असलियत में ‘गोरिल्ला’ हैं रिलायंस और अडानी, ऐसे कराते हैं…- भारत संपर्क
रिलायंस और अडानी हैं गोरिल्ला कंपनी
आपने अक्सर फिल्मों में ‘गोरिल्ला’ का कैरेक्टर देखा होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मार्केट की दुनिया में भी ‘गोरिल्ला’ होते हैं. कई बार आपने भी गोरिल्ला कंपनी या गोरिल्ला इंवेस्टिंग के बारे में सुना होगा. क्या आप जानते हैं कि रिलायंस इंडस्ट्रीज और अडानी ग्रुप भी असल में ‘गोरिल्ला’ हैं. चलिए समझते हैं पूरी बात…
मार्केट में गोरिल्ला का मतलब असल वाले गोरिल्ला (कपि-वानर प्रजाति) से नहीं होता, बल्कि ये उसके कैरेक्टरस्टिक रखने वाली कंपनी या इंवेस्टर्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है. तो मार्केट में गोरिल्ला कंपनी उसे कहा जाता है, जो अपने सेगमेंट या इंडस्ट्री में डोमिनेट करती हैं, लेकिन उनके पास मार्केट की कंप्लीट मोनोपॉली नहीं होती.
रिलायंस और अडानी ऐसे हैं गोरिल्ला
अब इस बात को रिलायंस या अडानी ग्रुप के संदर्भ में समझना हो तो ऐसे समझ सकते हैं कि रिलायंस जियो या रिलायंस रिटेल अपने सेगमेंट की डोमिनेंट कंपनियां हैं. लेकिन रिलायंस जियो को अभी भी भारती एयरटेल से और रिलायंस रिटेल को टाटा ग्रुप से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है.
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इसी तरह अडानी ग्रुप, खाद्य तेल और सीमेंट जैसे बिजनेस में डोमिनेंट प्लेयर हैं, लेकिन उसके पास इस सेक्टर में मोनोपॉली नहीं है. खाद्य तेल सेगमेंट में उसे कई लोकल ब्रांड्स से, तो सीमेंट बिजनेस में बिड़ला ग्रुप से चुनौती का सामना करना पड़ता है.
आपको कैसे पहुंचाते हैं फायदा?
‘गोरिल्ला’ कंपनी के पास भले मार्केट की मोनोपॉली नहीं होती, लेकिन उनका साइज इतना बड़ा होता है कि वह कई छोटे प्लयेर्स को मार्केट में साइडलाइन करने की हिम्मत रखती हैं. इतना ही नहीं, अपने इंफ्लूएंस के चलते अपनी इंडस्ट्री में वह अपने हिसाब से प्राइस कंट्रोल करती हैं. ये कंपनियां मनचाहे ब्याज पर पूंजी की व्यवस्था भी कर सकती हैं.
हालांकि एक शेयर होल्डर के लिए ये कंपनियां काफी फायदेमंद साबित होती हैं. इनके आकार के चलते ये कंपनियां मार्केट के उतार-चढ़ाव को आसानी से झेल लेती हैं और अपने शेयर होल्डर्स को लॉन्ग टर्म में अच्छा मुनाफा कमा कर देती हैं. अडानी ग्रुप का ‘हिंडनबर्ग संकट’ आपको याद होगा ही.