श्री पीतांबरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा में मनाया जा रहा है…- भारत संपर्क

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श्री पीतांबरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा में मनाया जा रहा है…- भारत संपर्क

*पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव पीतांबरा पीठाधीश्वर जी ने बताया कि एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है तथा सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है।इससे परे “ब्रह्म” है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है। *

सुभाष चौक सरकंडा स्थित श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि त्रिदेव मंदिर में नवरात्र के चौथे दिन प्रातःकालीन सर्वप्रथम देवाधिदेव महादेव का महारुद्राभिषेक पश्चात श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन श्रृंगार कुष्मांडा देवी के रूप में किया गया।श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारुद्राभिषेक, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवी का षोडश मंत्र द्वारा दूधधारिया पूर्वक अभिषेक एवं परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का पूजन एवं श्रृंगार किया जा रहा है।

पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि
नवरात्रि हिंदू एवं सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जो देवी शक्ति की पूजा को समर्पित है।वर्ष में कुल चार नवरात्रि पड़ती है दो प्राकट्य और दो गुप्त। नवरात्रि हिंदू एवं सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जो देवी शक्ति की पूजा को समर्पित है। सांसारिक दृष्टि से भी देखा जाए तो चार ऋतु होती है ठंडी गर्मी बरसात एवं बसंत चार ऋतु होती है एवं नवरात्र संधि काल में पड़ता है।वर्ष में कुल चार नवरात्रि पड़ती है दो प्राकट्य और दो गुप्त।
आषाढ़ नवरात्र: आषाढ़ महीने में आता है।
शारदीय नवरात्र: आश्विन महीने में आता है। यह सबसे अधिक प्रसिद्ध नवरात्र है।
शिशिर नवरात्र: माघ महीने में आता है।
बासन्तिक नवरात्र: चैत्र महीने में आता है।
चैत्र को मधुमास और आश्विन को ऊर्जमास कहा जाता है, जो शक्ति के पर्याय हैं।

आषाढ शुक्ल पक्ष में “आषाढ़ी” नवरात्र।
आश्विन शुक्ल पक्ष में “शारदीय” नवरात्र।
माघ शुक्ल पक्ष मे “शिशिर” नवरात्र.
चैत्र शुक्ल पक्ष मे “बासन्तिक” नवरात्र।
चैत्रमास “मधुमास” एवं आश्विन मास “ऊर्जमास” नाम से प्रसिद्ध है… जो शक्ति के पर्याय है।

एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है तथा सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है।इससे परे “ब्रह्म” है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है।इसीलिए, नवमी तिथि के आगमन पर शिव शक्ति का मिलन होता है।शक्ति सहित शक्तिमान को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पड़ता है।

क्योंकि, जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर (शरीर) का स्वामी है।
“नवछिद्रमयो देहः”…. अर्थात, इन छिद्रो को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है।
1)प्रतिपदा – इसे “शुभेच्छा” कहते है, जो प्रेम जगाती है क्योंकि प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है।अतःप्रेम को अविचल अडिग बनाने हेतु शैलपुत्री का आवाहन पूजन किया जाता है,क्योंकि, अचल पदार्थो मे पर्वत सर्वाधिक अटल होता है।
2) द्वितीया- धैर्यपूर्वक “द्वैतबुद्धि” का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए।
3) तृतीया-“त्रिगुणातीत”(सत, रज, तम से परे) होकर माँ चन्द्रघण्टा का पूजन करते हुए मन की चंचलता को वश मे करना चाहिए।

4) चतुर्थी- “अन्तःकरणचतुष्टय” (मन, बुद्धि , चित्त एवं अहंकार) का त्याग करते हुए मन एवं बुद्धि को कूष्माण्डा देवी चरणो मे अर्पित करना चाहिए।

5)पंचमी-इन्द्रियो के पाँच विषयो अर्थात शब्द, रुप, रस, गन्ध एवं स्पर्श का त्याग करते हुए स्कन्दमाता का ध्यान करना चाहिए।

6)षष्ठी- काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, एवं मात्सर्य का परित्याग करके कात्यायनी देवी” का ध्यान करना चाहिए।

7)सप्तमी – रक्त, रस, माँस, मेदा,अस्थि, मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओ से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए कालरात्रि देवी की आराधना करना चाहिए।

8)अष्टमी – ब्रह्म की “अष्टधा प्रकृति” यथा “पृथ्वी,अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि एवं अहंकार” से परे “महागौरी” के स्वरुप का ध्यान करते हुए “ब्रह्म” से एकाकार होने की प्रार्थना करना चाहिए।

9)नवमी – माँ सिद्धिदात्री की आराधना “नवद्वार” वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाते हुए आत्मस्थ हो जाने का प्रयास करना चाहिए।
पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं तथा तन्त्रग्रन्थों मे आठ शक्तियाँ है…
1) ब्राह्मी – सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है।
2) माहेश्वरी – यह प्रलय शक्ति है।
3) कौमारी – आसुरी वृत्तियो का दमन करके दैवीय गुणो की रक्षा करती है।
4) वैष्णवी – सृष्टि का पालन करती है।
5) वाराही – आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते है।
6) नारसिंही – ये ब्रह्म विद्या के रुप मे ज्ञान को प्रकाशित करती है।
7) ऐन्द्री – ये विद्युत शक्ति के रुप मे जीव के कर्मो को प्रकाशित करती है।
8) चामुण्डा – प्रवृत्ति (चण्ड), निवृत्ति (मुण्ड) का विनाश करने वाली है।

आसुरी शक्तियाँ भी आठ ही हैं।
1) मोह – महिषासुर
2) काम – रक्तबीज
3) क्रोध – धूम्रलोचन
4) लोभ – सुग्रीव
5) मद मात्सर्य – चण्ड मुण्ड
6) राग द्वेष – मधु कैटभ
7) ममता – निशुम्भ
8) अहंकार – शुम्भ

इसीलिए, अष्टमी तिथि तक इन “दुर्गुणों” रुपी “दैत्यो” का संहार करके “नवमी तिथि” को “प्रकृति पुरूष” का एकाकार होना ही “नवरात्र का आध्यात्मिक” रहस्य है।

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