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सर्व आदि दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष की पत्रकारवार्ता, संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन के प्रति कोई भी दल गंभीर नहीं: अरुण पन्नालाल
कोरबा। संविधान की रक्षा के लिए सर्व आदि दल का गठन हुआ है। संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन के प्रति कोई भी दल गंभीर नहीं है। संविधान लागू होते ही उसका उल्लंघन शुरू हुआ। आकस्मिक परिस्थिति में राष्ट्रपति अध्यादेश लाया जा सकता है। जिसे 7 दिनों के भीतर लोकसभा में रखा जाना आवश्यक है। ऐसे अकास्मिक कानून की मियाद छः माह होती है। 1950 में राष्ट्रपति अध्यादेश के द्वारा मुसलमान, सिख और ईसाईयों का धर्म के आधार पर आरक्षण समाप्त कर दिया गया। उक्त बातें सर्व आदि दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने पत्रकारवार्ता के दौरान कही। उन्होंने कहा कि लोकसभा के पटल पर आज तक नहीं लाया, जिस कानून को 6 माह में खत्म होना जाना था वो आज भी 75 सालों से लागू है। पांचवी अनुसूची में आदिवासियों के स्वशासन के अधिकार लिखा हुआ है, जो मिला ही नहीं। अब ग्राम सभा से अनुमति लेने को बदल कर सलाह (परामर्श) लेने तक परिवर्तित कर दिया है। संविधान में समानता का अधिकार है। आदिवासी अगर आधुनिकता और विकास की ओर बढ़े तो उन्हें मारपीट और अपमान झेलना पड़ रहा है। पूर्वजो की परंपरा का हवाला देकर रूढ़िवाद में कैद किया जा रहा है। आदिवासियों को पुलिस रक्षा-सुरक्षा और न्याय नहीं मिलना आम बात है। जबरदस्ती धर्म थोप कर, हत्या, नरसंहार, बलात्कार, लूट, हमलों का सामना करना पड़ता है। पक्ष और विपक्ष दोनों एक ही सुर आलापते हैं। वनाचलों में 75 सालों की आजादी के बाद भी चिकित्सीय और शैक्षणिक व्यवस्था का घोर अभाव बना हुआ है। समाजों, धर्मों को आपस में लड़वाया जाता है। ऐसा आचरण बड़े राजनैतिक दलों का रहा है। दल-बदलते ही सदन की सदस्यता खत्म नहीं की जाती, संवैधानिक अधिकार छीने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सर्व आदि दल उक्त त्रुटियों को सुधारने के लिए चुनावी मैदान में है। हमारा दल धनाभाव से जूझ रहा है। सौ रुपए का योगदान भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। कोरबा लोकसभा क्षेत्र में धर्मपरिवर्तन किए लोगों की संख्या करीब 2.50 लाख है, उन तक पहुंचने का विशेष प्रयास रहेगा।