बिहार में हुई जातीय जनगणना में क्या आए थे आंकड़े? कहां तक पहुंचा मामला


नीतीश कुमार और बिहार जाति सर्वेक्षण.
बिहार में जदयू और आरजेडी की महागठबंधन की सरकार ने करीब तीन साल पहले जाति आधारित सर्वेक्षण लागू करने का ऐलान किया था. 6 जून 2022 में बिहार के नीतीश सरकार ने इसे लागू करने की अधिसूचना जारी की थी. जाति सर्वेक्षण लागू होने के ऐलान के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तात्कालीन उपमुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव ने इसे लेकर कई वादे किए, लेकिन बाद में दोनों ही पार्टियां अलग हो गईं और नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई.
सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. फिर नीतीश कुमार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया, जो 50 फीसदी की सीमा से अधिक है. इसे पटना हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया.
लेकिन बिहार सरकार के जाति सर्वेक्षण को लेकर जमकर सियासी बवाल मचा. इंडिया गठबंधन ने जातिगत सर्वेक्षण को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग की. कर्नाटक, तेलंगाना सहित विभिन्न विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों ने इसे मुद्दा बनाया था.
राहुल गांधी ने बताया था फर्जी सर्वेक्षण, मचा था बवाल
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ओम प्रकाश अश्क बताते हैं कि बिहार का जाति सर्वेक्षण नीतीश और तेजस्वी के महागठबंधन में लागू हुआ था, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी जो लगातार जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे थे, इसे फर्जी करार दिया था. उसके बाद बिहार कि सियासत में जमकर बवाल मचा था.
चूंकि यह सर्वेक्षण कांग्रेस की सहयोगी पार्टी आरजेडी के सत्ता में रहते हुए हुआ था और कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा इसे फर्जी बताने के बाद इसे लेकर एनडीए के नेताओं ने जमकर निशाना साधा था.
उन्होंने कहा किजाति सर्वेक्षण का लोकसभा में चुनाव में विपक्ष को लाभ भी मिला था और विपक्ष की सीटें बढ़कर 232 हो गई, जबकि भाजपा की सीटें घट गईं. अब जब मोदी सरकार ने जनगणना के साथ जाति जनगणना कराने का ऐलान किया है और बिहार चुनाव है, तो निश्चित रूप से इसका असर चुनाव पर पड़ेगा.
94 लाख गरीब परिवार, सर्वेक्षण में हुआ था खुलासा
बिहार जाति सर्वेक्षण में 94 लाख गरीब परिवार पाए गए थे. उसके बाद नीतीश कुमार तय किया कि 2-2 लाख देकर जीविका के साधन प्रेरित करेंगे. नीतीश कुमार ने आरक्षण 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.
बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने राज्य की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना की गहराई से पड़ताल की है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार द्वारा शुरू की गई इस सर्वेक्षण की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बीच पूरा किया गया.
सर्वेक्षण में 214 जातियों की गिनती
सर्वेक्षण में कुल 214 जातियों को शामिल किया गया, जिनमें अनुसूचित जाति (SC) की 22, अनुसूचित जनजाति (ST) की 32, पिछड़ा वर्ग (BC) की 30, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की 113 और सामान्य वर्ग की 7 जातियाँ शामिल थीं. राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ पाई गई, जिसमें से 63.14% आबादी OBC (BC + EBC) वर्ग से है. इसके अलावा 19.65% SC, 1.68% ST और 15.52% सामान्य वर्ग के लोग हैं.
सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया कि बिहार में 34.13% परिवारों की मासिक आमदनी 6,000 रुपए से भी कम है. इनमें सबसे अधिक गरीब SC (42.93%) और ST (42.7%) वर्ग में पाए गए. जनरल कैटेगरी में यह दर 25.09 फीसदी बताई गई थी. सर्वेक्षण में पाया गया था कि राज्य में 94 लाख गरीब परिवार हैं.
रिपोर्ट में पाया गया कि बिहार में मात्र 6.47% लोग ग्रेजुएट हैं. इनमें सामान्य वर्ग के 14.54% लोग स्नातक हैं, जबकि EBC में यह आंकड़ा सिर्फ 4.44%, SC में 3.12% और ST में 3.53% है.