क्या है ब्लू इकॉनॉमी, जिसके लिए चीन के चक्कर लगा रहे ASEAN नेता? | What is Blue… – भारत संपर्क

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क्या है ब्लू इकॉनॉमी, जिसके लिए चीन के चक्कर लगा रहे ASEAN नेता? | What is Blue… – भारत संपर्क
क्या है ब्लू इकॉनॉमी, जिसके लिए चीन के चक्कर लगा रहे ASEAN नेता?

आस‍ियान देशों के नेता लगातार चीन के चक्‍कर लगा रहे हैं.

आसियान देशों के नेता चीन के चक्कर लगा रहे हैं. राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के बाद इंडोनेशिया के नव निर्वाचित राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो अपनी पहली विदेश यात्रा पर चीन गए. यहां दोनों देशों में द्विपक्षीय बातचीत भी हुई. मंगलवार से लाओस के उप प्रधानमंत्री सेलुमक्से कोमासिथ भी चीन पहुंच गए हैं. वियतमान के विदेश मामलों के मंत्री बुई थान, सोन और तिमोर-लेस्ते के बेंडिटो डॉस सैंटोस फ्रीटास भी चीन की यात्रा करने वाले हैं.

चीन में आसियान देशों की दिलचस्पी लगातार बढ़ रही है. चीन इसे आसियान देशों के साथ मजबूत हो रहे संबंधों के तौर पर देख रहा है, जबकि जानकार इसकी प्रमुख वजह ब्लू इकॉनॉमी को मान रहे हैं. माना जा रहा है कि आसियान देशों के लिए चीन ब्लू इकॉनॉमी, साझेदारी निर्माण और व्यापक रणनीतिक सहयोग के लिए जरूरी अंग बन गया है. इसीलिए आसियान देश लगातार चीन के चक्कर लगा रहे हैं.

क्या है ब्लू इकॉनॉमी

ब्लू इकॉनॉमी यानी नीली अर्थव्यवस्था. इसका अर्थ समुद्री पर्यावरण के दोहन और संरक्षण से है. विभिन्न संगठनों के बीच इनकी व्याख्या अलग-अलग हो सकती है. मगर क्षेत्रीय तौर पर देखें तो ये मत्स्य पालन, जलीय खेती के लिए जाना जाता है, लेकिन जब दो देशों या देशों के समूह के बीच ब्लू इकॉनॉमी की बात होती है तो इसे समुद्री परिवहन, समुद्री पर्यटन, व्समुद्री व्यापार व समुद्र से होने वाली हर आर्थिक गतिविधि से जोड़कर देखा जाता है. समुद्र में खनन और बायोप्रोस्पेक्टिंग भी नीली अर्थव्यवस्था का ही हिस्सा है.

आसियान देशों को क्या है उम्मीद?

आसियान देश चाहते हैं कि चीन नीली अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर साझेदारी करे. इसके लिए आसियान देशों को फंड की भी जरूरत है. ग्लोबल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर आसियान देश 2020 से 2050 तक ब्लू इकॉनॉमी में 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक निवेश करते हैं तो उन्हें 8.2 ट्रिलियन से 22.8 ट्रिलियन डॉलर तक का शुद्ध लाभ मिल सकता है. चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि ब्लू इकॉनॉमी भविष्य की अर्थव्यवस्था है. इससे न केवल नीली अर्थव्यवस्था साझेदारी के निर्माण को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी, बल्कि चीन और आसियान के बीच व्यापक रणनीतिक सहयोग पर भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा.

सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है चीन, दूसरे नंबर पर है भारत

चीन और आसियान देशों के संबंध पुराने हैं. इनकी शुरुआत तब हुई जब चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री ने 1991 में कियान किचेन ने कुआलालंपुर में आयोजित एक कार्यक्रम भाग लिया था. इसके बाद चीन आसियान देशों का भागीदार बना और 2009 से यह देश आसियान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. दोनों देशों के बीच तकरीबन 507 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है. कोविड के दौरान भी दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध जारी रहे. 2021 में चीन ने वर्चुअल सम्मेलन कर संबंधों के 30 साल पूरे होने पर एक कार्यक्रम भी आयोजित किया था.आसियान देशेां का दूसरा सबसे बड़ा भागीदार भारत है.

अमेरिका-रूस की जंग के बीच हुई थी आसियान की स्थापना

आसियान की स्थापना 1967 में बैंकॉक में हुई थी. इंडोनेशिया, लाओस, म्यांकार, कंबोडिया, ब्रुनेई, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतमान इसके सदस्य हैं. जब आसियान देशों की स्थापना उस समय अमेरिका और सोवियन यूनियन के बीच शीत युद्ध चल रहा था. दरअसल 1965 में इंडोनेशिया में तख्ता पलट के बाद चीन के समर्थन वाली सुकर्णों सरकार गिर गई थी. इसके बाद इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच चल रहा युद्ध खत्म हो गया. इसके बाद ही आसियान की स्थापना की गई.

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