बढ़ता जा रहा कुष्ठ रोग का दायरा, मिले 284 नए संक्रमित- Bharat Sampark
बढ़ता जा रहा कुष्ठ रोग का दायरा, मिले 284 नए संक्रमित
कोरबा। केंद्र सरकार ने वर्ष 2027 तक कुष्ठ मुक्ति का लक्ष्य रखा है, लेकिन संक्रमण पर नियंत्रण नहीं लग पा रहा है। इसके लिए पिछले कई साल से कुष्ठ खोजों अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन नए कुष्ठ मरीजों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। वर्ष 2023 के अप्रैल से जनवरी माह के भीतर कुल 284 कुष्ठ से संक्रमित नए मरीज सामने आए हैं। इन मरीजों को विभाग की ओर से दवाईयां दी जा रही है।
कुष्ठ ऐसी बीमारी है, जिसका समय पर इलाज नहीं होने पर अपंगता की स्थिति निर्मित हो जाती है। यह बीमारी छूने से नहीं फैलती, बल्कि नाक व मुंह के माध्यम से खांसने व छिंकने से फैलती है। छींक के दौरान सामने वाले व्यक्ति में प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर बैक्टेरिया उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है। इसका असर तत्काल नहीं दिखता। औसतन पांच से छह साल के भीतर संक्रमण का असर दिखता है। शरीर के अलग-अलग हिस्से में दाग-धब्बे के रुप सामने आते हैं। पिछले पांच साल के विभागीय आंकड़े देखें तो हर साल औसतन 425 से अधिक नए मरीज सामने आ रहे हैं। बताया जाता है कि कोरोना संक्रमण के दौरान नए मरीज कम आए थे। अब स्थिति सामान्य होने के बाद धीरे-धीरे फिर से नए मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में लक्ष्य के अनुसार जिला को कुष्ठ रोग मुक्त करने को लेकर चुनौती रहेगी। हालांकि विभागीय अधिकारी की ओर से संक्रमण के दर में कमी आने की बात कही जा रही है।सर्वमंगला चौक के पास कुष्ठ रोग संक्रमित मरीजों को आवास सुविधा उपलब्ध कराई गई है। यहां चिकित्सक के द्वारा मरीजों को उपचार सलाह देने के लिए अस्पताल बनाए गए हैं, लेकिन अभी तक यहां चिकित्सक की पदस्थापना नहीं की जा सकी। मरीजों को उपचार और दवाईयां लेने के लिए तीन से सात किलोमीटर दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व मेडिकल कॉलेज अस्पताल जाना पड़ रहा है। इस दौरान उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। चिकित्सकों की मानें तो कुष्ठ रोग से संक्रमित होने पर घबराने की जरूरत नहीं है। इलाज साधारण है। कुष्ठ रोग की पहचान शून्य दाग, मोटी व कड़ी त्वचा सहित अन्य लक्षण से की जा सकती है। कुष्ठ रोग मुक्त जिला बनाने के लिए समय-समय पर कुष्ठ अभियान चलाया जाता है। इस साल अभियान जुलाई माह में चलाई गई थी। समय पर इलाज कराकर लोग इस गंभीर बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं।कुष्ठ रोग दो प्रकार के होते हैं। इसे पॉसीबैलरी (पीबी) और मल्टीबैसलरी (एमबी) के रुप वर्गीकरण किया गया है। यह चिकित्सकीय जांच के बाद पता चलता है। रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सकों की ओर से छह माह और एक साल की दवाईयां दी जाती है।