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न्यायालय से छल करने वाले कोर्ट रीडर को सुनाई गई सजा, 3-3 वर्ष की तीन अलग-अलग सजाओं से किया गया दंडित

कोरबा। न्यायालय और न्यायाधीश से छल करने वाले कोर्ट के क्रिमिनल रीडर को 3-3 वर्ष की तीन अलग-अलग कठोर सजाओं से दंडित किया है। उसे अपराध और अपराध के दंड, दोनों का ज्ञान था, इसलिए उसे उदारता का पात्र नहीं माना गया।दीपका थाना में पदस्थ आरक्षक श्रीराम कंवर को 1 अगस्त 2015 को वर्ष 1998 से 2015 तक की अवधि में विभिन्न अपराधों की जप्ती रकम 3 लाख 43 हजार 869 रूपये जप्ती सूची अनुसार मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोरबा अनिष दुबे के न्यायालय में जमा करने हेतु भेजा गया था। उसने सीजेएम न्यायालय पहुंचकर उक्त राशि जमा करने के संबंध में चर्चा की तब आरोपी मुकेश यादव न्यायालय के अंदर मिला और सीजेएम न्यायालय में स्वयं को लिपिक होना बताया। आरक्षक ने मुकेश यादव से पैसा जमा करने के संबंध में चर्चा की। तब न्यायालय के नजारत में जमा करने रकम 3,43,869/- रूपये उससे जमा लेकर जप्ती माल सूची में पावती सीजेएम न्यायालय कोरबा के सील एवं हस्ताक्षर सहित दिया था। उसके पश्चात् मुकेश यादव को थाने के माल फर्द चालान में पावती लेने को कहा तो उसने बिलासपुर उच्च न्यायालय में विशेष बैठक होने का हवाला देते हुए 3 अगस्त 2015 को न्यायालय समय में पावती सीजेएम न्यायालय में लेने के लिए कहा। उस दिन पावती लेने लिपिक मुकेश यादव का पता किया तो वह न्यायालय में नहीं मिला। मुकेश यादव के लिपिक होने के संबंध में न्यायालय के अन्य लिपिकों से चर्चा में उन्होंने किसी मुकेश यादव को न्यायालय में व नजारत में लिपिक होने से इंकार कर दिया। इसके बाद प्रार्थी ने सीजेएम के समक्ष उपस्थित होकर ज्ञापन को दिखाया, जिन्होंने अपने न्यायालय का नहीं होना व हस्ताक्षर को भी अपना नहीं होना बताया। इस तरह मुकेश यादव द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के नाम पर कूटरचित दस्तावेज (ज्ञापन) तैयार कर न्यायालय का लिपिक होना बताकर जप्ती रकम 3,43,869 रूपये की ठगी किया गया। आरक्षक की रिपोर्ट पर मुकेश यादव के विरुद्ध थाना कोतवाली में अपराध क्रमांक-309/2015 पर धारा 419, 420, 467, 468 एवं 471 भा.दं.सं. दर्ज किया गया। विवेचना के दौरान प्रकरण में तत्कालीन सीजेएम न्यायालय के बाबू मनोज देवांगन की संलिप्तता पाई गई, तब न्यायालय से अनुमति लेकर मनोज देवांगन को गिरफ्तार किया गया व मनोज यादव अब तक फरार है। आरोपीगण के विरूद्ध धारा 120 बी एवं 201 भा.दं.सं.जोड़ा गया। प्रकरण के विचारण में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पीठासीन अधिकारी सत्यानंद प्रसाद ने दोषसिद्ध पाते हुए मनोज देवांगन को कठोर सजा से दंडित किया है।प्रकरण में शासन की ओर से डीपीओ एस के मिश्रा ने मजबूत पैरवी की।
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महाभारत की न्याय व्यवस्था
न्यायाधीश ने फैसला सुनाते वक्त महाभारत के एक अंश को उद्धृत किया जिसमें युवराज युधिष्ठिर के द्वारा दंड देते समय एक ही अपराध के चार अलग-अलग व्यक्तियों को अपराध और उसके परिणाम के ज्ञान के आधार पर अलग-अलग दंड दिया था। युवराज युधिष्ठिर ने अपने दंड का आधार यह बताया था कि अपराध के लिए दंड सदैव अपराध और उसके परिणाम के ज्ञान के अनुसार होना चाहिए। इस प्रकरण में आरोपी मनोज देवांगन को न्यायालय का कर्मचारी होने के कारण, उसे भली-भांति अपराध और उसके दंड दोनों का ज्ञान था, ऐसी दशा में आरोपी मनोज देवांगन और अधिक गंभीर दंड का पात्र हो जाता है। दंड विधि का यह स्थापित सिद्धांत है कि दंड सदैव अपराध की गंभीरता के अनुरूप होना चाहिए। अत:मनोज देवांगन किसी भी प्रकार की उदारता का पात्र नहीं माना गया।

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