पटना में NDA नेताओं की बैठक, नीतीश कुमार का क्या रहा साथी दलों को पैगाम?

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पटना में NDA नेताओं की बैठक, नीतीश कुमार का क्या रहा साथी दलों को पैगाम?
पटना में NDA नेताओं की बैठक, नीतीश कुमार का क्या रहा साथी दलों को पैगाम?

सीएम नीतीश कुमार.

नीतीश कुमार को फिर से धोखे का डर सता रहा है. इसलिए नीतीश एनडीए के घटक दल से एकजुट होकर काम करने को लेकर जोर दे रहे हैं. नीतीश ने बैठक में जोर देकर कहा कि एनडीए की मीटिंग बूथ स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक होनी चाहिए जिससे विधानसभा चुनाव में जनता को साफ मैसेज जाए कि गठबंधन एकजुट है और इसमें कोई मतभेद नहीं है. साल 2020 में 43 सीटों पर अटकी जेडीयू पुराने इतिहास से सबक लेकर कदम फूंक फूंक कर रखना चाह रही है. इसलिए एनडीए की मीटिंग में वैसे किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं की गई जो एनडीए के घटक दलों के लिए गले की फांस बनी हुई है.

साल 2020 के चुनावी परिणाम के बाद जेडीयू बीजेपी पर शक करने लगी थी. चिराग पासवान पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार न उतारकर जेडीयू की मिट्टी पलीद करने में जुटे हुए थे. चिराग कामयाब भी रहे. एनडीए की सरकार तो बनी लेकिन नीतीश की पार्टी जेडीयू महज 43 सीटों पर सिमट गई थी. नीतीश सीएम बन गए, लेकिन उन्हें लग गया कि ये खेल बीजेपी की तरफ से खेला गया था. क्योंकि बीजेपी अब बिहार में भी ड्राइविंग सीट पर बैठना चाह रही है.

जेडीयू को एनडीए में किस घटक दल से लग रहा है डर?

इसी वजह से साल 2022 में जेडीयू ने एनडीए से किनारा कर आरजेडी का दामन थामा था. लेकिन आरजेडी के साथ भी रिश्ते महज डेढ़ साल ही चले और नीतीश वापस एनडीए में आ गए. नीतीश द्वारा इस कदर पलटी मारने से उनकी छवि को बड़ा धक्का पहुंचा, लेकिन वो इस बार एनडीए के सभी घटक दल को साध कर बिहार में कीर्तिमान स्थापित करना चाह रहे हैं. लोकसभा चुनाव में नीतीश का स्ट्राइक रेट अच्छा रहा है और केन्द्र सरकार नीतीश की पार्टी के समर्थन से चल रही है.

बीजेपी अब डिफेंसिव है. इसलिए बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में मेजॉरिटी नहीं आने की वजह से उसी समय ऐलान कर दिया था कि साल 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए नीतीश के नेतृत्व में मैदान में उतरेगी. इस बार बीजेपी प्रदेश में ज्यादा खेल करने की स्थिति में नहीं है. वहीं चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (आर) भी नीतीश से बेहतर रिश्ते कायम करने के प्रयास में जुटी दिख रही है, लेकिन दो बार बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी के साथ जाने वाले नीतीश कुमार के साथ बीजेपी के कार्यकर्ता दिल से जुड़ सकेंगे इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं.

यही वजह है कि नीतीश और उनके सिपहसालार ने इस संभावनाओं के मद्देनजर आज एक मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग एनडीए की एकजुटता पर विशेष जोर दिया. जाहिर है एनडीए में इस बार बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (आर), जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा शामिल है.

2025 को लेकर क्यों चौकन्ने हैं नीतीश कुमार?

नीतीश कुमार साल 2019 में एनडीए में थे और लोकसभा चुनाव में एनडीए बिहार में 39 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. लेकिन एनडीए की हालत साल 2020 के विधानसभा चुनाव में खराब रही थी. चिराग के विरोध की वजह से नीतीश 43 सीटें पर सिमट गए थे और बीजेपी के साथ मिलकर विरोधियों से महज 12 हजार वोटों की बढ़त के साथ नीतीश सरकार बनाने में सफल रहे थे. इस बार के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन एक की तुलना में 10 सीटें जीतने में कामयाब रहा है.

वहीं कांग्रेस और लेफ्ट आरजेडी के साथ मजबूत गठबंधन में है और मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी भी तेजस्वी यादव के साथ मिलकर ही विधानसभा चुनाव लड़ने की फिराक में हैं. जाहिर है एनडीए के घटक दलों की संख्या बढ़ी है तो महागठबंधन में भी घटक दलों की संख्या पिछले चुनाव की तुलना में बढ़ी है. इसलिए मुकाबला दिलचस्प होगा ये साफ दिखाई पड़ रहा है. 17 महीने की सरकार में नीतीश कुमार ने जो भी नौकरियां दी हैं उसे आरजेडी तेजस्वी यादव की कारस्तानी बताकर यूथ को साधने में जुट गई है.

बिहार में नीतीश के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी भी चरम पर

पिछले 19 साल से नीतीश सीएम की कुर्सी पर हैं. इसलिए एंटी इनकम्बेंसी भी चरम पर है. ऐसे में मुकेश साहनी और लेफ्ट का मजबूती से आरजेडी को मिल रहा साथ पिछले 19 सालों की कहानी को पलट सकता है. इसका ट्रेलर पिछले विधानसभा चुनाव में दिख गया था. इसलिए कहा जा रहा है कि आरजेडी के युवा नेता तेजस्वी यादव युवाओं को अपने साथ खींचने में सफल रहे तो बाजी पलट सकती है. जाहिर है इसी को रोकने की कोशिश में नीतीश और उनकी टीम लग गई है. इसलिए घटक दलों के साथ व्यापक पैमाने पर बैठक कर जिले स्तर पर मजबूत गठबंधन कायम रखने का प्रयास किया गया है.

गौरतलब है कि एनडीए के घटक दल के एमपी, एमएलए, एमएलसी और जिला अध्यक्ष तक को मीटिंग में बुलाकर नीतीश कुमार ने अगले चुनाव के लिए मंत्र दिया है जेडीयू के नेताओं के दिमाग में चल रही संशय की ओर इशारा साफ करती है. नीतीश और उनके सिपहसालार को लग रहा है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 39 सीटें जीतने के बावजूद साल 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सत्ता तक पहुंचने से कुछ कम विधायकों के चलते चूक गई थी. लेकिन इस बार महागठबंधन 10 लोकसभा सीटें जीती है. इसलिए आरजेडी इस बार विधानसभा चुनाव में ज्यादा खेल न कर सके इसके लिए एनडीए का सही अर्थों में एकजुट रहना बेहद जरूरी है.

जेडीयू का लगातार गिर रहा है ग्राफ

जेडीयू साल 2010 में 125, साल 2015 में 71 और साल 2020 में 43 सीटें जीतकर सरकार बनाने में सफल तो रही है. लेकिन जेडीयू का ग्राफ किस कदर गिरा है ये आंकड़े सारे विश्लेषण कर रहे हैं. लेकिन साल 2020 में उपेन्द्र कुशवाहा और चिराग पासवान एनडीए में नहीं थे वहीं एनडीए में मुकेश साहनी चुनाव से ऐन वक्त पहले आए थे. ज़ाहिर है इस बार चिराग, उपेंद्र कुशवाहा साथ हैं और मुकेश साहनी अलग. इस सबके बीच नीतीश के दाहिने हाथ कहे जाने वाले आरसीपी सिंह भी पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं.

वहीं प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज पार्टी नीतीश को कमजोर बताकर हटाने में जुट गई है. ऐसे में चिराग की भूमिका में इस बार प्रशांत किशोर रह सकते हैं. इसकी भी चर्चा जोरों पर है. बिहार में प्रशांत किशोर एनडीए को ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे या इंडिया गठबंधन को, इसको लेकर भी ऊहापोह की स्थिति है. कहा जा रहा है कि बीजेपी के मतदाता वैसी जगह पर प्रशांत किशोर को वोट दे सकते हैं जहां जेडीयू के उम्मीदवार खड़े होंगे. इसलिए इस बार प्रशांत किशोर ही चिराग पासवान की भूमिका में होंगे. यही डर जेडीयू नेताओं के दिलो दिमाग में है. इसलिए एकजुटता को लेकर नीतीश कुमार मीटिंग में सबसे ज्यादा जोर देते सुने गए हैं.

अंतर्विरोध को कैसे दूर करेंगे एनडीए के घटक दल?

एनडीए में अंतर्विरोध है. वक्फ संशोधन बिल को जेपीसी में भेजा जाना इसका बड़ा प्रमाण है. संसद में ललन सिंह का जोरदार बीजेपी समर्थन तब फीका पड़ गया जब जेडीयू के भीतर से विरोध में आवाज उठने लगे. वहीं यूसीसी से लेकर कई अन्य मसलों पर जेडीयू और बीजेपी आमने सामने है. जाहिर है बीजेपी केंद्र में समर्थन पाने की वजह से जेडीयू की हां में हां कर रही है. लेकिन कई मुद्दों पर बीजेपी और जेडीयू में विरोध साफ दिखता रहा है. यही हाल शराबबंदी को लेकर भी है. इस मसले पर जीतन राम मांझी के सुर जेडीयू से अलग रहे हैं.

अंतर्विरोध चुनाव में महंगे साबित हो सकते हैं

वहीं एससी-एसटी को रिजर्वेशन के मसले पर कोटे में कोटा का विरोध चिराग पासवान की पार्टी खुलकर करती दिखी है. जबकि जीतन राम मांझी इसकी मांग करने में आगे दिखे. ये अंतर्विरोध चुनाव में महंगे साबित हो सकते हैं. लेकिन नीतीश कुमार इस सब को अलग रख सभी घटक दल को एकजुट रखने के लिए प्रतिबद्ध दिख रहे हैं. इसी वजह से जेडीयू मीटिंग में गिरिराज सिंह की हिंदु जागरण यात्रा की चर्चा न कर अंतर्विरोध को दूर करती दिखी है. ज़ाहिर है जेडीयू के लिए आधार वोट बैंक को एकजुट रखते हुए घटक दलों के वोट को ट्रांसफर करा लेना बड़ी चुनौती दिख रही है. इसलिए नीतीश कुमार नीतीश सरकार न कहकर एनडीए सरकार के प्रचार प्रसार करने पर जोर दे रही है.

दरअसल लोकसभा चुनाव में काराकाट, आरा और जहानाबाद में एनडीए की हार चिंता का सबब बना हुआ है. इसमें एनडीए के कई वोटर अलग पैटर्न पर वोट डालते देखे गए हैं. इसलिए नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव से पहले सारी दिक्कतों को दूर करना चाह रहे हैं.

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