Saudi Founding Day: सऊद परिवार न होता तो कैसा होता इस्लाम का सबसे बड़ा केंद्र, कहानी… – भारत संपर्क

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Saudi Founding Day: सऊद परिवार न होता तो कैसा होता इस्लाम का सबसे बड़ा केंद्र, कहानी… – भारत संपर्क
Saudi Founding Day: सऊद परिवार न होता तो कैसा होता इस्लाम का सबसे बड़ा केंद्र, कहानी सऊदी अरब की

सऊदी अरब आज अपना स्थापना दिवस मना रहा है.

सऊदी अरब 22 फरवरी को अपना स्थापना दिवस (Founding Day) मनाता है. जो मौजूदा सऊदी पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाए हुए है, उसकी असल में नींव 1727 में रखी गई थी, जब इमाम मोहम्मद बिन सऊद अपने चचेरे भाई जैद बिन मरखान के बाद दिरियाह राज्य के शासक बने. दिरियाह को ही पहला सऊदी राज्य माना जाता है और यहीं से अपना शासन शुरू करने वाला सऊद परिवार आज तक करीब 300 सालों से सऊदी अरब पर राज कर रहा है. पहले सऊदी स्टेट बनाने का श्रेय इमाम मोहम्मद बिन सऊद को जाता है, जो जैद बिन मरखान के बाद दिरियाह शहर के शासक बने और जब 1765 में उनकी मौत हुई तब तक उन्होंने मध्य अरब में उस वक्त की सबसे बड़ी राजनीतिक इकाई की नींव रखी.

सऊद समर्थकों के मुताबिक उस वक्त अरब के इस्लाम में कुछ बदलाव आ गए थे जो पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं से अलग थे जिनको खत्म करने का बेड़ा अब्दुल वहाब ने उठाया जिनको शेख के नाम से भी जाना जाता है. अब्दुल वहाब को शुरू में स्थानीय धार्मिक विद्वानों और नेताओं ने सताया. वे सभी शेख की शिक्षाओं को अपनी सत्ता के लिए खतरा मानते थे. अरब में हर तरफ से सताए जाने के बाद उन्होंने दिरियाह शहर में पनाह मांगी जहां इमाम मोहम्मद बिन सऊद का शासन था. मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब और दिरियाह के शासक मुहम्मद बिन सऊद ने मुस्लिम समुदाय में इस्लाम की असल शिक्षाओं को वापस लाने का समझौता किया. इसी भावना से 1727 में मोहम्मद बिन सऊद ने पहले सऊदी राज्य की स्थापना की, जो शेख वहाब के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में फला-फूला.

अब्दुल वहाब की शिक्षाओं को लेकर विवाद

अब्दुल वहाब की शिक्षाओं को मानने वाले लोगों को वहाबी भी कहा जाता है. बाद में उनके लाए गए रिफोर्म (Wahhabism) विवादों में घिर गया. वहाबियों की छवि एक कट्टर इस्लाम को मानने वाले लोगों के तौर पर बन गई जिनकी विचारधारा का सीधा टकराव सूफी इस्लाम से हुआ. वहाबियों ने इज्तिहाद की वकालत और अरब के साथ साथ जहां-जहां ये विचारधारा फैली वहां पर दरगाहों, सूफी संगीत, बुतों की पूजा जैसे चलन को खत्म किया गया. बाद में पश्चिमी मीडिया ने आरोप लगाया कि वहाबिज्म कट्टरपंथ और आतंकवादी फैल रहा है.

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इस्लाम के नाम पर बना सऊदी स्टेट

इमाम मुहम्मद बिन सऊद ने राजनीति और लड़ाई का हुनर अपने पिता से सीखा था, पिता के शासन काल में इमाम ने पिता का साथ दिया और 1721 में जब अल-अहसा की बानू खालिद जनजाती ने दिरियाह पर हमला किया तो फौज का नेतृत्व करके दिरियाह को जीत दिलाई. इस जंग के बाद से दिरियाह को आसपास के इलाके में एक मजबूत राज्य के तौर से देखा जाने लगा. अपनी मौत से पहले तक इमाम मोहम्मद ने पूरे अरब में दिरियाह को अलग पहचान दिला दी और इसका शासन अरब के कई इलाकों तक फैल गया था.

1765 में उनकी मौत के अगले 9 दशकों तक ये कमान उनकी तीन पीढ़ियों ने संभाली. उनके बेटे अब्दुल अजीज ने अत-तुरईफ के शाही जिले की नीxव रखी उनके बाद अब्दुल अजीज के बेटे अब्दुलअजीज अल सऊद (सऊद दा ग्रेट) के वक्त सऊद स्टेट अपने चरम पर पहुंचा और अरब प्रायद्वीप के ज्यादातर हिस्से में फैल गया. सऊद दा ग्रेट ऐसे शासक थे जिनके शासन काल में ही सऊद स्टेट इस्लाम के दो पवित्र शहर मक्का और मदीना तक फैल गया था. 1814 में उनकी मौत के बाद बेटे अब्दुल्ला के कंधों पर सऊद स्टेट की जिम्मेदारी आ गई.

लेकिन इस वक्त मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में ऑटोमन एंपायर की तूती बोलती थी. अल-सऊद शासकों की लोकप्रियता और सफलता को बढ़ता देख ऑटोमन को खतरा महसूस होने लगा. 1818 में ओटोमन्स ने अरब के पश्चिमी इलाके में अपनी सेना भेजी और सऊद को अरब से खदेड़ना शुरू किया और मक्का-मदीना के साथ साथ सऊद से अरब के दूसरे इलाकों को आजाद कराया. ओटोमन सेना ने दिरियाह को घेर लिया और 6 महीने तक चली घेराबंदी के बाद इमाम अब्दुल्ला को कैद कर इस्तांबुल ले जाया गया, जहां उन्हें फांसी दी गई.

दूसरा सऊदी स्टेट

पहले सऊद के मल्बे से ही दूसरा सऊद स्टेट उठना शुरू हुआ. सऊद परिवार ने कुछ सालों बाद ही 1824 तक सेंटर अरब के कई इलाकों पर अपना कंट्रोल दोबारा से कर लिया. 1824 में उस वक्त के सऊदी शासक तुर्की बिन अब्दुल्ला अल-सऊद ने अपनी राजधानी को दिरियाह से लगभग 20 मील दक्षिण रियाद में शिफ्ट कर दूसरे सऊदी राज्य की नींव रखी. अपने 11 साल के ही शासन काल में तुर्की बिन अब्दुल्ला ने ओटोमन्स से खोई हुई ज्यादातर जमीन वापस अपने राज्य में मिला ली.

तुर्की बिन अब्दुल्ला और उनके बाद उनके बेटे फैसल ने सऊद राज्य को आगे बढ़ाया लेकिन 1865 में ऑटोमन्स ने फिर से सऊद के खिलाफ अपने अभियान तेज कर दिए. 1880 के दशक तक तुर्की सेनाओं ने सऊदी के कई इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया जहां फैसल के बेटे अब्दुलरहमान का शासन था. ओटोमन्स के साथ से हेल के अल-रशीद परिवार ने सऊदी राज्य को उखाड़ फेंकने के प्रयास शुरू किए. बाहरी सेनाओं का लंबे समय तक सामने करने के बाद अब्दुलरहमान बिन फैसल अल-सऊद ने 1891 में रेगिस्तान में ‘बेडौइन’ जनजातियों से शरण मांगी और ‘रब अल-खली’ नाम की जगह में रहने लगे. इसके साथ दूसरा सऊद राज्य का भी अंत हो गया. अब्दुलरहमान और उनका परिवार वहां से कुवैत गए और कुवैत में 1902 तक रहे.

आज का सऊदी अरब

1902 में अब्दुलरहमान ने अल-रशीद परिवार से रियाद को वापस छीन लिया. अब्दुलरहमान ने एक छोटे से दल के साथ ही 1902 में रियाद पर कब्ज़ा लिया था. रियाद को राजधानी बनाने के बाद अब्दुलअजीज ने 1924 से 1925 तक मक्का और मदीना के साथ-साथ पूरे हिजाज पर कब्जा कर लिया. लेकिन उनको 1932 में सऊदी अरब साम्राज्य की नींव रखने के लिए अरब की कई जनजातियों को एक साथ लाना के लिए जाना जाता है. 23 सितंबर 1932 को देश का नाम सऊदी अरब रखा गया जो एक इस्लामिक राज्य बना जिसकी राष्ट्रीय भाषा अरबी और कानून पवित्र कुरान हुआ.

फिलहाल सऊदी अरब में सऊद परिवार के किंग सलमान का राज है. किंग सलमान के बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पूरे देश की तस्वीर और तकदीर बदलने में जुटे हैं. वो 2030 तक सऊदी को एक नई पहचान देने के मकसद से आगे बढ़ रहे हैं. प्रिंस सलमान ने सऊदी के नियम, कायदे-कानून बदल दिए हैं, अब वहां थिएटर में सिनेमा जाता है, महिलाएं कार ड्राइव करती हैं, नाच-गानों के इवेंट भी होते हैं. कभी तेल से अपनी इकोनॉमी को आगे बढ़ाने वाला सऊदी अब नए-नए क्षेत्रों में खुद को आत्मनिर्भर बना रहा है.

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