बिहार की जंग में छोटे दल क्या करेंगे बड़ा धमाल, खोलेंगे सिर्फ खाता या…

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बिहार की जंग में छोटे दल क्या करेंगे बड़ा धमाल, खोलेंगे सिर्फ खाता या…
बिहार की जंग में छोटे दल क्या करेंगे बड़ा धमाल, खोलेंगे सिर्फ खाता या बनेंगे किंगमेकर?

बिहार विधानसभा चुनाव-2025.

बिहार विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है लेकिन सियासी दलों के बीच शह-मात का खेल शुरू हो चुका है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए और तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है. ऐसे में कई ऐसे क्षेत्रीय दल और छोटी पार्टियां किस्मत आजमाने के लिए पूरा दमखम लगाए हैं, जो न तो एनडीए का हिस्सा हैं और न इंडिया महागठबंधन के साथ.

एनडीए और इंडिया गठबंधन की बनती सीधी लड़ाई के बीच छोटे दल बड़ा धमाल करने और किंगमेकर बनने का सपना संजोय हुए हैं. इस फेहरिश्त में प्रशांत किशोर की जन सुराज, मायावती की बसपा और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ताल ठोंकने के लिए बेचैन हैं. इसके अलावा पशुपति पारस की एलजेपी, शिवदीप लांडे की हिंद सेना, चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी, हेमंत सोरने की जेएमएम और आम आदमी पार्टी भी किस्मत आजमाने की तैयारी में है. ऐसे में देखना है कि छोटे दल सियासी गुल क्या खिलाते हैं?

पीके की जन सुराज की अग्निपरीक्षा

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर सियासी पिच पर उतर चुके हैं और अपनी ताकत आजमाने के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं. पीके इन दिनों बिहार में सियासी जमीन नापने में जुटे हुए हैं. इस दौरान राजनीतिक समीकरण साधने और बनाने की कवायद भी कर रहे हैं. प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्णिया के पूर्व सांसद पप्पू सिंह (उदय सिंह) को बना दिया है तो पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व नौकरशाह आरसीपी सिंह की पार्टी का भी जन सुराज में विलय करा लिया है.

पीके खुद ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, जिसकी आबादी बिहार की सवर्ण जातियों में सबसे ज्यादा है. इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष की कमान दलित समाज से आने वाले मनोज भारती को सौंप रखी है. इसके अलावा कई मुस्लिम नेताओं को भी अपने साथ मिलाया है. इस तरह ठाकुर, ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम समीकरण के सहारे की सियासी बाजी जीतने के लिए पीके पूरा दमखम लगा रहे हैं.

बिहार की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की उनकी तैयारी है. पीके की जन सुराज को ही लीजिए तो पिछले साल विधानसभा उपचुनाव में चार सीटों पर असर डालने में कामयाब रहे थे, वो भले ही खुद जीते तो नहीं लेकिन हराने में उनकी भूमिका रही. ऐसे में पीके जिस तरह से समीकरण के साथ उतर रहे हैं, उससे नीतीश के नेतृत्व वाले एनडीए ही नहीं बिहार में तेजस्वी के अगुवाई इंडिया गठबंधन को झटका देंगे.

बिहार में बसपा की डगर कितनी मुश्किल

मायावती की बसपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. बिहार में बसपा का अब तक का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा है. 2020 में बसपा को एक सीट पर जीत मिली थी. बाद में पार्टी के विधायक जमा खान जेडीयू में शामिल हो गए जो अभी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं. बसपा विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ती रही है.

बिहार में बसपा का सियासी आधार दलित वोटों पर ही रहा है, लेकिन यूपी की तरह कभी कामयाब नहीं रही. पिछले 25 सालों में बसपा का सियासी आधार बिहार में घटा है. साल 2000 के चुनाव में बसपा के 5 विधायक जीते थे, लेकिन सभी आरजेडी में शामिल हो गए. इसके बाद 2005 में बसपा के 4 विधायक चुने गए लेकिन सभी जेडीयू में चले गए. 2009 के उपचुनाव में बसपा उम्मीदवार जीता लेकिन वह भी बीजेपी में चला गया. 2020 के चुनाव में भी चैनपुर से बसपा के टिकट पर जमा खान जीते थे लेकिन जेडीयू में जाकर उन्होंने मंत्री पद ले लिया.

यूपी से सटे बिहार के इलाकों में बसपा का सियासी प्रभाव रहा है. इसमें चैनपुर, मोहनिया, रामपुर, फारबिसगंज, भभुआ , दिनारा, बक्सर, कटैया नौतन, रामगढ़ जैसे विधानसभा क्षेत्र है और इन सीटों पर बसपा को जीत भी मिली है. ऐसे में बसपा की जीत नहीं हुई है तो जीत हार में बसपा की प्रमुख भूमिका रही है. इस बार भी इन सीटों पर असर डाल सकती है. दलित वोटों को लेकर जिस तरह कांग्रेस गंभीर है और ऐसे में बसपा के पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने पर सियासी असर कांग्रेस पर पड़ सकता है.

ओवैसी दिखाएंगे कमाल या खिलाएंगे कमल

बिहार में पांच साल पहले असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम वोटों के सहारे पांच सीटें जीतकर सभी की आश्चर्यचकित कर दिया था 2020 में 20 सीटों पर AIMIM चुनाव लड़ी थी, जिसमें से पांच सीटों पर जीत मिली थी. इसमें चार विधायकों ने बाद में आरजेडी का दामन थाम लिया है. इस बार ओवैसी ने बिहार की 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है, उनका फोकस सीमांचल के साथ-साथ बिहार के दूसरे इलाके की मुस्लिम बहुल सीटों पर है.

ओवैसी का बिहार में राजनीतिक आधार सीमांचल क्षेत्र कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया में है, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. पूर्णिया जिले की अमौर सीट से अख्तरुल इमान पार्टी के विधायक हैं. इमान AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं. ओवैसी ने अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी शुरू कर दिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि ओवैसी के चुनाव लड़ने से सबसे ज्यादा इम्पैक्ट मुस्लिम बहुल सीटों पर आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट को लग सकता है. ओवैसी के चुनाव लड़ने से इंडिया गठबंधन को झटका तो एनडीए को सियासी लाभ मिलने की संभावना जतायी जा रही है.

पशुपित क्या बिहार के सियासी पारस होंगे?

बिहार में चिराग पासवान से विवाद के बाद पशुपति पारस ने अपनी पार्टी बनाई है और अब एनडीए से भी नाता टूट चुका है. ऐसे में पशुपति पारस ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ने पर रजामंद हुए हैं. हालांकि, औपचारिक ऐलान अभी तक नहीं हुआ है. पशुपति पारस का वोटबैंक वही है, जो रामविलास पासवान का हुआ करता था. इस पर चिराग पासवान की दावेदारी है, जो बीजेपी के साथ हैं. ऐसे में पशुपति पारस के चुनाव लड़ने का सियासी असर एनडीए पर पड़ सकता है.

राजनीतिक पिच पर शिवदीप लांडे

बिहार के तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे पिछले साल सितंबर में आईजी (पूर्णिया) के पद से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद नए उन्होंने राजनीतिक संगठन ‘हिंद सेना’ नाम से बनाया. बिहार के विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. शिवदीप लांडे ने अपनी पार्टी गठन के समय कहा था कि लोगों का ध्यान खींचने के लिए राष्ट्रवाद, सेवा और समर्पण के सिद्धांतों पर पार्टी काम करेगा. शिवदीप लांडे के साथ कोई मजबूत नेता अभी तक नहीं जुड़ा है, जिसके चलते सियासी तौर पर क्या गुल खिलाएंगे ये कहना मुश्किल है.

सोरेन की जेएमएम बढ़ाएगी टेंशन

बिहार से अलग झारखंड की कभी मांग उठाने वाली सीएम हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) अब उसी बिहार में अपना सियासी जमीन तलाश रही है. जेएमएम ने बिहार के विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, लेकिन अभी तक इंडिया गठबंधन ने उसे हरी झंडी नहीं दी है. जेएमएम झारखंड से सटे बिहार की 12 विधानसभा सीटों पर नजर है. पार्टी नेतृत्व को उम्मीद है कि तालमेल के तहत सीटों का बंटवारा आसानी से हो जाएगा. अगर ये नहीं पाता तो अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है.

जेएमएम का दावा है कि इन क्षेत्रों में उसकी मजबूत पकड़ है और इंडिया गठबंधन से सीटों की डिमांड करेगी. जेएमएम को अगर इंडिया गठबंधन में जगह नहीं मिलती है तो फिर सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है. 2020 में जेएमएम ने अकेले चुनाव लड़कर झारखंड से सटी हुई 7 सीटों पर आरजेडी को नुकसान पहुंचाया था. ऐसे में जेएमएम भले ही जीत न सके, लेकिन हराने की ताकत रखती है.

बिहार में चंद्रशेखर-केजरीवाल का क्या काम?

आम आदमी पार्टी बिहार में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है तो दलित नेता चंद्रशेखर आजाद भी पूरे दमखम के साथ किस्मत आजमाने के लिए बेताब हैं. 2020 में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के साथ चंद्रशेखर आजाद ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. इस बार पप्पू यादव कांग्रेस में हैं तो चंद्रशेखर आजाद की पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ने की प्लानिंग बनाई है. चंद्रशेखर का आधार दलित समाज के बीच है. इस तरह से उनके चुनाव लड़ने से सियासी नुकसान भी इंडिया गठबंधन को ज्यादा उठाना पड़ सकता है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव हारने के बाद अरविंद केजरीवाल दोबारा से अपनी आम आदमी पार्टी को खड़े करने में जुट गए हैं. आम आदमी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है. प्रदेश अध्यक्ष राकेश यादव संगठनात्मक ढ़ांचे को दुरुस्त करने और शीर्ष नेतृत्व के साथ मंत्रणा कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी ने अपने कैंडिडेट सेलक्शन भी शुरू कर दिया है. आम आदमी पार्टी के चुनाव लड़ने शहरी वोटों पर प्रभाव पड़ सकता है. ऐसे में आम आदमी पार्टी अपने खेल बनाने से ज्यादा दूसरे का गेम बिगाड़ने का काम कर सकती है.

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