RBI MPC : क्या होती है मौद्रिक नीति, रेपो रेट, रिवर्स रेपो…- भारत संपर्क

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RBI MPC : क्या होती है मौद्रिक नीति, रेपो रेट, रिवर्स रेपो…- भारत संपर्क
RBI MPC : क्या होती है मौद्रिक नीति, रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट? आसान भाषा में यहां समझिए

मौद्रिक नीति से कैसे कंट्रोल होती है महंंगाई?

नए वित्त वर्ष 2024-25 की आज पहली मौद्रिक नीति आनी है. देश में महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) हर दो महीने में मौद्रिक नीति पेश करता है. इसमें मुख्य तौर पर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट पर फैसला लिया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि ये मौद्रिक नीति, रेपो रेट या रिवर्स रेपो रेट क्या होती है? यहां आप आसान भाषा में समझ सकते हैं…

क्या होती है मौद्रिक नीति?

मौद्रिक नीति को अगर मोटे तौर पर समझें, तो केंद्रीय बैंक आरबीआई इसके माध्यम से मार्केट में कैश फ्लो मेंटेन करता है. बाजार में जितना कम कैश फ्लो होगा, लोगों की परचेजिंग पावर को कंट्रोल करने में उससे उतनी मदद मिलेगी, जो आखिर में डिमांड को कम करेगा और महंगाई नीचे आएगी.

लेकिन इसका एक खतरा भी है, जिसके लिए आरबीआई को संतुलन बनाना पड़ता है. मौद्रिक नीति में कैश फ्लो को इस तरह मेंटेन करना होता है कि डिमांड इतनी भी कम ना हो कि देश की इकोनॉमी में ग्रोथ ही रुक जाए. इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक इसे हर दो महीने में करता है और रेपो रेट- रिवर्स रेपो रेट की समीक्षा करता है.

मौद्रिक नीति का रिव्यू करने के लिए आरबीआई के अंदर ही एक ‘मौद्रिक नीति समिति’ बनाई गई है. 6 सदस्यों की ये समिति 3 दिन बैठक करके मौद्रिक नीति पर फैसला लेती है.

क्या होता है रेपो रेट?

मौद्रिक नीति आप समझ चुके हैं, तो अब जानते हैं कि रेपो रेट क्या होता है? अब आरबीआई मार्केट में खुद से तो कैश फ्लो मेंटेन कर नहीं सकता, तो इसके लिए वह बैंकों का सहारा लेता है. भारत में बैंक करेंसी नोट के लिए आरबीआई पर डिपेंड करते हैं. इसी सप्लाई को मेंटेन करके आरबीआई मार्केट में कैश फ्लो मेंटेन करती है. अभी रेपो रेट की दर 6.50 प्रतिशत है.

दरअसल आरबीआई बैंकों को जो करेंसी देता है, उस पर उनसे एक ब्याज वसूलता है. इसी ब्याज को रेपो रेट कहा जाता है. अगर रेपो रेट ज्यादा है तो बैंकों को करेंसी की कॉस्ट यानी फंड कॉस्ट महंगी पड़ेगी, जिसकी वजह से वह लोन पर ब्याज बढ़ाएंगे. लोन महंगा होगा तो मार्केट में कम लोग उसे लेंगे और इस तरह मौद्रिक नीति से कैश फ्लो मेंटेन होता है.

रिवर्स रेपो रेट क्या है?

रेपो रेट समझ आ गया, तो एक बार रिवर्स रेपो रेट भी समझ लेते हैं. मान लीजिए किसी बैंक के पास जरूरत से ज्यादा पैसा जमा हो गया या उसके पास अचानक से कैश फ्लो बढ़ गया, तब मनी सप्लाई को कंट्रोल करने के लिए एक बार फिर आरबीआई की एंट्री होती है. आरबीआई बैंकों से ये पैसा उधार ले लेता है और इस पर एक ब्याज उन्हें देता है. यही ब्याज रिवर्स रेपो रेट कहलाती है.

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