“मोहन भागवत और योगी आदित्यनाथ को झूठे मालेगांव ब्लास्ट केस…- भारत संपर्क

शशि मिश्रा

महाराष्ट्र एटीएस में कार्यरत रहे पूर्व इंस्पेक्टर महबूब अब्दुल करीम मुजावर ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में उन पर और उनकी टीम पर दबाव डाला गया था कि वे मालेगांव ब्लास्ट मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत और उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फर्जी तरीके से आरोपी बनाएं।
महबूब मुजावर, जिन्होंने मालेगांव विस्फोट मामले की पाँच वर्षों तक जांच की, अब सार्वजनिक रूप से मीडिया चैनलों पर यह कह रहे हैं कि उन्हें नागपुर भेजकर मोहन भागवत के खिलाफ सबूत जुटाने को कहा गया था। उनके अनुसार, “मैं और दस अन्य पुलिसकर्मी महीनों तक नागपुर में जांच करते रहे, लेकिन हमें मोहन भागवत या किसी आरएसएस कार्यकर्ता के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं मिला।”
मुजावर के अनुसार, जब उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों – तत्कालीन एटीएस चीफ हेमंत करकरे और परमबीर सिंह – को बताया कि उन्हें किसी भी प्रकार का सबूत नहीं मिला है और वे झूठी गिरफ्तारी नहीं कर सकते, तो उन्हें धमकाया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि, “हेमंत करकरे ने मुझसे कहा कि तुम मुस्लिम हो इसलिए तुम्हें मोहन भागवत को गिरफ्तार करना होगा ताकि कांग्रेस को खुश किया जा सके और एक नये नैरेटिव की नींव रखी जा सके।”
जेल और सस्पेंशन की मार:
महबूब मुजावर ने यह भी दावा किया कि जब उन्होंने इस झूठे आरोप को मानने से इनकार कर दिया, तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया, पेंशन रोक दी गई और फर्जी मुकदमों में फंसाकर डेढ़ साल तक जेल में डाल दिया गया। अदालत में अंततः वह निर्दोष साबित हुए, लेकिन तब तक उनकी जिंदगी को आर्थिक और सामाजिक रूप से बर्बाद किया जा चुका था।

साजिश का बड़ा आरोप:
महबूब मुजावर का दावा है कि मालेगांव ब्लास्ट में जो असली आरोपी थे, उन्हें महाराष्ट्र एटीएस ने ही मुठभेड़ में मार डाला ताकि सच कभी सामने ना आ सके। उनका आरोप है कि कांग्रेस सरकार चाहती थी कि इस ब्लास्ट को “हिंदू आतंकवाद” का रंग दिया जाए और इसके लिए उच्च स्तर से आदेश दिए जा रहे थे।
उन्होंने कहा, “यह कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति थी कि किसी भी तरह मोहन भागवत और योगी आदित्यनाथ को इस केस में फंसाया जाए।” उनका दावा है कि जब उन्होंने सच्चाई का साथ दिया तो न केवल उन्हें प्रताड़ित किया गया, बल्कि मुस्लिम संस्थाओं और समाज से भी कोई समर्थन नहीं मिला, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के एजेंडे को नकार दिया।
धर्म और ईमानदारी के द्वंद्व पर टिप्पणी:
एक मुस्लिम होकर भी महबूब मुजावर ने देश और संविधान के प्रति निष्ठा को सर्वोपरि रखा, लेकिन उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “जो मुस्लिम संस्थाएं आतंकी गतिविधियों में फंसे मुस्लिमों के पक्ष में खड़ी हो जाती हैं, वही संस्थाएं एक ईमानदार मुस्लिम पुलिस अधिकारी के साथ इसलिए नहीं खड़ी हुईं क्योंकि उसने हिंदुओं को झूठे केस में फंसाने से इनकार कर दिया।”
सियासी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा:
इस गंभीर खुलासे के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ने की संभावना है। हालांकि अभी तक कांग्रेस पार्टी या किसी वरिष्ठ नेता ने इस मामले पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
पूर्व एटीएस अधिकारी महबूब मुजावर की ये बातें भारतीय लोकतंत्र, पुलिस व्यवस्था और न्याय प्रणाली पर एक गहरा प्रश्नचिन्ह है। साथ ही यह यह भी दर्शाता है कि सत्ता में बैठे लोग किस हद तक राजनीतिक स्वार्थ के लिए एजेंसियों का दुरुपयोग कर सकते हैं।
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