महात्मा गांधी की वजह से भारतीय क्रिकेट में आई थी ये क्रांति, रणजी ट्रॉफी के… – भारत संपर्क

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महात्मा गांधी की वजह से भारतीय क्रिकेट में आई थी ये क्रांति, रणजी ट्रॉफी के… – भारत संपर्क

महात्मा गांधी की वजह से भारतीय क्रिकेट में हुई क्रांति. (Photo: Getty Images)
आज 2 अक्टूबर है और इस दिन भारत के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है. आमतौर पर महात्मा गांधी का नाम देश की आजादी से जोड़ा जाता है. हालांकि, भारतीय क्रिकेट पर उनका बहुत बड़ा प्रभाव रहा है और उनकी वजह से एक बड़ी क्रांति भी हुई. अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले ‘बापू’ की वजह से ही रणजी ट्रॉफी भी भारत का सबसे बड़ा घरेलू टूर्नामेंट बनने का रास्ता खुला था. ये बातें जानकर आपको हैरानी हो सकती है लेकिन ये सच है. आइये जानते हैं भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले महात्मा गांधी और क्रिकेट के बीच इस दिलचस्प कनेक्शन के बारे में.
महात्मा गांधी की वजह से कैसे हुई क्रांति?
क्रिकेट और महात्मा गांधी का भारत पर बहुत बड़ा असर रहा है. दोनों ने अपने तरीके से देश को प्रभावित किया है, जिससे भारत की दुनिया में एक अलग पहचान बनी. अगर बात करें महात्मा गांधी के क्रिकेट खेलने की तो वो बचपन में इसे काफी खेलते थे. हालांकि, बाद में इससे उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा. बल्कि वो क्रिकेट के बहुत बड़े आलोचकों में से एक रहे. इसके बावजूद उनकी वजह से भारतीय क्रिकेट में एक बड़ी क्रांति हुई.
दरअसल, आजादी से पहले देश में जातिवाद और छुआछूत की समस्या चरम पर थी. क्रिकेट भी इससे अछूता नहीं था. भारतीय क्रिकेटर पलवणकर बालू एक बेहद शानदार स्पिनर थे. वह 1911 में इंग्लैंड का दौरा करने वाली पहली भारतीय टीम का हिस्सा भी रह चुके थे. इसके बावजूद बावजूद उन्हें अपने पूरे करियर में भेदभाव का सामना करना पड़ा. उन्हें क्लब क्रिकेट में भी खेलने के मौके नहीं मिलते थे. एक बार बॉम्बे टूर्नामेंट में हिंदू जीमखान क्रिकेट क्लब ने उन्हें कप्तानी नहीं दी.
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तब महात्मा गांधी के छुआछूत के विरोध में लड़ाई से प्रभावित होकर पलवणकर बालू ने अपने भाइयों के साथ मिलकर अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन शुरू कर दिया. पलवणकर के प्रदर्शन के बाद उन्हें पहले उप-कप्तान बनाया गया. फिर 1923 के एडिशन में उन्हें एक मैच के लिए कप्तानी भी मिली. क्रिकेट में इस क्रांति को देखकर कई दूसरे खिलाड़ियों का आत्मविश्वास बढ़ गया और उन्होंने जातिवाद के विरोध में लड़ाई छेड़ दी और अपने अधिकारों की मांग करने लगे. हालांकि, महात्मा गांधी ने पलवणकर बालू और उनके भाइयों को कभी भी खेलते नहीं देखा था.
रणजी ट्रॉफी के लिए खुला रास्ता
महात्मा गांधी क्रिकेट के सबसे बड़े आलचकों में से एक थे. उनके मुताबिक इस खेल को खेलने से एक्सरसाइज तो होती है लेकिन खिलाड़ियों की बुद्धि में इजाफा नहीं होता. इसलिए उनकी नजर में ऐसे खेल का कोई मतलब नहीं था. इसके अलावा इसमें होते भेदभाव के कारण भी वो इसका विरोध करते थे. 1940 के दशक महात्मा गांधी का क्रिकेट पर सीधा प्रभाव था. उनका मानना था कि विश्व युद्ध के समय पर खेलने के बजाय शोक प्रदर्शन करना चाहिए.
इसलिए उन्होंने भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरे का के साथ भारत के सबसे बड़े और मशहूर बॉम्बे टूर्नामेंट में होते भेदभाव के कारण इसका विरोध किया. इसके इंग्लैंड दौरा रद्द हो गया और बॉम्बे टूर्नामेंट को हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया. बॉम्बे टूर्नामेंट के समाप्त होते ही 1934 में शुरू हुए रणजी ट्रॉफी का रास्ता खुला. धीरे-धीरे यह देश का सबसे बड़ा घरेलू क्रिकेट बन गया.

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