7 दिन में पेश करें थानों में बने मंदिरों की लिस्ट… एमपी सरकार को हाई कोर्… – भारत संपर्क

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7 दिन में पेश करें थानों में बने मंदिरों की लिस्ट… एमपी सरकार को हाई कोर्… – भारत संपर्क

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट. (फाइल फोटो)
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रदेश के पुलिस थाना परिसरों में बने मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों से जुड़ी विस्तृत जानकारी पेश करने का आदेश दिया है. मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत की खंडपीठ में इस मामले में सोमवार को सुनवाई हुई. कोर्ट ने सरकार को 7 दिनों के भीतर संबंधित जानकारी पेश करने का आदेश दिया है. साथ ही धार्मिक स्थलों के निर्माण की तिथि और इनकी स्थापना के लिए दिए गए आदेशों का भी विवरण मांगा है.
दरअसल, यह मामला पुलिस थाना परिसरों में धार्मिक स्थलों के निर्माण को लेकर दायर की गई याचिका से जुड़ा है. याचिकाकर्ता अधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि प्रदेश के 1259 थानों में से 800 थानों के परिसर में धार्मिक स्थल मौजूद हैं. याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग है और इससे धार्मिक निष्पक्षता का उल्लंघन होता है.
जवाब न होने पर सरकार को फटकार
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अब तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया है. हाई कोर्ट ने सरकार की दलीलों को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि वह इस मामले में केवल ठोस जानकारी ही स्वीकार करेगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि धार्मिक स्थलों के निर्माण के पीछे की वैधता और आदेशों का पूरा विवरण जरूरी है.
संवैधानिक मुद्दा
याचिका में पुलिस थाना परिसरों में धार्मिक स्थलों के निर्माण को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया गया है. याचिकाकर्ता के अनुसार, यह कार्य सरकारी संपत्ति का गैरकानूनी उपयोग है और इसे धार्मिक तटस्थता बनाए रखने के सिद्धांत के खिलाफ माना जाना चाहिए.
अगली सुनवाई की तारीख
इस मामले में अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी. तब तक सरकार को आदेश किया गया है कि वो सभी संबंधित आंकड़े और दस्तावेज कोर्ट में प्रस्तुत करे. याचिकाकर्ता अधिवक्ता सतीश वर्मा ने कहा, यह मामला संविधान की मूल भावना और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है. हम उम्मीद करते हैं कि हाई कोर्ट इस मामले में सख्त कदम उठाएगा. मामले की गंभीरता को देखते हुए हाई कोर्ट का यह आदेश पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है.

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