Maidaan: अजय देवगन की ‘मैदान’ न देखने की 5 वजहें! | five reasons not to watch… – भारत संपर्क

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Maidaan: अजय देवगन की ‘मैदान’ न देखने की 5 वजहें! | five reasons not to watch… – भारत संपर्क
Maidaan: अजय देवगन की 'मैदान' न देखने की 5 वजहें!

मैदान में अजय देवगन और गजराज राव आमने-सामने हैं

अजय देवगन की ‘मैदान’ पहले 10 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी. फिर इसकी रिलीज डेट को 11 अप्रैल कर दिए गया. ऐसा ही कुछ अक्षय कुमार की फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ के साथ भी हुआ. इसके कई कारण हैं, फिलहाल अभी उन पर नहीं जाते हैं. अभी बात करते हैं अजय देवगन की फिल्म मैदान की. हमने फिल्म ली है देख, डीटेल्ड रिव्यू यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

फिल्म हमें अच्छी लगी है. पर कुछ ऐसी बातें हैं, जो फिल्म से मिसिंग हैं. कुछ बातें, जो मूवी देखते दौरान खटकी. अव्वल तो ये कि फिल्म देखे जाने लायक है. पर जो लोग फिल्म न देखने की वजह खोज रहे हैं, उनका काम आसान किए देते हैं. बताते हैं, ‘मैदान’ न देखने की 5 कारण क्या हैं?

1. ‘मैदान’ की कहानी बहुत नॉर्मल है. हर दूसरी या तीसरी स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म में ऐसी कहानी आपको मिल जाएगी. एक आदमी आएगा और कहेगा कि मैं टीम को कोच करके मेडल या कप दिलाऊंगा. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ‘चक दे इंडिया’ में ही हमने देखा था. हालांकि मेकर्स जिस शख्स की कहानी इस फिल्म के जरिए कहने की कोशिश कर रहे थे, उसका जीवन ही ऐसा बीता, इसलिए इसमें मेकर्स को दोष नहीं दे सकते. भई जो कहानी घटित हुई है, वो तो वही दिखाएंगे ना. पर एक ये कमी फिल्म में है ज़रूर.

2. अजय देवगन की फिल्म में चौंकाने वाले एलीमेंट्स मिसिंग हैं. आप स्क्रीनप्ले प्रडिक्ट कर सकते हैं. आगे क्या होने वाला या क्या नहीं होने वाला है, ये एक फिल्म देखने वाला आम दर्शक समझ सकता है. इसके लिए कोई सिनेमा एक्सपर्ट होने की भी जरूरत नहीं है. अमित तिवारी कुछ सीन में जल्दबाजी कर जाते हैं. जैसे सैयद रहीम को कोच बनाने के लिए जहां वोटिंग होती है, उस जगह पर आप पहले ही गेस करते हैं कि कौन पहले हाथ उठाएगा, क्योंकि इसका रेफरेंस फिल्म में दे दिया गया था. थोड़ा और रोकना चाहिए था, उनके हाथों को. जब दर्शकों की उम्मीद खत्म हो जाती, तब वोटिंग होती तो मज़ा आता. ऐसे ही कई और सीन हैं, जहां बतौर दर्शक आप कुछ नया नहीं पाते.

3. फिल्म की लेंथ ‘मैदान’ की सबसे कमजोर कड़ी है. रील के जमाने में दर्शकों को 3 घंटे थिएटर में बिठा पाना बहुत मुश्किल काम है. फिल्म कई मौकों पर ट्रिम की जा सकती थी. फुटबॉल मैचेस की ड्यूरेशन 2-2 मिनट ही घटाई जाती, काम हो जाता. फिल्म की लंबाई की वजह से ही फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो और लंबा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि ये बोर करता है, लेकिन गुंजाइश तो थी.

4. ‘मैदान’ में सिर्फ अजय देवगन ही दिखते हैं. उनकी वाइफ बनी प्रियमणी सिर्फ रेडियो पर मैच ही सुनती रह जाती हैं. उनका रोल थोड़ा बढ़ाया जा सकता था. फुटबॉल टीम में इतने प्लेयर थे, उन पर फोकस किया जा सकता था. लेकिन अमित शर्मा ने मूवी को सिर्फ अजय देवगन पर खर्च कर दिया है. यहीं ये फिल्म ‘चक दे इंडिया’ से अलग हो जाती है. उस फिल्म में शाहरुख खान हीरो जरूर हैं, पर आपको उसके अन्य किरदार भी याद रह जाते हैं. ‘मैदान’ देखकर उठने के बाद ऐसा नहीं होता है.

5. फिल्म में कॉमिक रिलीफ़ की कमी दिखती है. ये कमी सिर्फ खिलाड़ियों पर फोकस करके ठीक की जा सकती थी. अगर कुछ प्रमुख खिलाड़ियों पर थोड़ा ध्यान दिया जाता, तो उनकी वीयर्ड पर्सनैलिटी दर्शकों को थोड़ा हंसाती. 3 घंटे लंबी सीरियस फिल्म में ऑडियंस को थोड़ा ब्रीदिंग स्पेस मिलता. पर मेकर्स शायद नहीं चाहते होंगे कि फिल्म के सब्जेक्ट को थोड़ा भी हल्का किया जाए.

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