इस ऐड को देखकर बिल गेट्स को आया Microsoft का आइडिया, सबसे पहले बनाई ये डिवाइस |… – भारत संपर्क

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इस ऐड को देखकर बिल गेट्स को आया Microsoft का आइडिया, सबसे पहले बनाई ये डिवाइस |… – भारत संपर्क
इस ऐड को देखकर बिल गेट्स को आया Microsoft का आइडिया, सबसे पहले बनाई ये डिवाइस

बिल गेट्स माइक्रोसाॅफ्ट के फाउंडर.

बिल गेट्स और माइक्रोसॉफ्ट के बारे में शायद ही कोई इंसान हो जो जानता नहीं हो. अगर आप इन दोनों के बारे में नहीं जानते हैं, तो कोई बात नहीं है हम बता देंगे. माइक्रोसॉफ्ट दुनिया की सबसे बड़ी लैपटॉप और कंप्यूटर के लिए विडोज बनाने वाली कंपनी है और बिल गेट्स इसके फाउंडर मेंबर हैं. एक समय ऐसा था जब माइक्रोसॉफ्ट की बदौलत ही बिल गेट्स दुनिया के सबसे बड़े रईस बने थे, फिलहाल बिल गेट्स दुनिया के टॉप 10 रईस की सूची में 8वें नंबर पर हैं.

आपको बता दें माइक्रोसॉफ्ट विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम बनाती है. साथ ही कंपनी का माइक्रोसॉफ्ट बिंग के नाम से सर्च इंजन भी है, जो बिलकुल गूगल की तरह काम करता है. यहां हम आपको माइक्रोसॉफ्ट की शुरुआत की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसमें बताएंगे कि बिल गेट्स ने आखिर क्यों और कैसे अपनी कंपनी का नाम माइक्रोसॉफ्ट रखा.

मैगजीन के एड से आया माइक्रोसॉफ्ट का ख्याल

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माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की शुरुआत की कहानी अनोखी है. 1974 में बिल गेट्स के दोस्त पॉल एलन ने एक मैगजीन पर माइक्रोकम्प्यूटर का ऐड देखा. एलन ने मैगजीन को खरीदा और हार्वर्ड आकर बिल गेट्स को दिखाया. मैगजीन में ऐड देखने के बाद दोनों ने एक बेसिक सिस्टम बनाने का सोचा. गेट्स ने सिस्टम के प्रेजेंटेशन की पेशकश करते हुए कंप्यूटर निर्माता कंपनी को फोन किया. कंपनी ने दोनों को पहले एक इंटरप्रेटर बनाने को कहा, जो उन्होंने 8 हफ्तों में बना लिया.

गेट्स बने सबसे युवा अरबपति

कंपनी को एलन और गेट्स का इंटरप्रेटर पसंद आया. जिसके बाद दोनों को सिस्टम डेवलप करने का ऑर्डर मिल गया. यहीं से शुरू हुई ‘माइक्रोसॉफ्ट कंपनी का नाम माइक्रोप्रोसेसर के माइक्रो और सॉफ्टवेयर के सॉफ्ट से माइक्रोसॉफ्ट रखा गया 3 साल में कंपनी की सेल्स 10 लाख डॉलर पार कर गई. इसके बाद कंपनी ने कई प्रोडक्ट्स निकाले 1987 में माइक्रोसॉफ्ट पब्लिक हुई और गेट्स दुनिया के सबसे युवा अरबपति बन गए. कम्प्यूटर के बढ़ते इस्तेमाल के साथ माइक्रोसॉफ्ट लगातार बढ़ती चली गई.

क्या होता है इंटरप्रेटर

इंटरप्रेटर एक ऐसा सॉफ्टवेयर व कंप्यूटर प्रोग्राम होता है जो कि हाई लेवल लैंग्वेज में लिखे कंप्यूटर प्रोग्राम को मशीन कोड में बदल देता है. कंप्यूटर केवल मशीन कोड ही समझता है इसलिए यह जरूरी है कि कंप्यूटर की मैमोरी में मशीन कोड में लिखे प्रोग्राम ही लोड किये जाए. लेकिन मशीन कोड में प्रोग्राम लिखना इंसानों के लिए मुश्किल होता है क्योंकि इसमें केवल बाइनरी नंबर 0 और 1 ही उपयोग किये जाते हैं.

इसके विपरीत हाई लेवल लैंग्वेज में अंग्रेजी के शब्दों का अधिक उपयोग किया जाता है इसलिए हम इंसानों के लिए हाई लेवल लैंग्वेज में प्रोग्राम लिखना आसान हैं. हाई लेवल लैंग्वेज में लिखे प्रोग्राम को मशीन कोड में बदलने के लिए इंटरप्रेटर का उपयोग किया जाता है. ऐसी सॉफ्टवेयर व प्रोग्राम जो कि हाई लेवल लैंग्वेज को मशीन लैंग्वेज में बदल देते हैं उन्हें ट्रांसलेटर कहा जाता है. ट्रांसलेटर की मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं कम्पाइलर और इंटरप्रेटर. हालांकि दोनों एक ही काम करते हैं हाई लेवल लैंग्वेज प्रोग्राम को मशीन कोड में बदल देते हैं. लेकिन दोनों में थोड़ा बेसिक अंतर होता है.

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