पेरेंट्स की इन आदतों से बच्चों में पैदा होती है टॉक्सिक शर्म, खो देते हैं…

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पेरेंट्स की इन आदतों से बच्चों में पैदा होती है टॉक्सिक शर्म, खो देते हैं…
पेरेंट्स की इन आदतों से बच्चों में पैदा होती है टॉक्सिक शर्म, खो देते हैं कॉन्फिडेंस

पेरेंटिंग टिप्स.Image Credit source: pixabay

टॉक्सिक शर्म एक ऐसा टर्म है जब किसी को यह लगने लगता है कि वह दूसरों को मुकाबले बेकार है या फिर वह कुछ अच्छा नहीं कर सकता है, यानी एक तरह से हीन भावना आ जाने को टॉक्सिक शर्म कहा जाता है जो किसी की भी ग्रोथ में बाधा बन सकती है और खासतौर पर बच्चों में अगर टॉक्सिक शर्म आ जाए तो उनकी मेंटल हेल्थ पर काफी बुरा असर पड़ता है और इसके इफेक्ट उनकी स्कूल परफॉर्मेंस से लेकर डेली रूटीन के बिहेवियर तक पर पड़ सकता है. टॉक्सिक शर्म वैसे तो कई वजहों से हो सकती है, लेकिन पेरेंट्स की कुछ गलतियों की वजह से भी बच्चों में टॉक्सिक शर्म की सिचुएशन जन्म लेती है.

कुछ लोग इंट्रोवर्ट होते हैं, जिन्हें अक्सर शर्मीले स्वभाव का कहा जाता है, लेकिन जब नकारात्मक वजहों से बच्चा किसी से बात करने से कतराने लगे और खुद को दूसरों से कम आंकने लगे तो इसे कॉन्फिडेंस लो होना कहा जाता है. बच्चे को इस तरह की हीन भावना से बचाने के लिए पेरेंट्स को कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए. जान लेते हैं कि माता-पिता की कौन सी गलतियां बच्चों को टॉक्सिक शर्म का शिकार बना सकती हैं.

गलती के लिए शर्मिंदा महसूस करवाना

वैसे तो पूरी जिंदगी सीखने के लिए है, लेकिन बाल्यावस्था शुरुआत होती है, जब बच्चा नई-नई चीजों के बारे में जानना शुरु करता है. फिर चाहे वो सोशल बिहेवियर हो या फिर पढ़ाई-लिखाई. इस दौरान गलती होना स्वाभाविक है. इसके अलावा बच्चे खेलते-कूदते वक्त भी गलतियां करते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें शर्मिंदा महसूस करवाना सही नहीं रहता है. कई बार पेरेंट्स बिना जाने ही तेजी से चिल्लाने लगते हैं, बच्चे को भला-बुरा कहने लगते हैं या फिर हाथ उठाते हैं. इससे बच्चे का मनोबल गिरता है और टॉक्सिक शर्म पैदा होती है.

दूसरों के सामने बच्चों की इंसल्ट करना

कई बार जाने-अनजाने माता-पिता या फिर घर को अन्य बड़े दूसरों के सामने गुस्से में अपने बच्चों की इंसल्ट कर देते हैं या फिर मजाक में बिना सोचे-समझे दोस्तों, रिलेटिव्स के सामने उनके लिए कुछ कहते चले जाते हैं. इससे भी बच्चों में टॉक्सिक शर्म आती है और वह हीन भावना से घिरने लगते हैं.

भाई-बहनों और दोस्तों के साथ तुलना करना

हर इंसान के विचार, टैलेंट और क्षमताएं अलग-अलग होती हैं. पेरेंट्स को भी यह समझना जरूरी है कि उनके किस बच्चे की क्या क्वालिटी है. कई बार माता-पिता बच्चे की तुलना दोस्तों, भाई-बहनों या फिर पड़ोसियों के बच्चों से करने लगते हैं, इससे बच्चे को लगता है कि शायद उनमें ही कमी है. इस वजह से वह प्रेशर में आते हैं और टॉक्सिक शर्म का शिकार होने लगते हैं.

अपने प्यार पर कंडीशन लागू करना

हर पेरेंट्स अपने बच्चे को अनकंडीशनल लव करते हैं, लेकिन कई बार वह बच्चे को समझाने के लिए अपने प्यार को कंडीशन में बांधते हैं, जैसे अगर तुमने अच्छे से पढ़ाई नहीं की तो हम आपसे बात नहीं करेंगे. इस तरह की गलती पेरेंट्स को करने से बचना चाहिए, नहीं तो धीरे-धीरे बच्चे टॉक्सिक शर्म की वजह से आपसे अपने मन की बातें शेयर करना बंद कर देंगे और दबाव में रहेंगे.

बच्चे की फीलिंग्स को नजरअंदाज कर देना

बच्चे कई बार गुमसुम रहते हैं या फिर रोते रहते हैं. इस दौरान उन्हें डांटकर समझाना या फिर यह सोचना कि ये तो बच्चा है, इसलिए नखरे कर रहा है, गलत होता है. बच्चे की भावनाओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कम्यूनिकेशन किसी भी रिश्ते के लिए बेहद जरूरी है और खासतौर पर बच्चे बढ़ती उम्र में कई एक्सपीरियंस पहली बार करते हैं. ऐसे में पेरेंट्स को उनके हावभाव को समझते हुए प्यार से बैठकर बात करना चाहिए.

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