नई उमंगों और परंपराओं के संग 15 अप्रैल को मनाया जाएगा ‘पोइला…- भारत संपर्क


इस वर्ष बांग्ला नव वर्ष, जिसे ‘पोइला बोइशाख’ के नाम से जाना जाता है, 15 अप्रैल को पूरे बंगाल और बांग्ला समुदायों के बीच धूमधाम से मनाया जाएगा। यह पर्व न केवल एक नया कैलेंडर वर्ष शुरू होने का प्रतीक है, बल्कि यह बंगाली संस्कृति, परंपरा और सामाजिक एकता का उत्सव भी है।
कोलकाता समेत पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में बांग्ला नव वर्ष की तैयारियां जोरों पर हैं। बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ी है, नए कपड़े, पारंपरिक मिठाइयाँ और सजावटी सामान खरीदने वालों की लंबी कतारें दिखाई दे रही हैं। दुकानदार ‘हलकाता’ की पूजा के लिए विशेष तैयारियां कर रहे हैं, जहां व्यापार की नई शुरुआत के साथ ग्राहकों को मिठाई और शुभकामनाएं दी जाती हैं।
कैसे मनाया जाता है यह त्योहार?
‘पोइला बोइशाख’ के दिन लोग पारंपरिक वस्त्र पहनकर सुबह-सुबह मंदिरों में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। महिलाएं लाल-श्वेत साड़ी और पुरुष धोती-कुर्ता पहनकर पर्व की शोभा बढ़ाते हैं। घरों में पारंपरिक व्यंजन जैसे शुक्तो, भाट, भजे, माछेर झोल, और मिठाइयों में रसगुल्ला, संदेश व पायेश बनते हैं।
कोलकाता में इस दिन विशेष रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ‘मांगलिक यात्रा’ या जुलूस में पारंपरिक नृत्य-संगीत, ढाक की आवाज और रंग-बिरंगे परिधान देखने को मिलते हैं।
क्यों मनाया जाता है बांग्ला नव वर्ष?
बांग्ला नव वर्ष की शुरुआत मुगल सम्राट अकबर के काल में हुई थी, जब फसल की कटाई के बाद किसानों से कर वसूलने के लिए एक नया कैलेंडर बनाया गया था। तब से यह परंपरा चली आ रही है, जो अब सांस्कृतिक रूप से बंगाल की पहचान बन चुकी है।
यह दिन पुराने को पीछे छोड़कर नई शुरुआत का प्रतीक है। लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं – “শুভ নববর্ষ” (शुभो नवोबर्षो) कहकर।

बिलासपुर में बांग्ला नववर्ष पर बंगाली समाज करेगा पारंपरिक उत्सव का आयोजन
बिलासपुर शहर में रह रहे प्रवासी बंगाली समुदाय के लोग इस वर्ष भी बांग्ला नववर्ष को पारंपरिक उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाने जा रहे हैं। 15 अप्रैल को ‘पहला वैशाख’ के अवसर पर पूरे शहर में बंगाली समाज के घरों में देवी-देवताओं की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। मां दुर्गा, काली, गणेश, लक्ष्मी और गुरुदेव की विशेष पूजा की जाएगी।
इस शुभ दिन पर समाज के लोग अपने घरों में पारंपरिक बंगाली पकवानों और मीठे व्यंजनों का स्वाद चखेंगे। बच्चों को नए वस्त्र पहनाकर माता-पिता उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए आशीर्वाद देंगे। यह पर्व परिवार और समाज को जोड़ने वाला, आनंद और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक माना जाता है।
बंगाल की परंपरा को जीवंत बनाए रखते हुए, बिलासपुर में भी पिछले कई दशकों से बांग्ला नववर्ष को पारंपरिक जोश के साथ मनाया जा रहा है। इस बार भी तोरवा स्थित काली मंदिर में विशेष नववर्ष पूजन का आयोजन किया गया है। इस पूजा का संचालन पं. अरुण चक्रवर्ती और रमेश चक्रवर्ती द्वारा किया जाएगा।
इसके साथ ही छत्तीसगढ़ बंगाली समाज द्वारा तोरवा स्थित बंगला भवन में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। गीत-संगीत और नृत्य के माध्यम से नववर्ष का स्वागत किया जाएगा। कार्यक्रम के अंत में प्रीतिभोज का आयोजन भी किया गया है, जिसमें समाज के सभी सदस्य एक साथ बैठकर भोजन का आनंद लेंगे।
बिलासपुर में बांग्ला नववर्ष सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक संगम है जो हर वर्ष समाज को एक नई ऊर्जा और आपसी सौहार्द का संदेश देता है।
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