चुन चुनकर मारा, घर लूटा… रवांडा का वो भयानक नरसंहार जिसमें 8 लाख लोगों की हुई थी… – भारत संपर्क

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चुन चुनकर मारा, घर लूटा… रवांडा का वो भयानक नरसंहार जिसमें 8 लाख लोगों की हुई थी… – भारत संपर्क
चुन-चुनकर मारा, घर लूटा... रवांडा का वो भयानक नरसंहार जिसमें 8 लाख लोगों की हुई थी मौत

30 साल पहले रवांडा में हुए नरसंहार में 8 लाख लोगों की जान गई थी.

कुतुब मीनार में रवांडा नरसंहार की बरसी पर श्रद्धांजलि दी गई. कुतुब मीनार पर रवांडा के झंडे के रंग की लाइट जला कर नरसंहार को याद किया गया. रवांडा में तुत्सी जाति के खिलाफ 1994 के नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय चिंतन दिवस ( UN International Day of Reflection) मनाया गया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने एक्स पर पोस्ट कर जानकारी दी कि, आर्थिक संबंध के सचिव (Secretary Economic Relations) दम्मू रवि ने आज किगाली (रवांडा की राजधानी) में नरसंहार के 30 साल होने पर नरसंहार की बरसी पर भारत का प्रतिनिधित्व किया.

अप्रैल 1994 अफ्रीका के देश रवांडा के लिए भयानक साल साबित हुआ था. इस साल देश में भयानक नरसंहार हुआ. जिसमें 100 दिन के अंदर 8 लाख लोगों की मौत होगई थी. इस साल रवांडा के इस नरसंहार को तीन दशक होगए है. दो जाति हुतू और तुत्सी के बीच तनाव के चलते ये नरसंहार सामने आया था.

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दो जातियों के बीच तनाव

अप्रैल 1994 से पहले ही हूतू और तुत्सी के बीच तनाव पैदा हो रहा था. 1991 की जनगणना के अनुसार तुत्सी, जो जनसंख्या का 8.4 प्रतिशत थे, माना जाता है कि वो श्वेत यूरोपीय लोगों के करीब थे. हूतू आबादी का 85 प्रतिशत हिस्सा थे, लेकिन जनसंख्या में ज्यादा होने के बाद भी शिक्षा और आर्थिक अवसरों तक उनकी पहुंच नहीं थी, लंबे समय से तुत्सी का देश पर दबदबा रहा था.

हूतू के हाथ आई सत्ता

जिसके बाद 1959 में, जैसे ही पूरे अफ्रीका में स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ, हूतू ने तुत्सी के खिलाफ हिंसक विद्रोह किया. लगभग 1 लाख लोग, ज्यादातर तुत्सी ने, हत्याओं और हमलों के बाद जान बचाने के लिए युगांडा समेत दूसरे पड़ोसी मुल्कों में शरण ली. इसके बाद एक तुत्सी समूह ने विद्रोही संगठन रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) बनाया. ये संगठन 1990 के दशक में रवांडा आया और संघर्ष शुरू हुआ.

नरसंहार शुरू होने की वजह

ये लड़ाई 1993 में शांति समझौते के साथ खत्म हो गई थी. लेकिन छह अप्रैल 1994 की रात तत्कालीन राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति केपरियल नतारयामिरा को ले जा रहे विमान को किगाली (रवांडा की राजधानी) , रवांडा में गिराया गया था. इसमें सवार सभी लोग मारे गए. जहां से इस भयानक नरसंहार की शुरुआत हुई.

लाखों की हुई मौत

किसने ये जहाज गिराया था, इसका फैसला अब तक नहीं हो पाया है. कुछ लोग इसके लिए हूतू को जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि कुछ लोग रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) को. चूंकि ये दोनों नेता हूतू जनजाति से आते थे इसलिए इनकी हत्या के लिए हूतू ने आरपीएफ को जिम्मेदार ठहराया. जिसके तुरंत बाद हत्याओं का दौर शुरू हो गया. आरपीएफ ने हूतू पर आरोप लगाया कि विमान को हूतू ने ही इसीलिए मार गिराया ताकि नरसंहार का बहाना मिल सके.

महिलाओं के साथ हुआ अपराध

इस नरसंहार से पहले बेहद सावधानी से हूतू ने उन तुत्सी लोगों की लिस्ट दी जो सरकार की आलोचना करते थे. जिसके बाद लिस्ट में शामिल सभी लोगों को उनके परिवार के साथ मारना शुरू कर दिया. यहां तक के हूतू समुदाय से जुड़े लोगों ने अपने तुत्सी समुदाय के पड़ोसियों को मार डाला. लड़ाकों ने सड़कों पर नाकेबंदी कर दी, जहां चुन-चुनकर तुत्सियों की धारदार हथियार से हत्या कर दी गई. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हजारों तुत्सी महिलाओं का अपहरण किया गया. उन्होंने महिलाओं के साथ बलात्कार किया और घरों को लूटा. बाद में, पीड़ितों को स्टेडियम या स्कूलों जैसी बड़ी खुली जगह में ले जाया गया जहां उनका नरसंहार किया गया.

हत्याएं 100 दिन बाद 4 जुलाई को तब रुकी जब आरपीएफ ने, किगाली पर कब्जा कर लिया. यह शायद कभी पता नहीं चल पाएगा कि कितने लोग मारे गए क्योंकि आज भी वहां कब्रें मिलती हैं. हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि तीन महीने के नरसंहार में 8 लाख लोगों को मारा गया.

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