Teachers Day 2025: IIT से लेकर नासा तक… दुनिया ने माना लोहा, फिर 5 साल तक…

बिहार में भोजपुर जिला है. इस जिले ने देश को कई महान विभूतियां दी हैं. इसी धरती ने 1857 की क्रांति के नायक बाबू कुंवर सिंह को जन्म दिया. इसी जिले ने एक और महान विभूति को जन्म दिया, वो थे गणित के जादूगर वशिष्ठ नारायण सिंह. इनकी प्रतिभा ने न केवल बिहार, बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन किया. इन्हें लोग गणित के चाणक्य और वैज्ञानिक जी के नाम से भी जानते हैं.
वशिष्ठ नारायण सिंह (Vashishtha Narayan Singh Biography) का जन्म 2 अप्रैल 1942 को भोजपुर ज़िले के बसंतपुर गांव में हुआ. उनके पिता ललन सिंह पुलिस विभाग में कार्यरत थे. परिवार आर्थिक रूप से बेहद साधारण था, लेकिन वशिष्ठ बचपन से ही पढ़ाई में असाधारण प्रतिभा के धनी थे. परिवार ने कठिनाइयों के बावजूद उनकी शिक्षा में कभी बाधा नहीं आने दी. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा नेतरहाट विद्यालय से पूरी की. 10वीं की परीक्षा में पूरे बिहार में टॉप किया और आगे पढ़ाई के लिए पटना साइंस कॉलेज में दाख़िला लिया.
वशिष्ठ नारायण के कॉलेज के किस्से
पटना साइंस कॉलेज से वशिष्ठ नारायण की प्रतिभा के किस्से मशहूर होने लगे. जब वे यहां से बीएससी कर रहे थे, तब एक अजीबोगरीब घटना घटी. सामान्यतः बीएससी का पाठ्यक्रम तीन वर्षों का होता है, परंतु वशिष्ठ नारायण ने सीधे अंतिम वर्ष की परीक्षा देने का अनुरोध किया. नियमों के मुताबिक यह संभव नहीं था, लेकिन उनकी मेधा और गहरी समझ को देखकर विश्वविद्यालय ने अपने नियमों में बदलाव किया. नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1963 में उन्होंने मात्र एक प्रयास में बीएससी की डिग्री हासिल कर ली.
एक ही सवाल को कई तरीके से सॉल्व किया
पटना साइंस कॉलेज में एक और घटना ने वशिष्ठ नारायण की ख्याति को और बढ़ा दिया. यहां एक बार गणित के प्रोफेसर क्लास में प्रश्न हल कर रहे थे. लेकिन वह बार-बार गलत हल कर रहे थे. उनकी गलती देख वशिष्ठ नारायण ने आपत्ति जताई. प्रोफेसर ने चुनौती देते हुए कहा कि वह इसे पूरी क्लास के सामने हल करके दिखाएं. वशिष्ठ बाबू आगे बढ़े और बोर्ड पर जाकर कई तरीकों से वही प्रश्न हल कर दिखाया. इससे नाराज़ होकर प्रोफेसर ने उनकी शिकायत प्रिंसिपल से कर दी. जब मामला प्रिंसिपल के सामने पहुंचा और उन्होंने वशिष्ठ से वही प्रश्न हल करने को कहा, तो उनकी प्रतिभा देखकर दंग रह गए. नतीजा यह हुआ कि वशिष्ठ को सीधे पहले वर्ष से तीसरे वर्ष में प्रमोट कर दिया गया.
1969 में गणित में PHD पूरी की
वशिष्ठ नारायण की प्रतिभा की चर्चा पटना से निकलकर अमेरिका तक भी पहुंच गई. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर जॉन कैली उनकी मेधा से प्रभावित हुए और 1965 में उन्हें अमेरिका ले गए. वहां वशिष्ठ नारायण ने वर्ष 1969 में गणित में पीएचडी पूरी की. उनका शोध चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत (Reproducing Kernel Hilbert Spaces) पर आधारित था, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई.
इसके बाद वे वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बने और कुछ समय तक नासा में भी कार्य किया. हालांकि, अमेरिका की चमक-धमक उन्हें रास नहीं आई. उनका मन भारत में ही बसता था. इसी कारण 1971 में उन्होंने सबकुछ छोड़कर भारत लौटने का निर्णय लिया.
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पढ़ाई में इतने डूबे कि शादी के दिन भी लेट पहुंचे
भारत आने के बाद वशिष्ठ नारायण ने देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्य किया. वे आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता से जुड़े. 1973 में उनका विवाह हो गया. विवाह के दिन भी वे पढ़ाई में इतने डूबे थे कि बारात देर से पहुंची. विवाह के बाद धीरे-धीरे उनके असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को जानकारी मिली. छोटी-सी बात पर ग़ुस्सा होना, रातभर पढ़ाई करना और दिनभर कमरे में बंद रहना जैसे लक्षण सामने आने लगे.
5 साल के लिए हो गए गायब
1974 में वशिष्ठ बाबू को दिल का दौरा पड़ा और रांची में इलाज हुआ. इसी दौर में उनका मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगा. बीमारी ने उनकी प्रतिभा पर भारी असर डाला और निजी जीवन भी प्रभावित हुआ. उनकी पत्नी ने तलाक ले लिया. 1987 में वे अपने गांव लौटकर मां और भाई के साथ रहने लगे. अगस्त 1989 में इलाज के लिए रांची से बेंगलुरु ले जाते समय खंडवा स्टेशन पर वे अचानक ट्रेन से उतर गए और भीड़ में गुम हो गए. लगभग पांच वर्षों तक उनका कोई पता नहीं चला. अंततः वे छपरा में मिले और फिर सरकार ने उन्हें बेंगलुरु के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS) में भर्ती कराया.
1993 से 1997 तक उनका इलाज चला. यहां करीब एक साल से अधिक इलाज के बाद सुधार होने पर छुट्टी दे दी गई.
14 नवंबर 2019 को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (PMCH) ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इनकी मृत्यु से न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई.