Aankhon mei alzheimer ke kya lakshan hote hain,- आंखों में अल्जाइमर के क्या…
डिमेंशिया के कारण एकाग्रता की कमी, छोटी-छोटी चीजें भूलना और बार-बार एक ही बात को दोहराने की समस्या का सामना करना पड़ता है। जानते हैं किस प्रकार विजुअल सेंसिटीविटी की मदद से 12 साल पहले ही डिमेंशिया की जानकारी मिल सकती है
उम्र बढ़ने के साथ कई कारणों से आंखों की रोशनी कम होने लगती है। उन्हीं कारणों में से एक है डिमेंशिया। दरअसल, आंखों से ब्रेन की हेल्थ का पता लगाना बेहद आसान है। हाल ही में आई एक रिसर्च के अनुसार न्यूरोसाइकोलॉजिकल डाइग्नोज़ और विजुअल सेंसिटीविटी की मदद से 12 साल पहले ही ब्रेन संबधी रोग डिमेंशिया की जानकारी मिल सकती है। जानते हैं किस प्रकार आंखों की जांच से डिमेंशिया का पता लगाया जा सकता है (Dementia effect on eyesight)।
क्या है डिमेंशिया और विजुअल हेल्थ का कनैक्शन
डिमेंशिया के कारण लोगों को कंफ्यूजन, एकाग्रता की कमी, छोटी-छोटी चीजें भूलना और बार-बार एक ही बात को दोहराने की समस्या का सामना करना पड़ता है। जर्नल नेचर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी कलेक्शन के अनुसार भारत में 10 मीलियन से ज्यादा लोग डिमेंशिया के शिकार हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2050 तक 60 वर्ष की उम्र से अधिक 19.1 फीसदी लोग डिमेंशिया का शिकार हो सकते हैं। वहीं अल्ज़ाइमर डिमेंशिया का सबसे सामान्य प्रकार है।
इसका असर आपके ब्रेन पर होने से पहले आपकी आईसाइट पर महसूस होने लगता है। इसी के तहत यूसीएसएफ वेइल इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेस की एक रिसर्च में पाया गया कि रेटिना स्कैन से ब्लड वेसल्स में आने वाले बदलाव का पता लगाया जा सकता है, जो अल्जाइमर रोग का प्रारंभिक संकेत माना जाता है। इससे आंखों की रोशनी कम होने लगती है, जिससे पढ़ने- लिखने में समस्या होने लगती है।
डिमेंशिया की समस्या किस प्रकार रेटिना के लिए खतरे का कारण साबित होता है
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ अनुराग नरूला का कहना है कि डिमेंशिया वाले लोगों को देखने में कठिनाई का सामना करना पड़ता हैं। दरअसल, डिमेंशिया रोग मस्तिष्क के उन हिस्सों को प्रभावित करता है जो आंखों से विजुअल इर्फोमेशन लाने में मदद करता हैं। इससे दृष्टि पर प्रभाव पड़ता है, मगर आंखे स्वस्थ रहती हैं। कइ स्टडीज़ में ये भी पाया गया है कि मेक्यूलर डिजनरेश और मोतियाबिंद अल्जाइमर रोग के बढ़ते जोखिम को दर्शाते हैं।
जानें रिसर्च से कैसे डिमेंशिया का पता लगाया गया
इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोडीजनरेटिव डिज़ीज़ के अनुसार अल्ज़ाइमर रोग मेमोरी लॉस होने से सालों पहले ब्रेन का अपनी चपेट में ले लेता है। शुरूआत में इस रोग की जानकारी मिल पाने से लाइफस्टाइल और खान पान में बदलाव लाकर इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। इससे डिमेंशिया की रोकथाम के अलावा लोगों में बढ़ने वाले डायबिटीज़, हृदय रोगों और हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम को भी कम किया जा सकता है।
इंग्लैड के नॉरफॉर्क की एक रिसर्च के अनुसार 8, 623 लोगों का विजुअल सेंसिटीविटी टेस्ट किया गया। इसमें स्क्रीन पर नज़र आने वाले डॉटस के त्रिकोण के आकार में आने पर बटन प्रेस करना था। वे लोग जो डिमेंशिया से ग्रस्त है, उन्हें इस कार्य में देरी का सामना करना पड़ा। इसके अलावा इस समूह में मौजूद लोगों को कंटरास्ट सेंसिटीविटी टेस्ट भी किया गया, जिसमें आउटलाइन के रंगों की पहचान कर उसे देखने और नीले.हरे स्पेक्ट्रम को देखने और विचार करने की क्षमता की कमी डिमेंशिया को दर्शाता है। इस शोध में 537 प्रतिभागियों को डिमेंशिया का सामना करना पड़ा।
डिमेंशिया आंखों को कैसे प्रभावित करता है
मस्तिष्क के कुछ हिस्सों यानि एंटोरहिनल और टेम्पोरल कॉर्टिसेस में आने वाले परिवर्तन रेटिना को प्रभावित करने लगते हैं। 86 लोगों के समूह के रेटिनल और ब्रेन टिशू सेंपल लिए गए। इस समूह में अल्ज़ाइमर और माइल्ड कॉग्नीटिव इंपेयरमेंट वाले लोगों को शामिल किया गया। वे लोग जो अल्ज़ाइमर को शिकार है, उनमें 80 फीसदी माइक्रोग्लियल कोशिकाओं की कमी पाई गई। इसकी मदद से सेल्स को रिपेयर करने में मदद मिलती है। साथ ही ब्रेन और रेटिना से बीटा एमिलॉइड को भी हटाता है।
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