REELS….शौक तो ठीक मगर सनक मत पालिए, ये जानलेवा हो सकता है | The deadly craze… – भारत संपर्क

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REELS….शौक तो ठीक मगर सनक मत पालिए, ये जानलेवा हो सकता है | The deadly craze… – भारत संपर्क

सड़कों से गुजरते, पार्कों में, मॉल में, मंदिर में सार्वजनिक जगहों पर आजकल जहां देखो रील बन रही हैं, लोग वीडियो बना रहे हैं. रील बनाने वाले खुद तो बेसुध होकर जो कर रहे हैं सो कर रहें हैं आस-पास किसी की प्राइवेसी या किसी की सहूलियत का ख्याल भी अब किसी को नहीं है. दिल्ली मेट्रो से एक वीडियो वायरल हुआ तो अश्लील वीडियो की भरमार लग गई. दस साल के बच्चों से लेकर 20-25 साल की यंग जनरेशन रील बनाने में लगी है जिसमें मनोरंजन से ज्यादा फेमस हो जाने की ललक है और उसके लिए वो किसी भी हद तक जा रहे हैं किसी भी हद तक का मतलब मौत की हद तक भी है. जी हां, रील बनाने के चक्कर में आए दिन लोग जान गंवा रहे हैं.

5 दिन 7 मौतें

23 मई- गोरखपुर में सरयू नदी में रील बनाने के चक्कर में एक छात्र की मौत हो गई
21 मई- संत कबीर नगर में कुआनो नदी में एक 26 साल का लड़का डूब गया
20 मई- झारखंड में एक युवक ने खदान के गड्ढे में भरे पानी में लगाई छलांग, हुई मौत
19 मई- जबलपुर में नर्मदा में छलांग लगाकर रील बनाते युवक और उसके साथी की मौत
19 मई- जैसलमेर की गड़ीसर लेक में सेल्फी के चक्कर में पीयूष और संजय की डूबने से मौत

तकरीबन हर दिन रील्स के चक्कर में ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं मसलन इसी मई महीने में ही हाथ में देसी कट्टा लेकर रील बनाते युवक की गोली लगने से मौत. लड़की रेलवे ट्रेक के सामने रील बना रही थी ट्रेन आई और मौत. नहर किनारे एक लड़की रील बना रही थी पैर फिसला और मौत हो गई. …क्या कैमरा ऑन होते ही युवा पीढ़ी अपनी सुध-बुध खो बैठती है. क्यों इतना रिस्क लेने वाले समझ नहीं पा रहे कि वो क्या कर रहे हैं.

दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट और क्लीनिकल साइकॉलजिस्ट डॉक्टर आशिमा कहती हैं कि जब रियल लाइफ में लोगों को तारीफ नहीं मिलती और वो फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डालते हैं फिर लाइक्स कमेंट आते हैं रीशेयरिंग होती है तो ऐसे में उन लोगों में संतुष्टि आती है, कॉन्फिडेंस आता है, वैलिडेशन मिलता है, अंधी दौड़ है. लोग दूसरों की पार्टी करते फोटो देखकर फोमो यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट फील करने लगते हैं. वो खुद यही सब करना चाहते हैं.

दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय की प्रिंसिपल अनुराधा जोशी कहती हैं कि अब संयुक्त परिवार नहीं हैं क्योंकि ज़रूरत है इसलिए मां-बाप दोनों कमाने जाते हैं, बच्चे घर पर अकेले रहते हैं सोशल मीडिया का अट्रैक्शन है, सबको अच्छा लगता है. कोई पसंद करे, तारीफ करे, उन्हें अच्छी बात बोले वो तारीफ अब लाइक और कमेंट में बदल गई है और उसे पाने की चाहत में अजीब कपड़े अजीब मेकअप से लेकर लोग कुछ भी करने को तैयार हैं. उसका कोई अंत ही नहीं है और लाइक्स कमेंट के आपसी कंपटीशन में बच्चे एक के बाद एक इसमें धंसते चले जाते हैं.

रील्स की लत के नुकसान

अपना वर्तमान यानी वो वक्त किसी सार्थक काम में लगा सकते हैं
नींद की कमी अपने आप में लाखों बीमारियों को न्योता होता है
वर्चुअल वर्ल्ड से तारीफ के चक्कर में अपनों को वक्त नहीं दे पाते
रियल लाइफ में आपका कॉन्फिडेंस कम होने लगता है
रील्स की लत से निगेटिविटी, डिप्रेशन जैसे तमाम इश्यू होते हैं

वायरल होता शॉर्ट्स का चलन

आजकल लोगों के पास समय कम है, तनाव ज्यादा और इस स्ट्रेस के बीच वो कम टाइम में ज्यादा एंटरटेनमेंट हासिल करना चाहते हैं. इसलिए छोटे वीडियो यानी शॉर्ट्स 66 फीसदी यूर्जस को अपनी ओर खींच रहें हैं. लंबे वीडियो के मुकाबले एक मिनट से भी कम के वीडियो ढाई गुना अटेंशन पा रहे है. 34 फीसदी लोग ये मानते हैं कि ये फुलऑन एंटरटेनमेंट हैं और वो इसे अपने दोस्तों के बीच भी आसानी से शेयर कर सकते हैं.

क्यों हर कोई रील बनाना चाहता है

फेमस होना कौन नहीं चाहता और फेमस होने के साथ साथ पैसे भी कमा लिए जाए तो क्या बात है. हाल ही में नोएडा पुलिस ने दो लड़कियों को गिरफ्तार किया क्योंकि उन पर पब्लिक के बीच रील बनाते हुए अश्लीलता फैलाने का आरोप था. नोएडा में गिरफ्तार हुई लड़कियों ने बताया कि उनके पास जुर्माना भरने के पैसे भी नहीं हैं. वो बस जल्द से जल्द लाइमलाइट में आकर पैसा कमाने के लिए ऐसा कर रही थीं. मनोवैज्ञानिक डॉ. आशिमा ने बताया मधुमिता (बदला हुआ नाम) के पेरेंट्स उनके पास जब मधुमिता को लेकर आए तो उसने स्कूल जाना छोड़ दिया था क्योंकि वो रात-रातभर जागकर रील बनाती थी और सुबह उसे नींद आती थी. मम्मी-पापा ने जब रील बनाने से रोकने के लिए थोड़ी सख्ती बरती तो मधुमिता ने खुद को नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की.

The growing craze of social media and reels

सोशल मीडिया का तेज़ी से बढ़ता क्रेज़

दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय की प्रिंसिपल अनुराधा जोशी कहती हैं कि ये एडिक्शन है जैसे कि एक्टर्स को पब्लिक से पहचान मिलने पर डोपामाइन की डोज़ मिलती है वो इन बच्चों को रील्स बनाकर उसके लाइक कमेंट और शेयर से मिलती है. हैप्पी हारमोन ‘डोपामाइन’ रिलीज़ होता है तो वो खुश होते हैं. थ्रिल एडवेंचर के इस खेल में सबकी दिमागी हालत खराब होती जा रही है.

सोशल मीडिया का बाज़ार
– 77 फीसदी बिजनेस हाउस अपने कस्टमर तक पहुंचने को सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं
– 90 फीसदी यूजर्स सोशल मीडिया पर कम से कम एक ब्रांड को फॉलो करते हैं
– 76 फीसदी सोशल मीडिया यूजर्स ने सोशल मीडिया पर देख कोई न कोई चीज खरीदी है

रील के मरीज़

सीनियर कंसलटेंट डायटीशियन शिल्पा ठाकुर कहती हैं कि रील देखकर आजकल लोगों ने पतले होने के लिए चीनी की जगह शहद, देसीखांड, शुगर रिप्लेसमेंट या ब्राउन शुगर लेना शुरू कर दिया है और चीनी ना खाने की गलतफहमी में वो ज्यादा चीनी खा रहें हैं. वेटलॉस के पाउडर या मील रिप्लेसमेंट लॉन्ग टर्म में लिवर डैमेज कर रहें हैं. जनरल फिज़ीशियन डॉक्टर वैष्णव कहते हैं कि कई मरीज़ों को देखते वक्त ये पाया गया कि वो यूट्यूब या रील देखकर पिंक या रॉक सॉल्ट सेंधा नमक का इस्तेमाल करने लगे हैं, बच्चे भी वही खा रहे हैं. इससे शरीर में सोडियम कम हो जाता है जबकि उनके शरीर को सफेद नमक की ही ज़रूरत होती है. ब्रेन एक्टिविटी के लिए ऑयोडाइज्ड सफेद नमक की ही ज़रूरत है. बिना डॉक्टरी सलाह के ना कुछ खाना शुरू करें ना ही बंद करें. रील नहीं अपने शरीर की सुनिए.

डॉ. अजय भांबी कहते हैं कि ज्योतिष से जुड़ी मान्यताएं या परंपराएं एक प्रैक्टिस है. आपने कोई रील बना दी, आज कर लिया ये उपाय तो बदल जाएगा भाग्य. ऐसे में एकादशी में इस गर्मी में बाहर घूम रहे किसी एक इंसान ने पूरे दिन निर्जला रहने का काम कर लिया तो वो तो गर्मी और लू से ही बेहाल हो जाएगा. एक दिन से किसी का भाग्य न बनता है ना बदलता है, व्रत रखने के साथ और भी नियम होते हैं. अधूरी जानकारी सर्वथा घातक है ये बंद होना चाहिए.

धार्मिक स्थलों पर रील बनाने के इतने मामलों से विवाद हुआ कि केदरनाथ में साल 2023 में रील बनाना प्रतिबंधित करना पड़ा. उत्तराखंड पुलिस के एडिशनल डीजीपी अंशुमन कुमार बताते हैं कि उत्तराखंड में केदारनाथ धाम और चारधाम यात्रा ठीक से हो इसके लिए पुलिस ने ऑपरेशन मर्यादा की शुरुआत की है. पहले जो लोग रील वगैरह बनाते थे मंदिर प्रागंड़ में, उसकी तमाम शिकायतें आती थीं. इसलिए मंदिर परिसर और धार्मिक स्थलों में ऐसा ना हो इसकी पूरी कोशिश की जा रही है.

रील्स के पॉज़िटिव साइड

हाल ही में भारत सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अच्छा प्रदर्शन करने वालों को नेशनल क्रिएटर अवार्ड्स दिया है
हर बात के दो पहलू होते हैं. दूसरों को देखकर कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित होना ज़ाहिर तौर पर अच्छी बात है
रील्स देखकर लोगों को कई क्षेत्रों के बारे में कुछ नया जानने को मिल रहा है
रील्स देखकर लोगों को कम वक्त में अपने तनाव से कुछ वक्त के लिए तुरत निजात मिल जाती है

सबसे फेमस इंस्टाग्राम

इंस्टाग्राम साल 2022 में सबसे ज्यादा डाउनलोड किया जाने वाला दूसरा मोबाइल ऐप था. दरअसल टिकटॉक रील बनाने के लिए फेमस था और उसके बंद होने के बाद इंस्टाग्राम ने 2021 में रील ऑप्शन लॉन्च किया. आज की तारीख में 2.35 बिलियन यूजर्स रील देखते हैं और ये आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. भारत इंस्टा रील्स बनाने और देखने मे नंबर वन है. आज ज्यादातर सोशल मीडिया इंन्फ्लूएंसर इंस्टाग्राम पर ही मिलेंगे. इसलिए यूट्यूब वाले भी इस पर शिफ्ट हो रहें हैं.

The world's most popular social networking sites launched

दुनिया की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट्स की शुरुआत

सोशल मीडिया है अब बड़ा मार्केट

सोशल मीडिया अब केवल ऐप्स का प्लेटफ़ॉर्म नहीं है, ये एक बहुत बड़ा बाज़ार है. मार्केटिंग की नई दुनिया है जहां आपका ब्रांड सीधे इन्फ्लूएंसर के रिकमेंडेशन के साथ दर्शकों तक पहुंच रहा है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कहती है कि भारत के 54 फीसदी लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल सही जानकारी के लिए करते हैं. सोशल मीडिया पर डाली गई पोस्ट को सही मानकर शेयर करने वाले 87 फीसदी लोग ये मानते हैं कि जो जानकारी वो शेयर कर रहे हैं वह सही है. 25 से 44 साल के करीब 44 फीसदी यूजर्स सोशल मीडिया पर आई जानकारी को सच मानते हैं. 55 साल से कम उम्र के ज्यादातर लोग सोशल मीडिया को जानकारी का सही प्लेटफॉर्म मानते हैं. फोर्ब्स एडवाइज़र की पड़ताल कहती है- साल 2023 में दुनिया भर में लगभग 4.9 बिलियन लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे थे और अनुमान है कि साल 2027 तक ये आंकड़ा लगभग 5.85 बिलियन जा पहुंचेगा.

क्या रील्स को लेकर बनेंगे नियम?

इसको लेकर अलग-अलग विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. सरदार पटेल विद्यालय की प्रिंसिपल जो कि रोज़ाना हर उम्र के बच्चों को देखती और उनके साथ डील करती हैं वो कहती हैं कि अगर हमारे यहां शराब पीने, शादी करने, गाड़ी चलाने वोट देने सबकी उम्र तय है तो मोबाइल हाथ में थमाना भी बड़ी ज़िम्मेदारी का काम हैं. 16 साल तक के बच्चों को मोबाइल मिलना ही नहीं चाहिए. उससे ऊपर बस कीपैड वाला फोन ताकि फोन जब आपके हाथ में आए तब तक आपको उसका जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना आ जाए. मनोवैज्ञानिक डॉक्टर आशिमा कहती हैं कि बिल्कुल अब वक्त आ गया है इसको लेकर कोई नियम बने और उन नियमों का सख्ती से पालन भी हो.

(साथ में फरीद अली)

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