सूर्य देव को अर्घ्य देकर मनाया गया लोक आस्था का सबसे बडा…- भारत संपर्क
अन्य पर्वो को पर्व कहते हैं लेकिन छठ को महापर्व, क्योंकि यह लोक आस्था का सबसे बड़ा उत्सव है। इसमें लोक परंपराओं ने आस्था की गहरी जड़े जमाई है। इसका विस्तार अब देश के अधिकांश हिस्से में देखा जा रहा है । सूर्य और प्रकृति उपासना का यह पर्व विश्व में अद्भुत है, यहां जिस देव की उपासना की जाती है, वे हमारे सामने साक्षात है। जिस तरह से बच्चों के जन्म लेने के 6 दिन बाद छठी मनाई जाती है। यह उसी तरह सूर्य देव की छठी है। मान्यता है कि दीपावली की अमावस की तिथि पर ही सूर्य देव का जन्म हुआ था, इसलिए उससे छठवें दिन उनकी छठी मनाई जा रही है।
एक तरफ जहां यह सूर्य की छठी है तो वही ब्रह्मा की मानस पुत्री और शक्ति की एक स्वरूप सष्ठी देवी की भी पूजा इस दिन की जाती है। मान्यता है कि सष्ठी देवी की कृपा से ही संतान की उत्पत्ति होती है और उनकी आराधना से संतान का मंगल होता है। विशेष बात यह है कि इस पूजा अर्चना में छठी मैया की कोई प्रतिमा नहीं होती। जो व्रती है , वही छठी मैया है। और आसमान पर तो साक्षात सूर्य देव है। इन्हीं की आराधना इस महापर्व पर की जाती है। इस पर्व का कोई लिखित विधान नहीं है। लोक परंपराओं में चीजे जुड़ती गई, इसलिए इसे सबसे बड़ा लोक उत्सव भी कहते हैं।
छठ का इतिहास
मान्यता है कि व्रती ही छठी मैया है, जो सूर्य देव को अपना पुत्र मानकर उनकी छठी मना रही है। कहते हैं कि वनवास से वापस लौटकर सीता मैया ने यह पर्व मनाया था। कुंती ने भी सूर्य उपासना की थी और करण भी सूर्य देव को अर्घ्य दिया करते थे। छठ प्रकृति के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के साथ यह भी संदेश देता है कि केवल उगते सूरज को ही नहीं बल्कि अस्त होते सूरज की भी उपासना की जाती है। जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यह चार दिन का त्यौहार है। जिसमें पूरे परिवार की भागीदारी होती है। पहले दिन नहाए खाए और फिर दूसरे दिन खरना का व्रत और फिर आज है सूर्य उपासना का महान अवसर।
यह नियम और निष्ठा का पर्व है। छठ पूजा का भले ही कोई स्पष्ट लिखित विधान न हो लेकिन नियम बहुत कड़े हैं। 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत रखकर व्रती दोपहर बाद से ही नंगे पांव घाट पर पहुंचने लगे।
क्यो है छठ घाट की महिमा
बिलासपुर में भी अब कई स्थानों पर छठ पर्व मनाया जा रहा है लेकिन आज भी तोरवा का छठ घाट, छठ महापर्व का केंद्र है, जहां दीपावली से पहले ही तैयारी आरंभ हो गई थी। पूरे घाट को स्वच्छ- निर्मल किया गया है। व्यवस्था ऐसी कि नंगे पांव आने वाले व्रतियों के पांव में एक कंकड़ ना चुभे इसका ध्यान रखा गया है। बिलासपुर में करीब 7 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस छठ घाट के केवल घाट की ही लंबाई करीब एक किलोमीटर है । यहां स्थान आरक्षण का नियम नहीं है। फिर भी सुबह से ही लोग चादर बिछाकर अपने लिए स्थान सुरक्षित कर चुके थे। सुबह से ही घाट पर छठी मैया के गीत गूंजने लगे। दोपहर बाद गाजे बाजे के साथ व्रती घाट पहुंचने लगे, जिनके आगे आगे पुरुष सदस्य सर पर या बहंगी में दउरा, सूपा में छठ पूजा की सामग्री, फल, सुहाग सामग्री लेकर पहुंचे।
सूर्य उपासना के सबसे बड़े लोक उत्सव की विशेषता यह है कि इसमें कोई पुजारी नहीं होता। कोई प्रतिमा नहीं होती। कोई मंत्र नहीं होता। परिजनों के साथ व्रतियों ने ही घाट पर गन्ने का मंडप सजाया । सूपा में विविध पूजन सामग्री से घाट सतरंगी छटा बिखरने लगी। नाक से लेकर मांग तक विशेष सिंदूर लगे व्रतधारियों की चेहरे की चमक ही बता रही थी कि इस व्रत में कितना प्रताप है। बिलासपुर का छठ घाट इस कोने से लेकर उस कोने तक खचाखच भरा नजर आया। व्रतियों के अलावा यहां छठ पूजा देखने भी हजारों लोग पहुंचे । एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष 50 हजार से अधिक श्रद्धालु छठ घाट में उपस्थित हुए। सभी की निगाहें आसमान पर टिकी रही। बादलों के बीच जैसे ही सूर्य देव अस्ताचलगामी हुए सभी ने अरपा नदी के जल में कमर तक डूब कर उन्हें अर्घ्य प्रदान किया। धूप- दीप दिखाकर उनकी आरती की गई।
कभी इसे केवल बिहार और उत्तर भारत का पर्व बताया जाता था। असल में यह सनातन के सबसे बड़े पर्वों में से एक है। अब तो यहां भी सैकड़ो की संख्या में लोग छठ पूजा करने लगे हैं । पहले दिन अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ ही व्रती घर की ओर लौटने लगे।
बिलासपुर के छठ घाट का आयोजन अब देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गया है। बताते हैं कि यह विश्व का सबसे बड़ा स्थाई घाट है, जिसकी चर्चा हर तरफ है। समिति द्वारा जिस व्यापक स्तर पर तैयारी की जाती है, उसी का प्रताप है कि यह आयोजन हर वर्ष इतना भव्य होता जा रहा है आयोजक पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच के अध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र कुमार दास ने भी बताया कि यह उनके लिए सुखद अवसर है कि उनके प्रयास को ऐसा परिणाम मिला है।
सूर्य उपासना का यह पर्व कई संदेश देता है। बिना सूर्य देव के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह उनके प्रति कृतज्ञता जताने का पर्व है, तो वही यह पर्व सिखाता है कि केवल सफलता ही नहीं असफलता को भी सम्मान देना चाहिए। उगते सूर्य के साथ डूबते सूर्य को अर्घ्य देना इसी का प्रतीक है।
छठ महापर्व के अवसर पर आयोजन समिति द्वारा दिन भर निशुल्क भंडारा चलाया गया। दोपहर से लेकर रात 11:00 बजे तक हजारों की संख्या में लोगों ने यहां प्रसाद ग्रहण किया। छठ घाट का आकर्षण हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। हर वर्ष छठ व्रतियों के लौटते ही घाट सुना हो जाता था लेकिन इस बार देर रात तक लोगों की भीड़ छठ घाट पर नजर आई, जो यहां लगे मेले का खूब आनंद उठाते दिखे।