बलात्कार , फिर बलात्कार के सबूत मिटाने के लिए चोरी और अब…- भारत संपर्क


रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी में एक महिला के साथ हुए अमानवीय बलात्कार और फिर उस बलात्कार के साक्ष्य मिटाने के लिए पीड़िता के घर में चोरी जैसे संगीन साजिश के आरोपी निखिल चंद्राकर को माननीय उच्च न्यायालय से शर्तिया जमानत भले ही मिल गई हो, लेकिन कानूनी शिकंजा अभी ढीला नहीं हुआ है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से इस मामले का ट्रायल छह माह के भीतर पूरा करने का निर्देश भी जारी किया है।
बलात्कार का सबूत मिटाने वाले मामले में 721 दिन तक पुलिस ने दबाए रखा मामला
पूरा मामला इस प्रकार है कि निखिल चंद्राकर एक पीड़िता को शादी का झांसा देकर बलात्कार फिर दिनांक 28 दिसंबर 2022 को निखिल चंद्राकर ने पीड़िता के ही घर से बलात्कार से संबंधित महत्वपूर्ण मेडिकल दस्तावेज एवं शैक्षिक प्रमाण पत्र की अपने गिरोह के दो सहयोगी सदस्यों को निर्देश देकर उन दस्तावेजों की चोरी करवाई इस मामले की शिकायत पत्र के साथ स्पष्ट सीसीटीवी फुटेज लेकर पीड़िता थाना खम्हारडीह पहुंची तत्कालीन थाना प्रभारी विजय यादव द्वारा पीड़िता की शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की गई बल्कि पीड़िता को ही किसी झूठे मामले में फंसा कर जेल भेज दूंगा कहकर जलील करते हुए थाने के बाहर निकलने को कह दिया। काफी लंबे समय तक पीड़िता वरिष्ठ अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाते रही। 721 दिनों तक पुलिस ने इस गंभीर अपराध की शिकायत को दरकिनार कर रखा और अंततः 19 दिसंबर 2024 को FIR क्रमांक 552/2024 दर्ज की गई।
सबूत मिटाने के लिए चोरी की सुनियोजित साजिश
निखिल चंद्राकर ने अपने परिवार एवं सहयोगियों की आड़ लेते हुए निर्देशित कर अपनी पत्नी तलविंदर चंद्राकर उर्फ चिक्की, बेटी इशिता चंद्राकर उर्फ हनी, सहयोगी उमिदा बानो, अंजू मोदी, सोनू गरचा, मोनू गरचा, स्पर्श गुप्ता (होटल कोर्टयार्ड मैरियट में कार्यरत राजीव गुप्ता का पुत्र) समेत अन्य साथियों के साथ मिलकर पीड़िता के किराए के मकान का ताला तोड़कर दिनांक 11.11.2022 को अपराधीक कब्जा किया। फिर निखिल चंद्राकर एवं उसकी पत्नी तलविंदर चंद्राकर के निर्देश पर 28 दिसंबर 2022 को बलात्कार से संबंधित मेडिकल दस्तावेज एवं शैक्षिक प्रमाण पत्र की चोरी उनके सहयोगी निलेश सरवैया और गणेश वर्मा के माध्यम से करवाई गई। चोरी के इस मामले में भी FIR दर्ज कर, उन्हें सह-आरोपी बनाया गया है।इसके बाद 17 अप्रैल 2024 को पहले से ही कोयला घोटाले में जेल में बंद निखिल चंद्राकर को बलात्कार के सबूत मिटाने के नए आरोप में औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया।
सोनू गरचा ने थाना परिसर में किया पीड़िता का अपमान
जब वह बलात्कार के सबूत मिटाने की घटना पर अपना बयान देने के लिए खम्हारडीह थाने पहुंची, तो वहां निखिल चंद्राकर का साला सोनू गरचा (तलविंदर का भाई) ने वर्दीधारी पुलिसकर्मियों की उपस्थिति में पीड़िता के चरित्र पर अभद्र टिप्पणी एवं पीड़िता का दोनों हाथ मरोड़ दिया और उसे खुलेआम जलील किया। पीड़िता जब इसकी शिकायत तत्कालीन थाना प्रभारी से करने पहुंची तो उन्होंने रसूखदार निखिल चंद्राकर के प्रभाव में आकर मामला दर्ज करने से मना कर दिया। लेकिन पीड़िता ने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी दी, जिसके बाद कड़ी फटकार के बाद तत्कालीन थाना प्रभारी को अपराध दर्ज करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
यही नहीं, जब पीड़िता ने पूर्व में हुई बलात्कार की घटना की शिकायत की थी, तब भी तत्कालीन थाना प्रभारी विजय यादव ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। बाद में राष्ट्रीय महिला आयोग के हस्तक्षेप के बाद ही 193 दिनों की देरी से FIR दर्ज हुई थी।इतना ही नहीं तलविंदर चंद्राकर निखिल चंद्राकर ईशिता चंद्राकर अपने गिरोह के साथ मिलकर पीड़िता पर प्राणघातक हमला भी कर चुके है ।
राजनीतिक रसूख और सत्ता से रिश्ते
निखिल चंद्राकर कोई सामान्य अपराधी नहीं है। वह छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोयला घोटाले में भी ईडी और EOW की जांच में आरोपी रह चुका है। यही नहीं, उस पर संगठित आपराधिक गिरोह चलाने के भी आरोप हैं। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस शासनकाल में वह कई प्रभावशाली अधिकारियों का खासमखास चमचा था। आरोप है कि निखिल ने हमेशा अपनी पत्नी और बेटी को ढाल बनाकर अपराध किए और कानूनी शिकंजे से बचता रहा।
पीड़िता को धमकी और पुलिसिया प्रताड़ना
बलात्कार पीड़िता जब थाना खम्हारडीह अपने घर पर हुए अपराधीक कब्जे की शिकायत करने गई, तो तत्कालीन थाना प्रभारी विजय यादव ने उसका आवेदन फाड़ते हुए उसे झूठे मामले में फंसाने और उसकी जिंदगी बर्बाद कर देने की धमकी दी। तत्काल थाने से बाहर निकलकर पीड़िता ने तत्कालीन एसएसपी प्रशांत अग्रवाल को व्हाट्सएप चैट पर घटना की जानकारी दी और मदद की गुहार लगाई। लेकिन प्रशांत अग्रवाल द्वारा भी चुप्पी साध ली गई शिकायत पत्र पढ़ कर।
समाज के लिए सवाल
आज जब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक महिला को संगठित रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है, जब एक बलात्कार पीड़िता के घर में ताला तोड़कर पहले अपराधीक कब्जा किया जाता है फिर आरोपी के द्वारा लगाए हुए ताले की चाबी देकर अपने गिरोह के सहयोगी सदस्य के माध्यम से बलात्कार से संबंधित सबूत चुराए जा रहे हैं, जब पीड़िता को पुलिस स्टेशन में अपमानित किया जा रहा है।
तब सवाल उठता है —
- क्या हमारा प्रशासन रसूख के आगे घुटने टेक चुका है?
- क्या रायपुर अब “क्राइमपुर” बन चुका है?
यह एक सच्चाई है जो शासन, प्रशासन और समाज के सामने आईना रखती है। जब तक ऐसे अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण और पुलिसिया सहयोग मिलता रहेगा, तब तक न्याय केवल एक शब्द रहेगा, हकीकत नहीं।
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