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बालको वन परिक्षेत्र में 70 एकड़ वन भूमि में रोपे जाएंगे कोमल बांस, रिहैब्लिटेशन ऑफ डिगे्रटेड बंबू फारेस्ट के तहत होंगे कार्य

कोरबा।हाथियों का मन पसंद चारा कोमल बांस हैं। इसकी समृद्धि के लिए वन विभाग ने सीमांकन कार्य शुरू कर दिया है। बिगड़े बांस के वन को सुधारने के लिए के लिए आरडीबीएफ (रिहैब्लिटेशन आफ डिगे्रटेड बंबू फारेस्ट) योजना के तहत अकेले बालको वन परिक्षेत्र में 70 एकड़ वन परिक्षेत्र को चिन्हांकित किया गया है। जहां पौधों का अस्तित्व खत्म हो गया है वहां नए पौधे रोपे जाएंग। जिन स्थलों पौधों की संख्या कम है वहां रोपणी को विस्तार देने के लिए मिट्टी की घेराबंदी की जाएगी। कोरबा व कटघोरा वन मंडल के विभिन्न वन परिक्षेत्रों में विगत दस वर्षों के अंतगराल में हाथियों की संख्या सात से बढ़कर अस्सी हो चुकी है। लगातार बढ़ रही हाथी की संख्या वन क्षेत्र के आसपास उत्पात भी बढ़ दिया है। जाहिर सी बात है संख्या बढ़ने चारा की आवश्यकता बढ़ गई है। इसी समस्या को दूर करने की दिशा में कंटीले बांस के वनों को फिर से समृद्ध करने की दिशा में कोरबा वन मंडल ने काम शुरू कर दिया है। तीन चरण में होने वाले कार्य के लिए अकेले बालको वन परिक्षेत्र में आठ लाख रूपए खर्च किया जाएगा। प्रथम चरण में ऐसे स्थलों को चिन्हांकन किया जा रहा है जहां बांस बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं। दूसरे चरण बांस के रोपणी के चारों ओर गड्ढा किया जाएगा ताकि वर्षा जल का ठहराव हो। इस प्रक्रिया से बांस पौधों की की जड़ें मजबूत होगी। तीसर चरण में जिन स्थनों में नई रोपणी की जरूरत होगी वहां वर्षा के दौरान बांस के नए पौधे रोपे जाएंगे। इसके लिए उन स्थानों को चिन्हांकित किया रहा जहां वर्ष भर पानी हो। वन क्षेत्रों में जिस तादाद में लकड़ियों लिए पेड़ों की कटाई की गई है उस अनुपात में रोपणी नहीं की गइ है। यही वजह है कि चारा की कमी के कारण जंगल को छोड़ हाथी रहवासी क्षेत्र की ओर रूख कर रहे हैं। बांस का संरक्षण से हाथियों का चारा समृद्ध होगा। डेढ़ माह बाद मानसून का दौर शुरू हो जाएगा। इस के पहले ही प्रथम चरण व दूसरे चरण की प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाएगा। चारा और पानी पर्याप्त जंगल में मिलेगा तो हाथी गांव की ओर रूख नहीं करेंगे। हाथी मानव द्वंद्व जिले में सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। इस पर अंकुश लगाने वन विभाग की ओर से कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। रूकेगा मिट्टी का कटाव जंगल में मिट्टी के कटाव को रोकने लिए पौधो की तुलना में बांस अधिक कारगर हैं। साल, चार, कोसम, महुआ जैसे पेड़ों को तैयार होने में दस से बारह वर्ष का समय लग जाता है। वहीं कटीली बांस साल भर में तैयार हो जाता है। ऊंचाई कम होने के कारण हाथी इसे आसानी अपना चारा बना सकते है। साल, गुंजा की छाल की तुलना में कंटीली बांस की झाड़ियां हाथियों के लिए बेहतर चारा है। कंटीली बांस न केवल हाथी बल्कि इसकी कोपलें यानी करील को भालू के खाने के काम आता है। ग्रामीणों के लिए बढ़ेगा रोजगार का अवसर बांस की विविध कारीगरी वनांचल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों के लिए रोजगार का साधन है। पोंगा बांस की तुलना में कटीही बांस से अनाज रखने पात्र, सूपा, मोरवा, ठठरा, गोलर आदि बनाने का काम आता है। बांस शिल्प की कारीगरी के वन विभाग की ओर वनवासियों को सजावट के सामान बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। शहरी क्षेत्र के सीतामढ़ी में बसे बंसोड़ जन जाति के लोगों के लिए कच्चे बांस की आपूर्ति भी हर मौसम में सुलभ होगी।
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हाथियों की बनी हुई है सक्रियता
89 हाथियों का दल कर रहा विचरण बताना होगा कि इन दिनों जिले के कोरबा व कटघोरा वन परिक्षेत्र में विचरण कर रहा है। कोरबा वन मंडल के कुदमुरा वन परिक्षेत्र में 40 हाथियों का दल इन दिनों दो दलों में विभाजित होकर घूम रहा है।दूसरी ओर कोरबा वन मंडल के केंदई वन परिक्षेत्र के ग्राम कांपानवा पारा में 49 हाथियों का दल पिछले दो माह से घूम रहे हैं। क्षेत्र मे जल संवर्धन और पर्याप्त मात्रा में चारा होने के कारण हाथी एक ही स्थान पर लंबे समय तक टिक गए हैं। कंटीली बांस का संरक्षण भी हाथियों को एक ही स्थान में लंबे समय तक रोकने में कारगर होगी।
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औषधीय प्रजाति के पौधों का भी होगा संरक्षण
विभागीय अधिकारियों की माने तो जिस स्थान में बांस के पौधे पनपते हैं वहां औषधीय प्रजाति के पौधे कालमेघ, दहीमन, बहेड़ा, कुटकी आदि के पौधे बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं। जंगल में पाए जाने वाले इन पौधों के फल व पत्ते झड़ने के बाद बेहतर खाद में परिवर्तित होकर अन्य वन्य पौधो के संवर्धन के लिए कारगर होते हैं। बांस पौधे के संरक्षण से औषधीय प्रजाति के पौधों को भी संरक्षण मिलेगा। वनोपज संग्रहण से जुड़े वनवासी समुदाय औषधीय उत्पाद की बिक्री से समृद्ध होंगे।

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