नगीना संसदीय सीटः किसी भी दल की पकड़ मजबूत नहीं, 3 चुनाव में 3 दलों को मिली… – भारत संपर्क

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नगीना संसदीय सीटः किसी भी दल की पकड़ मजबूत नहीं, 3 चुनाव में 3 दलों को मिली… – भारत संपर्क

उत्तर प्रदेश की सियासत में बिजनौर जिले में दो संसदीय सीटें पड़ती हैं, जिसमें एक सीट बिजनौर सीट है तो दूसरी सीट है नगीना. 80 संसदीय सीटों वाले प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. लेकिन इस सीट पर किसी भी दल का खास दबदबा नहीं रहा है. बहुजन समाज पार्टी ने 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से यह सीट झटकते हुए अपने नाम कर लिया था. हालांकि इस बार समीकरण बदल गया है और पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मैदान में उतरने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार साथ नहीं है. लेकिन INDIA गठबंधन के नाम पर सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने नगीना सीट से ओम कुमार को मैदान में उतारा है, जबकि INDIA गठबंधन ने अभी ऐलान नहीं किया है.
नगीना बिजनौर जिले की एक तहसील है. 2009 से पहले यह सीट बिजनौर लोकसभा सीट का ही हिस्सा हुआ करती थी. प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं, जिसमें नगीना संसदीय सीट भी शामिल है. यह प्रदेश की नई लोकसभा सीटों में से एक है. नगीना लोकसभा सीट के तहत 5 नजीबाबाद, नगीना, धामपुर, नहटौर और नूरपुर विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें 2 सीटों पर समाजवादी पार्टी (नजीबाबाद और नगीना) को जीत मिली तो 3 सीटों पर बीजेपी (धामपुर, नहटौर और नूरपुर) का कब्जा रहा था. जबकि 2017 के चुनाव में यहां की 3 सीटों पर बीजेपी को तो सपा को 2 सीटों पर जीत मिली थी.
2022 के चुनाव में नजीबाबाद सीट पर सपा के तसलीम अहमद विधायक हैं. नगीना सीट (SC) से सपा के विधायक मनोज कुमार पारस तो धामपुर सीट पर बीजेपी के अशोक कुमार राणा विधायक हैं. राणा ने सपा के नईमुल हसन को हराया था. नहटौर विधानसभा सीट भी एससी के लिए रिजर्व है और यहां से बीजेपी की ओर से ओम कुमार विधायक चुने गए थे. नूरपुर सीट पर देखें तो सपा के राम अवतार सिंह विधायक हैं. उन्होंने बीजेपी को चुनाव में हराया था.
2019 का लोकसभा चुनाव, बीजेपी का क्या रहा
2019 के चुनाव की बात करें तो यहां पर मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तथा समाजवादी पार्टी के गठबंधन के बीच था. इस गठबंधन की ओर से बीएसपी ने गिरीश चंद्र ने अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा. चुनाव में गिरीश चंद्र को 568,378 वोट मिले जबकि बीजेपी के डॉक्टर यशवंत सिंह के खाते में 401,546 वोट आए थे. कांग्रेस की ओमवती देवी को महज 20,046 वोट मिले. गठबंधन की वजह से गिरीश चंद्र को यहां से आसान जीत मिल गई.
नगीना लोकसभा सीट पर 2019 के चुनाव में कुल वोटर्स की संख्या 15,38,579 थी, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 8,21,647 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 7,16,870 थी. इसमें से कुल 10,09,456 (66.0%) मतदाताओं ने वोट डाले, जिसमें 10,02,928 (65.2%) वोट वैध रहे. गिरिश चंद्र ने 166,832 (16.5%) मतों के अंतर से यह चुनाव जीता था. चुनाव में NOTA के पक्ष में 6,528 (0.4%) वोट डाले गए.
क्या रहा नगीना सीट का संसदीय इतिहास
नगीना सीट का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. 2008 के परिसीमन के बाद नगीना संसदीय सीट अस्तित्व में आई थी और यहां पर पहली बार 2009 में वोट डाले गए. नगीना सीट की खास बात यह है कि तीनों बार अलग-अलग दलों को जीत मिली है. 2009 में समाजवादी पार्टी के यशवीर सिंह को जीत मिली थी. यशवीर ने बीएसपी के राम कृष्ण सिंह को हराया था. 2014 के चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी को उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में जोरदार जीत मिली थी. नगीना सीट पर बीजेपी के यशवंत सिंह ने एसपी के यशवीर सिंह को 92,390 मतों के अंतर से हराया था. बसपा के गिरीश चंद्र तीसरे स्थान पर रहे थे.
हालांकि 2019 के आम चुनाव में सपा और बीएसपी ने आपसी गठबंधन कर लिया और बसपा ने गिरीश चंद्र को मैदान में उतारा. गठबंधन की वजह से सांसद और बीजेपी प्रत्याशी यशवंत सिंह को हरा दिया. और यह जीत भी कोई छोटी जीत नहीं थी, गिरीश ने 1,66,832 मतों के अंतर से चुनाव में जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है क्योंकि सपा और बीएसपी के बीच आपसी गठबंधन नहीं है.
नगीना संसदीय सीट का जातीय समीकरण
यह संसदीय सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है, लेकिन यहां सबसे ज्यादा आबादी मुस्लिम बिरादरी की है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस क्षेत्र में मुस्लिम वोटर्स की संख्या कुल आबादी में से 70.53% है, तो यहां पर हिंदू लोगों की संख्या 29.06% है. यहां करीब 21 फीसदी एससी वोटर्स भी रहते हैं. इस सीट पर 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर्स के होने की वजह से यहां पर इनकी भूमिका निर्णायक रहती है.
ब्रिटिश शासनकाल में इस क्षेत्र का अपना अलग ही इतिहास रहा है. पंजाब में 1919 में हुए चर्चित जलियावाला बाग हत्याकांड की तरह यहां भी एक घटना घट चुकी है. आजादी की जंग में 21 अप्रैल 1858 को नगीना के पाईबाग पहुंची ब्रिटिश सेना पर इनामत रसूल और जान मुहम्मद महमूद की ओर से बंदूक से फायर कर दिया गया. जिसके जवाब में सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया था. इस फायरिंग में करीब 150 लोगों की जान चली गई. इसे नगीना का जलियावालां बाग हत्याकांड कहा जाता है. हालांकि ऐतिहासिक कुआं अब नष्ट हो चुका है.

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