ईरान इजराइल की टेंशन हुई फेल, ‘शतक’ नहीं लगाएगा कच्चा तेल! |…- भारत संपर्क

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ईरान इजराइल की टेंशन हुई फेल, ‘शतक’ नहीं लगाएगा कच्चा तेल! |…- भारत संपर्क
ईरान-इजराइल की टेंशन हुई फेल, 'शतक' नहीं लगाएगा कच्चा तेल!

जियो पॉलिटिकल टेंशन के बीच कच्‍चे तेल की कीमत में 4;25 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है.

मिडिल ईस्ट की टेंशन यानी ईरान और इजराइल के बीच जिस तरह की टेंशन देखने को मिली. उससे यही अनुमान लगाया जा रहा था कि कच्चे तेल के दाम में 5 से 10 डॉलर प्रति बैरल का इजाफा देखने को मिल सकता है. इसका मतलब है कि कच्चे तेल की कीमत एक बार फिर से 100 डॉलर प्रति बैरल देखने को मिलेगी. लेकिन इस टेंशन को करीब दो हफ्ते हो चुके हैं और कीमतों में इस दौरान 4.25 फीसदी की गिरावट देखने को मिल चुकी है.

ऐसा नहीं है कि जब ईरान ने इजराइल पर हमला किया तो उसका असर देखने को नहीं मिला. साथ ही कुछ दिन पहले जब इजराइल ने ईरान पर हमला किया था तो कीमतों में 3 फीसदी तक बढ़ गईं थी. लेकिन बाजार बंद होने तक यही तेजी 1 फीसदी से भी नीचे चली गई थी. तब ईरान ने इजरायल के हमले पर ज्यादा रिएक्ट करने की जरुरत नहीं समझी. साथ ही ईरान ने ये भी इशारा किया था कि वह इसका कोई जवाब नहीं देगा. ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल की सारी संभावनाएं खत्म हो गईं.

अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ईरान और इजराइल के बीच की टेंशन से कच्चे तेल की कीमत में कोई असर देखने को नहीं मिलेगा? क्या इस टेंशन को क्रूड ऑयल मार्केट ने हजम कर लिया है? क्या इस टेंशन से निपटने के लिए मार्केट में पर्याप्त ऑयल है? इस तरह के और भी कई सवाल खड़े हो गए हैं, जिनके जवाबों में इस बात को समझने में मदद मिलेगी कि क्या वाकई दोनों देशों के बीच की टेंशन कच्चे तेल के दाम में इजाफा करने में फेल हो गई?

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क्या 10 डॉलर का रिस्क फैक्टर?

जब इजराइल और हमास के बीच वॉर शुरू हुई थी तो इसमें कोई ऑयल सप्लायर देश शामिल नहीं था. सितंबर महीने के आंकड़ों को उठाकर देखें तो कच्चे तेल की कीमत इस वॉर के दौरान करीब ढाई हफ्तों तक 90 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर देखने को मिली. कुछ कारोबारी दिनों में तो कीमतें 95 डॉलर प्रति बैरल के पार चली गई. उसके बाद कच्चे तेल के दाम अपने आप नीचे आए. क्योंकि बाजार ने इस वॉर को डायजस्ट किया. इसका एक और कारण ये भी था कि मिडिल ईस्ट का दूसरा कोई देश सीधे वॉर में नहीं था. ना ही ऑयल सप्लाई में किसी तरह की परेशानी थी.

इस बार ओपेक का तीसरा सबसे बड़ा सप्लायर ईरान सामने था. जिसकी वजह से कच्चे तेल पर रिस्क फैक्टर ज्यादा था. जब ईरान ने इजराइल पर हमला किया और दोनों देशों के बीच तनातनी बढ़ गई तो दुनियाभर के जानकारों को इस बात का अनुमान लगाना शुरू कर दिया था कि कच्चे तेल की कीमतों में करीब 10 डॉलर प्रति बैरल का इजाफा होगा और दाम फिर से 100 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच जाएंगे. क्योंकि ईरान का तेल डिस्टर्ब होता तो मुश्किलें बाजार में ज्यादा खड़ी हो सकती थीं.

क्यों नहीं बढ़ रही हैं कीमतें

जानकारों का मानना ​​है कि जब तक मिडिल ईस्ट से ऑयल प्रोडक्शन और ऑयल एक्सपोर्ट के लिए सीधे खतरे सामने नहीं आते, बाजार में कम ईरानी तेल सप्लाई को एब्जॉर्ब करने की पूरी क्षमता है. फिर चाहे वह कड़े अमेरिकी प्रतिबंध हों या ईरानी ऑयल प्रोडक्शन में कुछ व्यवधान से हो. कथित इजरायली मिसाइल हमले ने तनाव की आशंकाओं को फिर से जन्म दिया है, लेकिन अभी तक, मिडिल ईस्ट से किसी भी तेल सप्लाई को सीधे तौर पर खतरा नहीं हुआ है.

इसके अलावा, बाजार अभी ऐसी स्थिति में है कि तेल की अतिरिक्त क्षमता बीते कुछ सालों में सबसे ज्यादा है. इस महीने कमर्शियल स्टॉक में तेजी देखने को मिली है. जोकि जियो पॉलिटिकल रिस्क की भरपाई करने में जुटा हुआ है. विश्लेषकों का अनुमान है कि ओपेक+, जो एक बार फिर से ऑयल मार्केट को कंट्रोल कर रहा है, लगभग 5 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) तेल उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता पर बैठा है.

जिसे बाजारों में गंभीर तंगी की स्थिति में धीरे-धीरे फ्लोट किया जा सकता है ताकि कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार ना जाएं. 2009 की मंदी के बाद से ओपेक में यह सबसे अधिक अतिरिक्त क्षमता है. बीच में 2020 में महामारी के दौरान डिमांड कम होने के कारण ओपेक ने 10 मिलियन प्रति दिन बैरल सप्लाई को जरूर होल्ड बैक किया था.

मिडिल ईस्ट की टेंशन में सबसे बड़ा खतरा स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करना है. जिससे होकर मिडिल ईस्ट के सभी टैंकर होकर गुजरते हैं. अगर ऐसी स्थिति आती है तो ओपेक प्लस 2 मिलियन प्रति बैरल सप्लाई को बढ़ाने का काम ​कर सकता है, जिसे उन्होंने अभी होल्ड किया हुआ है.

जानकारों की मानें तो होर्मुज स्ट्रेट पर संकट आने की संभावना काफी कम है. जेपी मॉर्गन ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि तेल की कीमतें आने वाले महीनों में जियो पॉलिटिकल टेंशन की वतह से बढ़ सकती हैं. लेकिन दाम 90 डॉलर प्रति बैरल से 2022 के हाई 125 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी होगी.

अमेरिकी इंवेंटरीज में इजाफा

दूसरी ओर अमेरिकी बढ़ती इंवेंटरीज भी कच्चे तेल की कीमतों को कम करने में मददगार साबित होती हैं. जबकि अमेरिकी कमर्शियल स्टॉक मौजूदा समय में बीते 5 साल के एवरेज स्टॉक से कम है. 5 अप्रैल तक अमेरिकी इन्वेंट्री बिल्ड और इन्वेंट्री ग्रोथ 5.8 मिलियन बैरल शामिल था. जबकि बीते हफ्ते में यह आंकड़ा 2.7 मिलियन बैरल देखने को मिला था. सैक्सो बैंक ने गुरुवार को कहा था कि अमेरिकी कच्चे तेल का स्टॉक दस महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है, जिससे मांग के मौजूदा स्तर के बारे में कुछ संदेह पैदा हो रहा है.

ओपेक प्लस की बढ़ती कैपेसिटी, प्रमुख बाजारों में हालिया स्टॉक बिल्ड, और इस साल नॉन -ओपेक प्लस प्रोडक्शन में इजाफा मिडिल ईस्ट टेंशन के असर को कम करने में अभी तक कामयाब रही है और आने वाले दिनों में भी असर दिखा सकती है. मतलब साफ है कि कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंचने की संभावना कम ही है.

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