बिलासपुर में गौहत्या का हाईवे बनता जा रहा रास्ता, लिमतरा के…- भारत संपर्क



बिलासपुर। जिले में मवेशियों की मौतों का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। गौ-रक्षा की दुहाई देने वाली सरकार के शासन में गायें लगातार हाईवे पर मौत के मुंह में समा रही हैं। एक ओर केंद्र, राज्य और नगर निगम में भाजपा की सरकार यानी ट्रिपल इंजन की सरकार का दावा है, दूसरी ओर सड़कों पर बिछी गायों की लाशें प्रशासन की संवेदनहीनता की कहानी बयां कर रही हैं।

पिछले कुछ हफ्तों में बिलासपुर और आसपास के क्षेत्रों में हुए सड़क हादसों में 100 से अधिक गायें जान गंवा चुकी हैं। ताजा मामला बिलासपुर-रायपुर नेशनल हाईवे पर सरगांव के पास का है, जहां एक अज्ञात तेज रफ्तार वाहन ने रात में 16 गायों को कुचल दिया। इनमें से 15 की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि तीन गाय गंभीर रूप से घायल हैं। यह हादसा केवल एक कड़ी है उस लंबी श्रृंखला की, जो प्रशासन की निष्क्रियता और गौ रक्षा के खोखले दावों की पोल खोलता है।
बिना दूध वाली गायें गोपालकों के लिए ‘बोझ’
स्थानीय लोगों का कहना है कि देसी वर्ण की गायें अधिक दूध नहीं देतीं, जिससे गोपालक उन्हें खुले में छोड़ देते हैं। बरसात के दिनों में चारों ओर गीली मिट्टी और कीचड़ होने के कारण ये गायें सड़कों पर शरण लेती हैं। रात में हाईवे पर वाहन चालकों को ये नजर नहीं आतीं और अक्सर तेज रफ्तार गाड़ियों की चपेट में आ जाती हैं। इन हादसों में कई बार इंसानों की जान भी जा चुकी है, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान मवेशियों को हो रहा है।

हादसे पर न कार्रवाई, न संवेदना
हालांकि प्रशासन ने खुले में मवेशी छोड़ने पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं और धारा 163 के तहत कार्रवाई का दावा भी किया गया है, लेकिन हकीकत इससे अलग है। अब तक सिर्फ एक गोपालक पर ही एफआईआर दर्ज की गई है, जबकि दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं। कलेक्टर द्वारा जारी सख्त आदेशों के बावजूद न जुर्माना लगाया गया, न जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई हुई।
हाईकोर्ट के आदेशों की उड़ रही धज्जियाँ

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस गंभीर समस्या को लेकर कई बार निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने साफ कहा है कि यह केवल बिलासपुर नहीं, पूरे प्रदेश की समस्या है, जिसका समाधान संयुक्त रूप से किया जाना चाहिए। लेकिन न राज्य स्तर पर कोई ठोस कार्ययोजना बनी, न ही स्थानीय प्रशासन ने स्थायी उपायों पर काम किया।
गुरुवार के हादसे के बाद गौ सेवकों ने गायों के शव को राष्ट्रीय राजमार्ग पर रखकर प्रतीकात्मक विरोध किया। इसके चलते यहां कुछ समय के लिए यातायात भी प्रभावित हुआ।
भयानक आंकड़े: एक सप्ताह में मौत की चार घटनाएं

- 30 जुलाई, निमतरा : अज्ञात वाहन ने झुंड को कुचला, 10 गायों की मौत
- 27 जुलाई, मस्तूरी और चकरभाठा थाना क्षेत्र : 23 मवेशी कुचले गए, जिनमें 18 की मौत
- 14 जुलाई, सारधा के पास : अज्ञात वाहन ने 23 गायों को कुचला, 17 की मौत
- रतनपुर-पेंड्रा मार्ग : 14 गायों की मौत, 5 घायल
गौसेवक विपुल शर्मा ने फिर एक बार इस स्थिति पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि “जब गौ रक्षा के नाम पर सरकार सत्ता में आई हो, फिर भी यदि गौवध इस तरह होता है, तो यह असंवेदनशीलता और विफलता दोनों का प्रतीक है।”

विपक्ष भी मौन, समाधान नहीं
चौंकाने वाली बात यह है कि इतने बड़े पैमाने पर हो रही इन घटनाओं पर विपक्ष की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है। न तो विधानसभा में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया गया, और न ही किसी राजनीतिक दल ने ठोस विरोध या आंदोलन की पहल की है।
समाधान की मांग

गौसेवकों और स्थानीय नागरिकों की मांग है कि—
- तत्काल गौ अभयारण्यों का निर्माण किया जाए।
- गोचर भूमि को मुक्त कर मवेशियों के लिए सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराया जाए।
- खुले में मवेशी छोड़ने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
- हाईवे और प्रमुख सड़कों पर रेडियम बेल्ट, चेतावनी संकेत और सीसीटीवी निगरानी की व्यवस्था की जाए।
जब तक सरकार और प्रशासन इस विषय पर गंभीर नहीं होते, तब तक सड़कों पर मवेशियों की मौत का यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। ऐसे में यह सवाल हर संवेदनशील नागरिक के मन में उठना लाजमी है — गौमाता का जयकारा केवल नारों में ही क्यों?
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