संतान की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा व्रत, हलषष्ठी की विधि…- भारत संपर्क
संतान की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा व्रत, हलषष्ठी की विधि विधान से की गई सामूहिक पूजा
कोरबा। जिले में हलषष्ठी पर्व हर्षोल्लास व श्रद्धापूर्वक मनाया गया। संतान सुख व परिवार की समृद्धि के लिए गुरुवार को नगर की महिलाओं ने हलषष्ठी (खमरछट ) की पूजा विधि विधान के साथ सामूहिक रूप से की। इसके लिए व्रत रखा गया।इसी कड़ी में क्षेत्र में महिलाएं सुबह से ही व्यापक तैयारी में लगी रहीं। गली-मोहल्लों में जमीन खोदकर एक कुंड जिसे सगरी कहा जाता है , सगरी कुंड के चारों ओर महुआ पान, काशी फूल सजा कर सामूहिक रूप से उपस्थित महिलाओं को पंडित और राजपुरोहित द्वारा विधिवत पूजा करायी गई। पूजा के अंत मे महिलाओं ने बच्चों के पीठ पर पोता लगाकर उसकी लम्बी आयु व परिवार की सुख समृद्धि की कामना की। ग्रामीण अंचल क्षेत्रों मे भी हलषष्ठी पूजा के लिए श्रद्वालु महिलाओं ने व्रत रखकर पूजा अर्चना की। सुबह महिलाएं महुआ डंडी का दातुन व स्नान कर पूजा की तैयारी में जुट गईं। महुआ का पत्तल तैयार किया गया। इसमें व्रती महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती है। पसहर चांवल के भात व छह प्रकार के भाजी पकाए गए। इस पूजा मे भैंस के दूध, दही, घी, मक्खन का भोग लगाया गया। हलषष्ठी पूजा ज्यादातर महिलाएं समूहों बनाकर करती हैं। मोहल्ले के किसी सार्वजनिक स्थान एवं निवास पर किया गया। पूजा में जमीन खोदकर सगरी कुंड बनाए गये थे, इसमें महिलाओं द्वारा पानी भरा गया। सगरी कुंड के चारों ओर मिट्टी के बनाये गये खिलौने, गुड्डा-गुड़िया, चुकीया को सगरी कुंड के पास रखा गया। पंडितों द्वारा हलषष्ठी कथा का श्रवण पूजा में उपस्थित महिलाओं को कराया गया। पूजा समाप्ति के बाद सभी महिलाएं घर लौटकर घर के एक स्थान पर पूजा कर अपने पुत्रों के पीठ पर छुही के पोतनी लगाकर तिलक कर दीघार्यु का आशीर्वाद दिया। फिर व्रती महिलाओं ने प्रसाद ग्रहण किया। हलषष्ठी पूजा में पहुंची महिलाओं ने बताया कि हलषष्ठी व्रत महिलाओं के लिए विशेष व्रत पर्व है। इसमें अलग तरह की पूजा पुत्र की दीघार्यु परिवार की सुख समृद्धि के लिए की जाती है। हलषष्ठी पूजा में भैंस के दूध दही घी का उपयोग किया जाता है इस कारण इसकी मांग बढ़ जाती है। वहीं बिना हल जोते अनाज पसहर चावल के भात और मुनगा भाजी के साथ छह प्रकार की अन्य भाजी को मिलाकर पकाकर पूजा में भोग लगाया जाता है। महुआ के फल पत्ता डंठल और लाई का भी विशेष महत्व है।