दुनिया ने आजतक नहीं देखा इससे बड़ा जहाज, जिसकी सिर्फ मरम्मत…- भारत संपर्क

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दुनिया ने आजतक नहीं देखा इससे बड़ा जहाज, जिसकी सिर्फ मरम्मत…- भारत संपर्क
दुनिया ने आजतक नहीं देखा इससे बड़ा जहाज, जिसकी सिर्फ मरम्मत में लगे 2212 करोड़

दुनिया का सबसे बड़ा जहाज

हॉलीवुड में जब ‘टाइटैनिक’ की कहानी पर फिल्म बनी, तो लोगों के जेहन में 1912 की वो घटना एकदम तरोताजा हो गई, जिसमें उस दौर का दुनिया का सबसे बड़ा जहाज अपनी पहली ही यात्रा के दौरान डूब गया था. इस दुर्घटना में करीब 1500 लोगों की जान चली गई थी और उसके बाद जैसे दुनिया ने बड़े जहाज बनाने से तौबा ही कर ली. फिर भी मालवहन के लिए बड़े जहाज बनते रहे, लेकिन जापान ने 1979 में एक ऐसा पानी का जहाज बनाया, जिसने दुनिया के हर समंदर पर राज किया. इस जहाज का भारत से भी एक खास कनेक्शन है.

साल 1974-79 के बीच जापान की सुमिटोमो हेवी इंडस्ट्रीज ने ‘सीवाइज जाइंट’ का निर्माण किया. आजतक दुनिया में इससे बड़ा जहाज नहीं बना है. लंबाई के मामले में ये टाइटैनिक से भी दोगुना था. हालांकि ये भी एक मालवाहक जहाज ही था. समय के साथ इस जहाज के मालिक और इसके नाम बदलते रहे और लगभग 2010 में जाकर इसका नाम लुप्त हुआ.

मालिक ने लेने से कर दिया मना

हुआ यूं कि जापान ने ओप्पामा शिपयार्ड में इस जहाज को बनाने काम शुरू कर दिया, जिसे बनाने का ऑर्डर एक यूनान के व्यापारी ने दिया था. बनाने में वक्त थोड़ा ज्यादा लगा तो मालिक ने इसे लेने से ही मना कर दिया. तब तक जहाज का नाम नहीं रखा गया था. इसके बाद बनाने वाली कंपनी और जहाज के मालिक के बीच लंबी कानूनी लड़ाई चली और ओप्पामा शिपयार्ड की वजह से इसे ‘ओप्पामा’ ही नाम दे दिया गया. हालांकि बाद में शिपयार्ड ने ये जहाज चीन के सी. वाई. टुंग को बेच दिया. उन्हीं के नाम के अपभ्रंश के तौर पर इसका नाम ‘सीवाइज जाइंट’ पड़ा.

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जब ईरान-इराक युद्ध में जहाज हुआ तबाह

ये जहाज मुख्य तौर पर क्रूड ऑयल को लाने-ले जाने का काम करता था. ये एक साल में करीब 2 बार पूरी धरती का चक्कर भी लगा लेता था. बात 1988 की है, जब ये जहाज ईरान से कच्चा तेल लेकर निकला, तब रास्ते में लाराक आईलैंड पर थोड़ी देर रेस्ट करने के लिए रुक गया. इसी दौरान इराक के तब के राष्ट्राध्यक्ष सद्दाम हुसैन की एयरफोर्स ने इस जहाज पर हमला बोल दिया और ये उसी ये उथले पानी में हल्का डूब गया.

रिपेयर पर आया 2212 करोड़ का खर्च

1988 के बाद इस जहाज को रिपेयर के लिए भेज दिया गया. टीओआई की एक खबर के मुताबिक उस दौर में इसकी रिपेयरिंग पर ही 10 करोड़ डॉलर का खर्च आया, जिसका आज की तारीख में मूल्य करीब 26.5 करोड़ डॉलर होता. भारतीय मुद्रा में देखें तो ये राशि करीब 2212 करोड़ रुपए बैठती है.

इस जहाज की खास बात ये थी कि इसकी लंबाई करीब 1500 फीट थी. जबकि टाइटैनिक आकार में लगभग इसका आधा था. 1988 के बाद मरम्मत के लिए 2 साल तक समंदर से बाहर रहने के बाद 1991 में इसे फिर नया मालिक मिल गया. इसे नॉर्वे की एक कंपनी ने खरीदा और तब इसका नाम ‘जहारे वाइकिंग’ पड़ा. ये दुनिया का सबसे बड़ा जहाज होने के साथ-साथ सबसे बड़ा सेल्फ-प्रोपेल्ड जहाज भी था.

भारत में मिला इस जहाज को अंतिम पड़ाव

‘जहारे वाइकिंग’ नाम से ही इस जहाज को सबसे ज्यादा पॉपुलैरिटी मिली. 1991 के बाद भी इसने लगभग 20 साल तक समंदर पर फिर राज किया. साल 2009 में ये भारत के गुजरात पहुंचा. इसे यहां दुनिया के सबसे बड़े शिप ब्रेकिंग यार्ड में से एक ‘अलंग’ में डिस्मेंटल किया गया. करीब 1000 मजदूरों को इस काम में पूरा एक साल लगा. इस जहाज का लंगर ही करीब 36 टन वजनी था, जो अभी हांगकांग के मैरीटाइम म्यूजियम में रखा गया है.

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