मिथिला पेंटिंग की चचेरी बहन सुजनी कला को जानिए, जिसमें पहली बार निर्मला…
निर्मला देवी. (फाइल फोटो)
बिहार के मुजफ्फरपुर के निर्मला देवी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. निर्मला देवी को सुजनी कला के लिए यह पुरस्कार दिया गया है. निर्मला देवी ने 1988 में सुजनी कला पर काम शुरू कीं. बाद में उन्होंने इस कला में जान फूंकने का काम किया. बता दें कि निर्मला देवी मुजफ्फरपुर के भूसरा की रहने वाली हैं.
सुजनी कला से वर्तमान में बिहार के 600 लोग जुड़े हैं, जो इस पेंटिंग को देश-दुनिया तक पहुंचा रहे है. मुजफ्फरपुर और मधुबनी के आसपास इस पेंटिंग के काम से कई संगठन भी जुड़े हुए हैं.
सुजनी कला में सुई से पेंटिंग का काम
सुजनी कला को मिथिला पेंटिंग का चचेरी बहन भी कहा जाता है. दरअसल, इस पेंटिंग में भी वस्तु मिथिला पेंटिंग की तरह ही होता है. हालांकि, इस पेंटिंग को करने का तरीका अलग होता है. सुजनी कला में सुई के जरिए पेंटिंग किया जाता है. इस पेंटिंग को पहले पुराने कपड़े पर किया जाता था. वर्तमान में यह इतना प्रचलित है कि अब नए कपड़े पर भी इसे किया जाता है.
18वीं शताब्दी के आसपास प्रचलित
सुजनी कला का 18वीं शताब्दी के आसपास प्रचलित हुआ था. उस वक्त महिलाएं अपने बच्चों के जन्म पर इसे तैयार करती थीं. 1988 के बाद इसे फिर से जीवित किया गया. सुजनी कला में कलाकार कपड़े पर सीधे सुई चलाते हुए अपना चित्र तैयार करता है. इस पेंटिंग में बार चित्र उकेरने के बाद दोबारा इस बात की गुंजाइश कम हो जाती है कि फिर से हूबहू चित्र ही तैयार हो. पुराने जमाने में इस पेंटिंग को जमींदारों की बहुएं ही तैयार करती थीं. यह पेंटिंग उनके लिए वक्त काटने और घरों के साज-ओ-सज्जा का भी एक जरिया था.
सुजनी कला में कैसे काम करते हैं कलाकार
वहीं कच्चा माल और चित्र फाइनल करने के बाद इस पर काम शुरू किया जाता है. इसे तैयार करने के लिए सुई, फ्रेम, कैंची, इंच टेप, ट्रेसिंग शीट, ट्रेसिंग व्हील, पेंसिल, रबर, नीली चाक और केरोसिन की जरूरत होती है. चित्र तैयार होने के बाद काले या भूरे रंग के धागों का उपयोग रूपांकनों की रूपरेखा बनाने के लिए किया जाता है और रूपांकनों में रंग भरने के लिए रंगीन धागों का उपयोग किया जाता है. सुजनी कढ़ाई के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़ा महीन मलमल से बना होना जरूरी है.