कभी तेल के मामले में कुवैत की तूती बोलती थी…जानें सद्दाम हुसैन के हमले से कैसे बदल… – भारत संपर्क
साल 1990 में सद्दाम हुसैन के हमले के बाद इस देश के कई हिस्से में तबाही के मंजर सामने आए थे.
कुवैत के मंगाफ शहर की एक छह मंजिला इमारत में बुधवार सुबह लगी. आग के कारण 49 विदेशी कामगारों की मौत हो गई. इनमें सबसे अधिक 42 भारतीयों के साथ ही पाकिस्तान और नेपाल के नागरिक भी शामिल हैं. दुनिया के सबसे अमीर देशों में शुमार कुवैत की तेल के मामले में कभी तूती बोलती थी. साल 1990 में सद्दाम हुसैन के हमले के बाद इस देश के कई हिस्से में तबाही के मंजर सामने आए थे.
हालांकि, समय के साथ इसने खुद को एक बार फिर से खड़ा किया और आज फिर तेल के कारण ही यह अमीर देशों की कतार में खड़ा है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि सद्दाम हुसैन के हमले के बाद कुवैत में कैसे हालात में बदलाव आया.
दुनिया के इतने तेल पर कब्जा
आज की तारीख में कुवैत के पास दुनिया के कुल तेल भंडार का करीब छह से सात फीसदी हिस्सा है. आज भी यह सरकारी राजस्व के लिए तेल के निर्यात पर ही निर्भर करता है, जिसके कारण इसकी अर्थव्यवस्था पेट्रोलियम उत्पादों पर ही आधारित है. इसी के दम पर कुवैत दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक बना हुआ है. कुवैत का दीनार पूरी दुनिया में सबसे अधिक मूल्यवान करेंसी है. वर्ल्ड बैंक के अनुसार ग्रॉस नेशनल पर कैपिटा इनकम के मामले में कुवैत दुनिया का पांचवां सबसे अमीर देश है.
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अपने तेल के दम पर ही कुवैत दुनिया भर के देशों, खासकर अमेरिका और यूरोप की नजरों में रहता है. वहां की समृद्धि को देखते हुए एशिया के कई देशों के कामगार काम की तलाश में पहुंचते हैं और वहां की तेल रिफाइनरी में मजदूरी करते हैं. यह वही कुवैत है जो साल 1990 से पहले भी तेल के कारण ही जाना जाता था पर सद्दाम हुसैन के हमले के बाद तबाही के कगार पर खड़ा दिख रहा था.
साल 1990 में सद्दाम ने किया था हमला
यह दो अगस्त 1990 की बात है. इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने पड़ोसी देश कुवैत पर हमला कर दिया था. तब कुवैत के मुखिया शेख जबेर-अल-अहमद-अल-सबह सऊदी अरब भाग निकले थे. कुछ ही घंटों में कुवैत की राजधानी कुवैत सिटी पर इराकी सेना का कब्जा हो गया था. कुवैत पर पूरी तरह से कब्जा करने के बाद सद्दाम हुसैन ने इसे इराक का 19वां राज्य तक घोषित कर दिया था.
अमेरिका के लिए खाड़ी देशों पर प्रभुत्व का बना मौका
इराक के इसी हमले ने अंकल सैम (अमेरिका) को वह मौका दे दिया, वह जिसकी तलाश में बैठे थे. यानी गल्फ देशों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए अमेरिका के सामने एक और अवसर था. कभी इराक के करीबी रहे अमेरिका ने ईरान-इराक युद्ध में ईरान की मदद की थी. इसी युद्ध से उबरने के लिए इराक ने कुवैत पर हमला किया तो अमेरिका अपनी सेना लेकर सऊदी अरब पहुंच गया. तेल के खेल में शुमार सारे देश इकट्ठा हो गए और 17 जनवरी 1991 को इराक के खिलाफ कुवैत और इराक में ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म लांच कर दिया. करीब डेढ़ महीने बाद इराक की हार तो हुई ही, गल्फ देशों पर अमेरिकी प्रभुत्व बढ़ गया.
कुवैत ने झेली थी तबाही
इस युद्ध के दौरान कुवैत का आसपास का इलाका पूरी तरह से तबाह हो गया. हजारों कुवैती मारे गए और तेल के ज्यादातर कुओं में आग लग गई. हालांकि, इराक की हार के बाद कुवैत के शेख देश लौटे और इसे फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश शुरू की और किसी हद तक कामयाब भी रहे.
हालांकि, गल्फ देशों के हालात पर नजर रखने वाले कई विश्लेषकों का मानना है कि आज भी कुवैत युद्ध से पहले की अपनी स्थिति में वापस नहीं आ पाया है. इसके बावजूद इस छोटे से गल्फ देश ने अपना घरेलू समन्वय फिर से हासिल कर लिया है, क्योंकि कुवैत में भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो इराक के खिलाफ अमेरिकी हमले के विरोधी हैं. बहुत से ऐसे लोग भी थे जो हमले के वक्त देश छोड़कर चले गए थे. साथ ही साथ कुवैत अपने अंतरराष्ट्रीय रुख पर भी स्पष्ट दिखाई देता है, क्योंकि सद्दाम हुसैन के हमले के बाद देश के लोगों के भीतर राष्ट्रवाद की भावना भी तेजी से बढ़ी है.
दूसरे गल्फ देशों से इसलिए अलग
अपनी इसी भावना और रणनीतिक स्थिति के कारण शक्तिशाली पड़ोसियों सऊदी अरब, ईरान और इराक से घिरा कुवैत सुदृढ़ स्थिति में दिखता है. यही नहीं, अधिसंख्य सुन्नी मुस्लिम आबादी वाला रूढ़िवादी कुवैत दूसरे गल्फ देशों के मुकाबले खुली राजनीतिक प्रणाली के कारण सबसे अलग दिखता है. कुवैत की संसद के पास खाड़ी के किसी भी दूसरे निर्वाचित निकाय की तुलना में ज्यादा शक्तियां हैं.
भारतीयों की भी पसंद
17818 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले कुवैत की कुल जनसंख्या 4.4 मिलियन के आसपास है. रोचक तथ्य यह है कि कुवैत की कुल जनसंख्या में 21 फीसदी तो भारतीय ही हैं. वहां की कामकाजी आबादी में भी 30 प्रतिशत भारतीय हैं, जो तेल, गैस, निर्माण क्षेत्र, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय क्षेत्र के लिए काम करते हैं. भारत के साथ अच्छे रिश्ते और बेहतर अवसर की उपलब्धता के कारण यह देश भारतीय प्रोफेशनल की पसंद बना हुआ है.
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