Jaane bachhon me badhte liver disease ka khatra. – जानें बच्चों में बढ़ते…
लिवर संबंधी समस्याओं का खतरा अब बच्चों में भी बढ़ता जा रहा है। बच्चों के अंग काफी नाजुक होते हैं। इनकी सेहत में जरा सी भी लापरवाही भारी पड़ सकती है। इसलिए सतर्क और जागरुक रहना सबसे ज्यादा जरूरी है।
लिवर हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह न्यूट्रिएंट्स और दवाइयों को तोड़ देता है, ताकि शरीर उन्हें आसानी से अवशोषित कर सके। ये बॉडी को डिटॉक्स करने में भी मदद करता है। आज के समय में कई प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है, ठीक उसी प्रकार लिवर स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रही है। फैटी लिवर, लिवर डैमेज, लिवर फैलियर, सहित लिवर संबंधी समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। जिससे कम उम्र के लोग और बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं।
बच्चों की बिगड़ी हुई जीवन शैली, खानपान की गलत आदतें, शारीरिक स्थिरता बच्चों में लिवर संबंधी समस्याओं का कारण बनती जा रही है। आज वर्ल्ड लिवर डे के मौके पर आपको उन कारणों को जानना चाहिए जो बच्चों के लिवर स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ा रहे हैं (liver disease in kids)।
बच्चों में बढ़ती लिवर की बीमारी के कारण और बचाव के तरीके समझने के लिए हेल्थ शॉट्स ने डीपीयू सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, पिंपरी, पुणे की बाल रोग विभाग की प्रमुख डॉ. शैलजा माने से बात की।
वर्ल्ड लिवर डे (World Liver Day)
हर साल 19 अप्रैल को वर्ल्ड लवर डे के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है इस दिन को सेलिब्रेट करने का मुख्य मकसद लिवर स्वास्थ्य से जुड़ी जागरूकता को बढ़ावा देना है। इस दिन तरह तरह के कैंपेन के माध्यम से लोगों में लिवर स्वास्थ्य की देखभाल से जुड़ी जानकारी, सहित लोगों को लीवर की बीमारी के प्रति जागरूक करने की कोशिश की जाती है।
जानें बच्चों में बढ़ते लिवर डिजीज का कारण (liver disease in kids)
1. खानपान की गलत आदतें
उच्च कैलोरी, प्रोसेस्ड फूड्स और शुगरी ड्रिंक्स का अत्यधिक सेवेन एनएएफएलडी के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देता है। रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और अतिरिक्त शर्करा से भरपूर आहार से इंसुलिन प्रतिरोध और लीवर में फैट का निर्माण हो सकता है।
2. शारीरिक स्थिरता
गतिहीन जीवन शैली, स्क्रीन पर अधिक समय बिताना और शारीरिक गतिविधियों में भाग न लेना, एनएएफएलडी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्वस्थ वजन बनाए रखने और स्वास्थ्य में सुधार के लिए नियमित व्यायाम आवश्यक है। साथ ही बच्चों को आउटडोर खेल में भी पार्टिसिपेट करने के लिए उत्तेजित करें।
3. जेनेटिक प्रेडिसपोजीशन
जेनेटिक्स भी एनएएफएलडी के प्रति बच्चे की संवेदनशीलता में भूमिका निभाता है। कुछ बच्चों में जेनेटिक प्रेडिसपोजीशन हो सकती है, जिससे उनमें लिवर संबंधी समस्याओं के विकसित होने की अधिक संभावना होती है, खासकर जब खराब जीवनशैली की आदतों के साथ जोड़ा जाता है।
4. बढ़ता वजन और ओबेसिटी
जो बच्चे अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं, उनमें एनएएफएलडी विकसित होने का खतरा अधिक होता है। शरीर का अतिरिक्त वजन, विशेषकर पेट के आसपास, लीवर में फैट जमा होने की संभावना को बढ़ा देता है।
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5. इंसुलिन रेजिस्टेंस
इंसुलिन रेजिस्टेंस, जो अक्सर मोटापे और अस्वास्थ्यकर आहार से जुड़ा होता है, वे एनएएफएलडी में योगदान कर सकता है। जब सेल्स इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधी हो जाती हैं, तो शरीर अधिक इंसुलिन का उत्पादन करता है, जिससे लिवर में फैट जमा हो सकती है।
जानें बच्चों के लिवर स्वास्थ्य में सुधार करने के टिप्स
1. बैलेंस्ड डाइट
फल, सब्जी, साबुत अनाज, लीन प्रोटीन और स्वस्थ फैट से भरपूर संतुलित आहार को प्रोत्साहित करें। मीठे खाद्य पदार्थ, फास्ट फूड और प्रोसेस्ड स्नैक्स का सेवन सीमित रखें।
2. शुगरी ड्रिंक्स को सीमित रखें
नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। सोडा और फलों के रस जैसे मीठे ड्रिंक्स का सेवन सीमित करें, जो अत्यधिक कैलोरी में योगदान कर सकते हैं।
3. फिजिकली एक्टिव रहें
नियमित रूप से लगभग 40 मिनट से 1 घंटे तक शारीरिक रूप से सक्रिय रहने का प्रयास करें। बच्चों को उन शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें, जिनमें उन्हें आनंद आता है। गेम खेले, बाइक चलाएं, नृत्य करें और स्विमिंग करें।
4. स्क्रीन टाइम सीमित करें
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए स्क्रीन टाइम सीमा निर्धारित करें, क्योंकि अत्यधिक स्क्रीन टाइम अक्सर गतिहीन व्यवहार और अस्वास्थ्यकर खाने की आदतों का कारण बन सकता है।
5. पेरेंट्स भी अपनाएं अच्छी आदतें
माता-पिता और देखभाल करने वालों की आदतें बच्चे की जीवनशैली को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लगातार समर्थन और प्रेरणा प्रदान करने के लिए एक परिवार के रूप में स्वास्थ जीवन शैली अपनाएं।
6. नियमित जांच करवाएं
अपने बच्चे की ग्रोथ और डेवलपमेंट की निगरानी करने के साथ-साथ, स्वास्थ्य समस्याओं के किसी भी शुरुआती लक्षण का पता लगाने के लिए बाल रोग विशेषज्ञ के साथ नियमित स्वास्थ्य जांच करवाना जरूरी है। ऐसा करने से किसी भी बीमारी का पता समय रहते लगाया जा सकता है।
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