वो इकलौता चुनाव जब छिंदवाड़ा में नहीं चला था कमलनाथ का सिक्का | kamal nath … – भारत संपर्क

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वो इकलौता चुनाव जब छिंदवाड़ा में नहीं चला था कमलनाथ का सिक्का | kamal nath … – भारत संपर्क

मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ के बीजेपी में जाने की अटकलें तेज हैं. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ माना जाता है और छिंदवाड़ा के अपराजेय यौद्धा हैं. साल 1980 के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने छिंदवाड़ा से कमलनाथ को उम्मीदवार बनाया था और जनता से अपील की थी कि वह कांग्रेस के नेता को वोट नहीं दें, बल्कि उनके तीसरे बेटे को वोट देकर जिताएं. साल 1980 के लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा सीट से युवा कमलनाथ ने जेपी के प्रतुल्ल चंद द्विवेदी को पराजित कर पहली जीत हासिल की थी. यह जीत का सिलसिला कभी कमलनाथ का, तो कभी उनकी पत्नी अलका नाथ का और अब उनके बेटे नकुलनाथ का चल रहा है. लेकिन 1980 से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल साल 1997 का लोकसभा चुनाव उपचुनाव ऐसा रहा, जब छिंदवाड़ा में कमलनाथ का सिक्का नहीं चला था और उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा था.
इंदिरा गांधी ने साल 1980 में 1952 से लगातार सांसद रहे गार्गी शंकर मिश्र की जगह कमलनाथ को उम्मीदवार बनाया था और कमलनाथ विजयी रहे थे. साल 1980 से लेकर साल 1991 तक चार बार छिंदवाड़ा से कमलनाथ सांसद रहे थे, लेकिन साल 1996 में कमलनाथ का नाम हवाला कांड में सामने आया. हवाला कांड में नाम सामने आने के बाद कांग्रेस ने साल 1996 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया. कमलनाथ की जगह उनकी पत्नी अलका नाथ को उम्मीदवार बनाया गया. छिंदवाड़ा की जनता पर कमलनाथ का पूरा भरोसा था और जनता ने भी उनका साथ दिया और उनकी पत्नी ने अलका नाथ ने बीजेपी के चौधरी चंद्रभान को लगभग 21 हजार वोट से पराजित कर जीत हासिल की थी.
बंगले के कारण कमलनाथ ने पत्नी से दिलवाया था इस्तीफा
हालांकि कमलनाथ अपनी पत्नी को छिंदवाड़ा में जीतने में सफल रहे, लेकिन वह सांसद नहीं बन पाए थे. इस कारण सांसद के नाते दिल्ली में मिला एक बड़ा बंगला उन्हें खाली करने का नोटिस दिया गया. कमलनाथ चाहते थे कि यह बंगला उनके हाथ से नहीं जाए और उन्होंने इसके लिए बहुत कोशिश की, लेकिन चूंकि उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनी थीं. इस कारण उन्हें वह बंगला आवंटित नहीं किया जा रहा था और कमलनाथ किसी भी कीमत पर वह बंगला छोड़ना नहीं चाहते थे. ऐसे में कमलनाथ ने बंगले के खातिर अपनी पत्नी अलका नाथ से सांसद पद से इस्तीफा दिलवा दिया. उसके बाद साल 1997 में छिंदवाड़ा में लोकसभा उपचुनाव हुए और उस उप चुनाव में कमलनाथ कांग्रेस के उम्मीदवार बने. तब तक हवाला कांड से कमलनाथ बरी हो गए थे.
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कमलनाथ को पूरी उम्मीद थी कि वह फिर से छिंदवाड़ा से जीत जाएंगे. उस समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह उस समय मध्य प्रदेश के सीएम थे. ऐसे में पूरे देश में यह चर्चा थी कि कमलनाथ की जीत तय है, लेकिन बीजेपी ने उस चुनाव में बड़ा दांव खेला और उस समय के बीजेपी के बड़े नेता सुंदरलाल पटवा को कमलनाथ के खिलाफ उतार दिया. सुंदरलाल पटवा के कमलनाथ के खिलाफ उम्मीदवार बनने से यह सीट हाईप्रोफाइल बन गई. पूरी मीडिया का ध्यान इस सीट पर चला गया.
और पहली बार छिंदवाड़ा से चुनाव हार गए कमलनाथ
बीजेपी ने चुनाव में मुद्दा बनाया कि जब कमलनाथ की पत्नी अलका नाथ छिंदवाड़ा से सांसद थीं, तो फिर चुनाव कराने की जरूरत क्या थी? ऐसे में छिंदवाड़ा में बीजेपी ने कमलनाथ के खिलाफ हवा बनाने में कामयाब रही. लोग भी यह कहने लगे कि इस बार छिंदवाड़ा से कमलनाथ को हराएंगे, चाहे अगली बार उन्हें फिर जीता दें. चुनाव प्रचार के दौरान 73 साल के पटवा और युवा कमलनाथ के बीच जमकर मुकाबला हुआ. दोनों पार्टियों के दिग्गज नेताओं ने अपने उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार किया.
इस बीच, खुफिया रिपोर्ट में मतदान के दौरान हिंसा की बात सामने आयी. भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती हुई, लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आये, तो सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को 38 हजार से ज्यादा वोट से हरा दिया. हालांकि, 1998 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने बड़े अंतर से सुंदर लाल पटवा को हराकर अपनी हार का बदला ले लिया. इसके बाद से कमलनाथ की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर पकड़ कभी ढीली नहीं पड़ी.
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अपने जीवन की इस एक एक हार ने कमलनाथ को आत्म विश्लेषण करने का अवसर दिया. उसके बाद उन्होंने हार की कारणों को जाना और फिर वह छिंदवाड़ा से अपराजेय बन गए. उस चुनाव के बाद कमलनाथ फिर कभी छिंदवाड़ा से नहीं हारे. साल 2019 में जब पूरे देश में मोदी की लहर थी, तो कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ ने मध्य प्रदेश में अकेले छिंदवाड़ा से जीत हासिल की थी.

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