बेलपान से जल लेकर कांवरिये पहुंचे रतनपुर बूढ़ा महादेव के…- भारत संपर्क

यूनुस मेमन

धार्मिक नगरी रतनपुर में सावन के अंतिम सोमवार को उमड़ा भक्तों का जनसैलाब स्थानीय भक्तों के साथ कावड़िए भी पवित्र घाटों से जल लेकर भोलेनाथ के जलाभिषेक के लिए पहुंचे। जल के साथ भोलेनाथ को धतूरा, बेलपत्र ,आक के फूल आदि अर्पित किए गए। शिवलिंग का दूध ,दही, शहद, पंचामृत से अभिषेक किया गया। पूरे परिसर में हर हर महादेव, बोल बम और जय शंभू के नारे गूंजते रहे। प्रातः मंदिर के पुजारी द्वारा भोलेनाथ की महाआरती की गई, जिसके पश्चात जलाभिषेक और पूजन का क्रम आरंभ हुआ। कतार बद्ध शिव भक्तों ने भोलेनाथ से सुख, समृद्धि ,शांति की कामना करते हुए उनका जलाभिषेक किया ।

रतनपुर स्थित महामाया मंदिर के साथ ही बूढ़ा महादेव मंदिर भी अति प्राचीन और विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। जिसके प्रति गहरी जन आस्था है, यही कारण है कि दूर दूर से शिव भक्त सावन के अंतिम सोमवार को यहां दर्शन पूजन और जलाभिषेक के लिए पहुंचे । वैसे तो सावन के पूरे महीने ही यहां शिव भक्तों के पहुंचने का क्रम जारी रहा, लेकिन सभी सोमवार, विशेषकर सोमवार को यहां शिव भक्तों का रेला उमड़ पड़ा और हर तरफ कांवड़ियों का मेला नजर आया।

शिव को प्रिय सावन महीने के अंतिम सोमवार को शिव भक्तों का जत्था देशभर के शिवालयों में उमड़ पड़ा है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने कांवरिये रविवार शाम से ही पवित्र नदियों से जल लेकर शिव मंदिर की ओर बढ़ चले थे। अंचल के सभी शिव मंदिरों में भक्तों का रेला लगा हुआ है, विशेषकर धार्मिक नगरी रतनपुर स्थित बृधेश्वर महादेव के प्राचीन मंदिर में भक्तों की लंबी कतार तड़के से नजर आ रही है। रतनपुर में राम टेकरी की तराई पर स्थित इस प्राचीन मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है जो अपने आप में कई गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए हैं

वैसे तो रतनपुर स्थित महामाया मंदिर , पंचमुखी मंदिर, कंठी देवल मंदिर में भी श्रद्धालु सावन के अंतिम सोमवार को पहुंच रहे हैं लेकिन सर्वाधिक भीड़ बृद्धेश्वर महादेव मंदिर में नजर आ रही है। किवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में राजा वृद्ध सेन ने किया था, बृद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर और फिर धीरे-धीरे जन भाषा में बूढ़ा महादेव कहा जाने लगा। जनश्रुति है कि सन 1050 में राजा रत्न देव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। यहां जटा रूप में विराजित शिवलिंग में जितना भी जल अभिषेक किया जाता है वह जल कुंड में समाहित हो जाता है। मंदिर परिसर में ही एक जलकुंड भी मौजूद है। माना जाता है कि अभिषेक पश्चात जल सुरंगों से होते हुए उसी कुंड में पहुंच जाता है।
मंदिर प्रवेश द्वार पर एक पाषाण नंदी विराजमान है, जिन का दर्शन और पूजन परम शुभकारी माना है। कहते हैं स्वप्न आदेश पर इस अलौकिक मंदिर का निर्माण कराया गया था। यहां स्वयंभू शिवलिंग तांबे के आवरण के भीतर स्थापित है। भक्त कितना भी जल शिवलिंग पर चढ़ा दे वह जल कभी आवरण से बाहर नहीं आता , क्योंकि शिवलिंग का आंतरिक संपर्क मंदिर के बाहर मौजूद कुंड से है। इस कुंड का दर्शन आचमन भी परम् शुभकारी माना जाता है।

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