सायरन बजते ही दहशत में आ जाते थे लोग, दंपत्ति ने बताया 1971 की लड़ाई के…


डॉ. सुधा शर्मा एवं अवधेश कुमार सिंह
पहलगाम अटैक के बाद एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बन गई है. इस बार भी वही स्थिति देखने को मिल रही है, जो 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय थी. उस समय भी युद्ध शुरू होने से पहले मॉक ड्रिल कराया गया था. बिहार में वैशाली के हाजीपुर क्षेत्र के गांव कुतुबपुर में रहने वाले एक दंपत्ति डॉ. सुधा कुमारी शर्मा और अवधेश कुमार सिंह ने उस समय की यादें टीवी9 भारतवर्ष के साथ साझा की. बताया कि लोग दहशत के मारे कैसे पूरी-पूरी रात दिया-बत्ती बुझाकर सुबह होने का इंतजार करते थे.
डॉ. सुधा कुमारी शर्मा के मुताबिक 1971 के युद्ध के समय वह महज पांच साल की थीं. उस समय उनके पिता आरएन सिंह एयरफोर्स में जूनियर वारंट अफसर थे और उनकी तैनाती गोरखपुर में थी. डॉ. सुधा के मुताबिक वह भी अपने माता पिता के साथ एयर फोर्स स्टेशन के पास रहती थीं. उन दिनों जब सायरन बजते ही घर के बाहर गाड़ी आ जाती थी और उनके पापा यूनिफॉर्म लेकर चले जाते थे. उस समय उनकी मम्मी के चेहरे पर डर साफ नजर आता था. वह अपनी मम्मी से पूछती थी तो उसे हमेशा जवाब मिलता था कि पापा मेडल लेने गए हैं.
सायरन बजते ही निकल पड़ते थे फौजी
डॉ. सुधा के मुताबिक ये हालात केवल उनके ही घर में नहीं, बल्कि सभी फौजियों के घरों में देखा जा रहा था. सायरन बजते ही फौजी ड्यूटी पर निकल पड़ते थे, वहीं उनके घर वाले दहशत में आ जाते थे. उस समय भी ब्लैक आउट होता था. सब लोग अपने घरों की खिड़कियां और रोशनदान तक बंद रखते थे. घर में दीया-बत्ती तक बुझा दी जाती थी और पूरी-पूरी रात लोग अंधेरे में काटते थे. डॉ. सुधा के पति अवधेश कुमार सिंह कहते हैं कि उन दिनों वह हाई स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे.
अंधेरे में कटती थी पूरी रात
उन दिनों युद्ध को लेकर ऐसी दहशत थी कि शाम ढलते ही लोग घरों में कैद हो जाते थे. दीया बत्ती बुझा दी जाती थी. डर था कि रोशनी देखकर दुश्मन वहां बम गिरा सकता है. लोग दिनों रात रेडियो पर समाचार सुनते थे. आखिर में जब भारत के विजय की खबर आई तो लोगों ने राहत की सांस ली और खूब जश्न मनाया था. उस समय गांव में नारा लगा था कि ‘अहिया भुट्टो मुर्दा है, इंदिरा गांधी दुर्गा है’. उन्होंने बताया कि उस समय भी मॉक ड्रिल हुई थी.