संगठन कमजोर या तेजस्वी से नाराजगी… 5 महीने में पांच दिग्गजों ने क्यों…

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संगठन कमजोर या तेजस्वी से नाराजगी… 5 महीने में पांच दिग्गजों ने क्यों…
संगठन कमजोर या तेजस्वी से नाराजगी... 5 महीने में पांच दिग्गजों ने क्यों छोड़ी लालू की पार्टी?

पांच माह में पांच बड़े नेताओं ने छोड़ी आरजेडी

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले एक तरफ जहां राजनीतिक पार्टियां बिसात बिछाने में जुटी हैं तो वहीं दूसरी तरफ आरजेडी पार्टी में चल रही भगदड़ को रोकने में कामयाब होती नहीं दिख रही है. पिछले पांच महीने में 5 बड़े नेता आरजेडी छोड़ चुके हैं. इनमें 3 नेता सांसद स्तर के और 2 नेता मंत्री स्तर के रहे हैं.

दिलचस्प बात है कि जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ी है, उनमें सभी नेता एक वक्त में लालू यादव के करीबी रहे हैं.

किन नेताओं ने छोड़ी पार्टी?

राजद को झटका लगने का क्रम लोकसभा चुनाव के वक्त से ही शुरू हुआ, जब एक-एक कर के इन नेताओं ने राजद से अपना दामन छुड़ा लिया. शुरुआत भागलपुर से पूर्व सांसद शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल से हुई. मंडल 2024 के चुनाव में भागलपुर सीट कांग्रेस के खाते में जाने से नाराज थे. इसके बाद राज्यसभा सांसद रहे अशफाक करीम ने पार्टी का दामन छोड़ दिया.

करीम कटिहार सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. इसके बाद झंझारपुर सीट से दावेदार रहे देवेंद्र यादव ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. वृशिण पटेल और श्याम रजक ने भी पार्टी छोड़ दी.

खास बात यह कि इन सभी नेताओं ने पार्टी छोडने की वजह उनकी बातों को नहीं सुनना, उनको तवज्जो और सम्मान नहीं देना ही बताया है.

कई नेता जदयू में हुए शामिल

खास बात यह कि राजद से अपना दामन छुड़ाने वाले इन नेताओं में से ज्यादातर ने जदयू की सदस्यता को ग्रहण कर लिया था. जदयू में शामिल होने वाले नेताओं में अशफाक करीम, बुलो मंडल के नाम शामिल हैं. जबकि देवेंद्र प्रसाद यादव, श्याम रजक और वृषण पटेल ने अपने पत्ते अब तक नहीं खोले हैं.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो आने वाले चंद दिनों में श्याम रजक जदयू में शामिल हो सकते हैं. जानकार यहां तक बता रहे हैं कि श्याम रजक जदयू में शामिल होने के बाद फुलवारी शरीफ विधानसभा सीट से अपनी चुनावी किस्मत को आजमा सकते हैं.

सभी रहे हैं राजद के पुराने साथी

राजद को छोड़ने वाले इन नेताओं में से ज्यादातर राजद के पुराने साथी रहे हैं. राजद पर विभिन्न आरोप लगाकर पार्टी छोड़ने वाले देवेंद्र प्रसाद यादव 14वीं लोकसभा के सदस्य रहे थे. देवेंद्र यादव 1977 से 1979 तक बिहार जनता पार्टी के सचिव रहे थे और फुलपरास विधान सभा चुनाव के लिए चुने गए थे. देवेंद्र यादव ने ही अपनी सीट से इस्तीफा दिया था, जिस सीट से कर्पूरी ठाकुर चुनाव जीते और बिहार के सीएम बने थे. देवेंद्र यादव देवेगौड़ा और गुजराल सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे थे.

वहीं अशफाक करीब राष्ट्रीय जनता दल से राज्यसभा के एमपी रह चुके हैं. वृषिण पटेल ने भी लंबे समय तक राजद में अपना राजनीतिक जीवन गुजारा इसके बाद वह जदयू में शामिल हो गए थे. वृषण पटेल ने फिर राजद का दामन थामा था लेकिन इस साल लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने राजद को छोड़ दिया था.

हालांकि कुछ दिन वह हम पार्टी में भी रहे थे. वहीं भागलपुर से राजनीति की दुनिया में बड़ा नाम रहे बुलो मंडल उर्फ शैलेश कुमार ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता शाहनवाज हुसैन को हराया था. वह इस साल भागलपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन सीट शेयरिंग में भागलपुर सीट कांग्रेस पार्टी के हिस्से में चली गयी थी, जिससे नाराज होकर बुलो मंडल ने राजद को छोड़ दिया था.

लगातार कमजोर हो रही है आरजेडी

जदयू के वरिष्ठ प्रवक्ता निहोरा प्रसाद यादव कहते हैं, यह बात सत्य है कि राजद लगातार कमजोर होती जा रही है. कई महत्वपूर्ण नेता विशेष रूप से दलित, पिछड़ी जाति और अति पिछड़ी जाति के नेता पार्टी को त्याग रहे हैं. क्योंकि वहां इन वर्गों का मान सम्मान नहीं है.

निहोरा प्रसाद आगे कहते हैं- जनता में भी जिस समीकरण की बात आरजेडी करती है वह समीकरण भी दरकता हुआ दिखाई पड़ रहा है. लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार पसमांदा मुसलमानों, पिछड़ों का राजद में तिरस्कार कई स्थानों पर किया गया.

इससे स्पष्ट हो रहा है कि तेजस्वी प्रसाद के नेतृत्व में राजद काफी कमजोर हुई है. आने वाले दिनों में राजद से लगातार नेता पलायन करेंगे. पार्टी को छोड़ेंगे. क्योंकि राजद की जो कार्यशाली रही है, वह पारिवारिक रही है. राजद परिवार के लिए ही बनी है.

आरजेडी बोली- नहीं पड़ता कोई फर्क

नेताओं के पार्टी छोड़ जाने के सवाल पर राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं- कहीं कोई कमजोरी नहीं है. जब-जब चुनावी मौसम आता है. हर पार्टी में कुछ लोग जाते हैं, कुछ लोग आते हैं. राष्ट्रीय जनता दल की जमीन इतनी मजबूत है कि उस जड़ को हिलाकर कोई दो चार पत्ते गिरा सकता है लेकिन जड़ को कमजोर नहीं कर सकता है.

तिवारी आगे कहते हैं- चार-पांच जाते हैं, 50 विधायक बनते हैं. राजद आज सबसे बड़े दल के रूप में है और यह जनता का आशीर्वाद है. किसी के जाने और आने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. यहां मुकाबला बिल्कुल साफ है. तेजस्वी यादव के 17 महीने का कार्यकाल बनाम 17 वर्षों के एनडीए की डबल इंजन की सरकार का कार्यकाल सामने है.

राजद बन गई है परिवार की पार्टी

भाजपा के प्रवक्ता विनोद शर्मा कहते हैं- राजद पूरी तरीके से परिवार की पार्टी बनाकर के रह गई है. अपने साथियों को हमेशा अपमानित करती रहती है. उनके साथ जो भी नेता कार्यकर्ता हैं, किसी को तेज प्रताप, किसी को तेजस्वी ने तो किसी को लालू प्रसाद ने अपमानित किया. कब तक कोई अपमानित होकर काम करेगा?

विनोद शर्मा आगे कहते हैं- निश्चित रूप से उनके नेताओं में काफी नाराजगी है. निश्चित रूप से राजद आने वाले दिनों में और कमजोर होगी. उसकी जो भी पुराने सहयोगी और साथी हैं, दूसरे रास्ते पर जा रहे हैं इसलिए राजद निश्चित रूप से आने वाले विधानसभा चुनाव में काफी असहज और कमजोर रहेगी.

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