ईरान इजरायल का युद्ध या भारत में चुनाव, शेयर बाजार से क्यों…- भारत संपर्क

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ईरान इजरायल का युद्ध या भारत में चुनाव, शेयर बाजार से क्यों…- भारत संपर्क
ईरान-इजरायल का युद्ध या भारत में चुनाव, शेयर बाजार से क्यों विदेशियों का हो रहा मोहभंग?

शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे विदेशी

भारत के शेयर बाजार को लंबे समय तक ग्रोथ देने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FIIs) इस समय तेजी से अपना पैसा निकाल रहे हैं.क्या इसके पीछे ईरान-इजराइल का युद्ध है या भारत में लोकसभा चुनाव के परिणामों को लेकर विदेशी निवेशक सशंकित हैं? चलिए समझते हैं…

अगर आंकड़ों को देखें, तो सिर्फ बीते 4 दिन में ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 20,000 करोड़ रुपए से अधिक की निकासी की है. लेकिन एफआईआई के लिए असली सरदर्दी बॉन्ड यील्ड्स (बॉन्ड से कमाई) का बढ़ना है. इसी बीच भारत और मॉरीशस ने आपस में डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस समझौता भी किया है.

शेयर मार्केट पर पूरे हफ्ते रहा दबाव

इस हफ्ते अगर शेयर मार्केट की चाल देखें तो सेंसेक्स और निफ्टी दोनों पर भारी दबाव देखा गया है. शुक्रवार को सेंसेक्स और निफ्टी भले बढ़त के साथ बंद हुए हों, लेकिन कहीं ना कहीं दोनों पर दबाव ही रहा. सेंसेक्स अब भी अपने ऑल टाइम हाई से करीब 1500 अंक नीचे बना हुआ है. हालांकि ओवरऑल 5 दिन के हफ्ते में सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही 2 प्रतिशत से ज्यादा टूटे हैं.

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विदेशी निवेशकों का क्यों हो रहा मोहभंग?

विदेशी निवेशकों के भारतीय शेयर बाजार से हाथ खींचने की कोई एक वजह नहीं है. इसके पीछे कई कारण हैं जैसे भारत के साथ-साथ इस समय दुनिया के कई कच्चा तेल आयातकों के लिए क्रूड ऑयल की कीमतों का बड़ी परेशानी बना हुआ होना. कच्चे तेल की कीमतें भारत जैसे तेल इंपोर्टर देशों की इकोनॉमी पर बड़ा असर डालती हैं.

तेल के संकट को ईरान और इजराइल का युद्ध और बड़ा कर रहा है, क्योंकि ईरान ओपेक देशों में शामिल तीसरा सबसे बड़ा क्रूड ऑयल प्रोड्यूसर है. वहीं हूती के हमलों ने कच्चे तेल की आवाजाही की लागत बढ़ाई है. इसलिए सऊदी अरब की रिफाइनरीज ने फारस की खाड़ी से तेल का निर्यात कम कर दिया है.

भारत के लिए ये संकट इसलिए और बड़ा है क्योंकि वह ईरान और इजराइल दोनों का ही मित्र है. वह किसी एक का पक्ष नहीं ले सकता है. ऐसे में उसकी इकोनॉमी पर तब ही असर पड़ेगा जब तेल की कीमतें एक लेवल से ज्यादा बढ़ जाएंगी. अभी 2024 में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत में 14 प्रतिशत तक का उछाल देखा जा चुका है और ये करीब 88 से 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है.

इस बीच बॉन्ड मार्केट में भी अनोखा ट्रेंड देखा गया है. अमेरिका में 10 साल की यूएस ट्रेजरी यील्ड 4.55 प्रतिशत रही है. हालांकि भारत में 10 साल का बॉन्ड यील्ड 7.22 प्रतिशत की ऊंचाई तक जा चुका है. अमेरिका का फेडरल रिजर्व बैंक अभी ब्याज दरों में कटौती को लेकर जल्दबाजी में नहीं है. वहीं भारत में भी ब्याज दरों में कटौती इसी पर निर्भर करने वाली है. इसलिए भी एफआईआई के बीच मार्केट में ग्रोथ को लेकर संशय बना हुआ है.

इधर भारत में लोकसभा चुनाव के बाद अगली सरकार का गठन होगा. यहां पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदा सरकार अपनी वापसी की उम्मीद के साथ चुनाव में उतरी है, तो वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रहा है. एफआईआई इस घटनाक्रम को देखते हुए और चुनाव परिणामों को लेकर हल्की शंका के साथ काफी सोच समझकर मार्केट में अपने दावं लगा रहे हैं.

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