दुनिया की सबसे महंगी कॉफी बनाने के लिए इस्तेमाल होती है इस बिल्ली की पॉटी


दुनिया की सबसे मंहगी कॉफीImage Credit source: Meta AI
सिवेट बिल्ली की पॉटी से बनने वाली कोपी लुवाक कॉफी दुनिया की सबसे महंगी, अजीब लेकिन अनोखी कॉफी मानी जाती है. इसका स्वाद जितना खास है, इसका इतिहास और बनने का प्रोसेस उतना ही दिलचस्प है. सिवेट बिल्ली की पॉटी से बनी कॉफी को कोपी लुवाक नाम से जाना जाता है. ये कॉफी इतनी महंगी होती है कि इसका एक कप भी हजारों रुपये में बिकता है.
भारत से लेकर कई देशों में इस कॉफी को बनाया और पिया जाता है. बड़े-बड़े रईस लोग ही सिवेट बिल्ली की पॉटी से बनी इस कॉफी को पी पाते हैं. लेकिन आखिर इसमें ऐसा क्या है जो ये इतनी महंगी बिकती है. चलिए आज इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि ये कॉफी कैसे बनती है, इसका इतिहास क्या है, ये कहां पाई जाती है और क्यों इसे इतना खास माना जाता है.
क्या होती है कोपी लुवाक या सिवेट कॉफी?
कोपी लुवाक एक विशेष प्रकार की कॉफी है जो सिवेट बिल्ली (Civet Cat) की पॉटी से बनती है. दरअसल, सिवेट बिल्ली कॉफी के पके हुए बेरी फल खाती है. ये फल उसके पेट में जाकर फर्मेंट हो जाते हैं. इसके बाद जब बिल्ली इन्हें पॉटी के रूप में बाहर निकालती है, तो इन्हें साफ करके, सुखाकर, रोस्ट करके कॉफी बीन्स में बदला जाता है.
कैसे बनाई जाती है कोपी लुवाक कॉफी ?
बता दें कि भारत में कर्नाटक के कुर्ग जिले में कोपी लुवाक कॉफी बनाई जाती है. इसे बनाने के लिए सबसे पहले सिवेट बिल्ली को कॉफी का बीज खिलाया जाता है और फिर इसके पॉटी करने का इंतजार किया जाता है. जब सिवेट बिल्ली पॉटी करती है तो कॉफी के बीज ऐसे ही बाहर निकल आते हैं क्योंकि ये बिल्लियां कॉफी बीज को अच्छे से पचा नहीं पाती हैं. निकले हुए बीज को कई बार प्रोसेस किया जाता है. जैसे इन्हें अच्छी तरह धोकर, सुखाकर, छीलकर और रोस्ट किया जाता है. इसके बाद बनकर तैयार होती है कोपी लुवाक कॉफी.
इतनी महंगी क्यों होती है ये कॉफी?
इस कॉफी के इतना महंगा होने के पीछे ये कारण है कि ये कम मात्रा में बनाई जाती है, क्योंकि इसका पूरा प्रोसेस बिल्लियों पर निर्भर करता है. साथ ही इसका स्वाद भी काफी कॉफी से काफी अलग होता है. इस कॉफी का स्वाद स्मूथ और कम एसिडिक होता है. क्योंकि ये बिल्लियों के पेट से फर्मेंट होकर निकलती हैं. सबसे बड़ी बात इसे बनाने में बहुत मेहनत लगती है.
इसका इतिहास क्या है?
कोपी लुवाक का इतिहास 18वीं शताब्दी से जुड़ा है, जब इंडोनेशिया डच एम्पायर था. तब लोकल मजदूरों को कॉफी उगाने तो दी जाती थी, लेकिन वे उसे पी नहीं सकते थे. ऐसे में उन्होंने देखा कि सिवेट बिल्ली कॉफी फल खाकर बाहर निकालती है. उन्होंने इन बीन्स को इकट्ठा कर खुद की कॉफी बनानी शुरू की. धीरे-धीरे जब इसका स्वाद और खुशबू को अलग पाया गया. तब से ये कॉफी अमीर डच अधिकारियों और फिर इंटरनेशनल मार्केट में पॉपुलर हो गई.