई बढ़ती है. 2008 और 2012 के बीच, औसत सालाना महंगाई दर 9.9 फीसदी थी. उसके बाद से अब तक औसत सालाना महंगाई दर 5.5 फीसदी देखने को मिलती है. अगर बात मई 2025 की करें तो देश में महंगाई मल्टी ईयर लो पर देखने को मिल रही है. स्पष्ट रूप से, तेल की कीमतें महंगाई को प्रभावित करती हैं, क्योंकि कॉस्ट के भार को कंज्यूमर के कंधे पर डाला जाता है. लेकिन आज तेल की कीमतें पहले जितनी अधिक नहीं हैं. जिसका अर्थ है कि हाल की भू-राजनीतिक घटनाओं से इकोनॉमी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है. तेल की कीमतों पर फिजिकल प्रभाव पड़ने से पहले कीमतों को बहुत अधिक बढ़ना होगा.

आज तेल की कीमतें इतनी कम क्यों हैं?

केडिया एडवाइजरी के हेड अजय केडिया के अनुसार मौजूदा समय में क्रूड ऑयल की कीमतों में कमी का मुख्य कारण यूएस ऑयल प्रोडक्शन में इजाफा है. अमेरिका ने साल 2012 से अब अपने ऑयल प्रोडक्शन को दोगुना कर दिया है. मौजूदा समय में अमेरिका दुनिया के टॉप ऑयल प्रोड्यूसर्स में से एक बना हुआ है. जिसकी वजह से मिडिल ईस्ट की टेंशन की वजह से तेल की कीमतों में इजाफे के बाद भी ग्लोबल इकोनॉमी पर इतना असर देखने को नहीं मिलेगा. जितना पहले देखने को मिला था. जोकि ​काफी अच्छी खबर है. अब देखने वाली बात होगी कि क्या इतिहास एक बार फिर से अपने आपको दोहराएगा या फिर इतिहास बदलने का वक्त आ गया है.

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