कहानी सीरिया के उस शिविर की जहां 10 सालों से फंसे लोग….घर वापसी की देख रहे राह |… – भारत संपर्क


सीरिया रेगिस्तान शिविर
युद्ध और जंग से किसका भला हुआ है. इससे सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही होता आया है. युद्ध से तबाही तो मचती ही है. साथ ही कई अपने भी हमेशा के लिए जुदा हो जाते हैं. हालात ऐसे पैदा हो जाते हैं कि लोग मुफलिसी की जिंदगी बसर करने के लिए मजबूर हो जाते हैं. दुख, तकलीफ और बेबसी की ऐसी ही बानगी देखने को मिल रही है जॉर्डन, सीरियाई और इराकी सीमाओं के बीच रुक्बन के नो मैन्स लैंड में. जहां घर से दूर हजारों सीरियाई लोग राहत शिविर में रहने को मजबूर हैं.
इस शिविर में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग रह रहे हैं. जो सालों से अपने घर वापस लौटने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन सालों बाद भी उनका इंतजार खत्म नहीं हो रहा. सालों पहले सरकार और जिहादियों से से बच कर इन लोगों ने रेगिस्तान में बने इस शिविर में पनाह ली थी. तब सोचा था कि जैसे ही हालात ठीक हो जाएंगे ये लोग अपने घर वापस लौट जाएंगे. लेकिन इंतजार की घड़ियां लंबी ही होती चली गई.
घर वापसी के इंतजार में लोग
जब पुलिस अधिकारी खालिद रुक्बन पहुंचे तो शिविर में रह रहे लोगों को उम्मीद थी कि वो चंद हफ्तों के अंदर घर लौट जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ये लोग अभी भी रेगिस्तानी शिविर में रह रहे हैं, जिसे देश के बाकी हिस्सों से सील कर दिया गया है. पड़ोसी देशों ने उस क्षेत्र में अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं, जो सीरियाई बलों से सुरक्षित है. यहां रह रहे एक शख्स का कहना है कि वो लोग तीन देशों के बीच फंसे हुए हैं. दूसरी जगहों पर नहीं जा सकते क्यों कि वो लोग सीरिया शासन द्वारा वांछित हैं और जॉर्डन या इराक नहीं भाग सकते. वहां की सीमाएं सील कर दी गई हैं.
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2014 में की गई थी शिविर की स्थापना
इस शिविर की स्थापना 2014 में की गई थी जब सीरिया में चल रहा युद्ध चरम पर था. जिहादियों और सरकारी बमबारी से जान बचाने के लिए लोग जॉर्डन में घुसने की उम्मीद लेकर इस्लामिक स्टेट से भाग गए थे. पहले इस शिविर में 100,000 से अधिक लोग रहते थे लेकिन संख्या कम हो गई है. खासकर 2016 में जॉर्डन द्वारा सीमा के अपने हिस्से को बड़े पैमाने पर सील करने के बाद. लोग भूख, गरीबी और चिकित्सा देखभाल की कमी से बचने के लिए सरकार के कब्जे वाले क्षेत्र में वापस लौट आए.
बुनियादी सुविधाओं के लिए कड़ी मशक्कत
आज के समय में यहां 8,000 निवासी शरण लिए हुए हैं. मिट्टी-ईंट के घरों में रह रहे लोगों को बुनियादी सुविधाओं के लिए भी कड़ी मशक्कत करना पड़ता है. खाने पीने की चीजों की कीमत काफी ज्यादा है.लोगों का कहना है कि सरकारी चौकियों ने लगभग एक महीने पहले शिविर में तस्करी के मार्गों को बंद कर दिया था, जिससे यहां खाने पीने की चीजों का खतरा मंडरा रहा है. शिविर में खाना खत्म हो रहा है.