इंडिया नहीं अफ्रीका के लिए होगी जंग, अंबानी मित्तल भिड़ेंगे…- भारत संपर्क

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इंडिया नहीं अफ्रीका के लिए होगी जंग, अंबानी मित्तल भिड़ेंगे…- भारत संपर्क
इंडिया नहीं अफ्रीका के लिए होगी जंग, अंबानी मित्तल भिड़ेंगे आमने-सामने

मुकेश अंबानी और सुनील मित्‍तल

भारत में 5जी नेटवर्क लॉन्च हो चुका है. जियो से लेकर एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया तक सभी कंपनियां अपने यूजर बेस को बढ़ाने में हर संभव प्रयास कर रही है. इन सबके बीच कुछ टेलीकॉम कंपनियां अफ्रीका में भी अपना विस्तार करने की कोशिश कर रही हैं. बहुत से लोग यह नहीं जानते होंगे कि एयरटेल भारत की तरह लगभग आधे अफ़्रीका में भी उतना ही फेमस ब्रांड है, जैसे इंडिया में है. यह दक्षिण अफ्रीका की एमटीएन के बाद महाद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी है. चौदह साल पहले, भारती एयरटेल के अध्यक्ष सुनील मित्तल ने अफ्रीका जाने का साहसी निर्णय लिया था, जिसका फायदा आज तक उन्हें हो रहा है.

अब जबकि एयरटेल अफ्रीका मुश्किलों से बाहर निकलता दिख रहा है और पूरे महाद्वीप के 14 देशों में अपनी पैठ बना चुका है, तो एक बड़ी चुनौती सामने आ सकती है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के चेयरमैन मुकेश अंबानी, जिन्होंने 2015 में रिलायंस जियो लॉन्च करके कम टैरिफ और सस्ते हैंडसेट के साथ भारत के टेलीकॉम बाजार में तहलका मचा दिया था और एयरटेल को पछाड़कर मार्केट लीडर बन गए. अब उनकी एक सब्सिडियरी कंपनी ने अफ्रीकी टेलीकॉम मार्केट में भी एंट्री कर लिया है.

अफ्रीका में हुई अंबानी की एंट्री

घाना ने अपनी टेलीकम्युनिकेशन कैपेबिलिटी बढ़ाने के लिए 4जी और 5जी नेटवर्क के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए रिलायंस जियो की एक सब्सिडियरी, टेक महिंद्रा और अन्य कंपनियों के साथ एक डील साइन की है. घाना की सरकारी कंपनी नेक्स्ट-जेन इन्फ्रास्ट्रक्चर (एनजीआईसी) ने सस्ती 5जी मोबाइल ब्रॉडबैंड सर्विस देने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए जियो की कंपनी रेडिसिस, टेक महिंद्रा और नोकिया के साथ साझेदारी की है. पश्चिम अफ्रीकी देश की संचार मंत्री उर्सुला ओवसु-एकुफुल ने कहा कि इसके लिए भारत की तारीफ की है, और नई सीख लेने की बात कही है.

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इस वजह से भारतीय कंपनियों को मिला मौका

एनजीआईसी को 5जी स्पेक्ट्रम आवंटित किया गया है और स्थानीय दूरसंचार कंपनियां अगले छह महीनों में सेवाएं शुरू करने के लिए शेयर्ड बुनियादी ढांचे का उपयोग करेंगी. रिपोर्ट के अनुसार, कुल डील 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का है. उन्होंने चीनी कंपनियों के बजाय भारत की कंपनियों को चुने जाने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि यह हमारे लिए एक रणनीतिक विकल्प था. हम किसी भी भू-राजनीति में फंसना नहीं चाहते हैं. हम वही चाहते हैं जो हमारे राष्ट्रीय हित के लिए सर्वोत्तम हो.

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