जब आसमान में उड़ता है जहाज तो उसके पीछे क्यों नजर आती है सफेद लकीर? | chemtrails… – भारत संपर्क

आसमान में कभी एयरप्लेन देखा हो तो आपने उन लंबी सफेद लकीरों पर भी गौर किया होगा जो जेट अपने पीछे छोड़ते हुए जाता है. ऐसा लगता है कि मानों कोई मिसाइल तेजी से गुजरी हो. नीले आसमान में इन सफेद लाइनों को कॉन्ट्रेल्स यानी कंडनशेसन ट्रेल्स कहा जाता है. यह नाम दिया गया है यूनिवर्सिटी कॉरपोरेशन फॉर एटमॉस्फेरिक की रिसर्च में. इसके मुताबिक वे तब दिखाई देते हैं जब भाप गाढ़ा हो जाता है और विमान के आसपास पास जम जाता है. कम से कम सांइस तो यही कहता है.
पर दश्कों से अधिकतर लोग इसे खारिज करते आए हैं और सरकारों की साजिश बताते हैं. उनका कहना है कि ये कॉन्ट्रेल्स वास्तव में केमट्रेल हैं. यह एक कांस्पीरेसी थ्योरी है जिसमें लोगों का मानना है कि आसमान में बनी यह सफेद धारियां कंडनशेसन से नहीं बनती है बल्कि इसके बजाय सरकार हानिकारक रसायनों का छिड़काव करती है. अब हो सकता है कि यह सिद्धांत कुछ लोगों को दूर की कौड़ी लगे लेकिन सबूत होने के बावजूद, अमेरिका और दुनिया भर में केमट्रेल्स को सरकार की साजिश का हिस्सा माना जाता है.
90 के दशक में लोगों ने इसे साजिश माना
1990 के दशक में इस थ्योरी ने जोर पकड़ना शुरू किया. केमट्रेल्स का विचार 1996 से अस्तित्व में है. यह काफी हद तक उसी वर्ष के वायु सेना के रिसर्च पेपर में कही गई है. रिसर्च का नाम “वेदर एज अ फोर्स मल्टीप्लायर’ है. पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने कहा है कि यह एयरोस्पेस बलों का इस्तेमाल करके सैन्य मकसदों को पाने के लिए किया जाता है. इन कथित जहरीले रसायनों के के बारे में लोगों का अलग-अलग तर्क है. कुछ का मानना है कि रसायनों का इस्तेमाल आबादी कम करने के लिए किया जा रहा है दूसरे कहते हैं कि यह मन को कंट्रोल करने का जरिया है तो कुछ सोचते हैं कि मौसम पर नियंत्रण रखने का तरीका है.
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केमट्रेल्स थ्योरी की शुरुआत कैसे हुई?
हालांकि लोगों का यह मानना कि सरकार रसायनों का छिड़काव कर रही है, पूरी तरह से निराधार नहीं है. शीत युद्ध के दौरान, ब्रिटिश सरकार ने आम जनता पर 750 से अधिक नकली रासायनिक युद्ध हमले किए. इसने सैकड़ों हजारों लोगों को जिंक कैडमियम सल्फाइड के संपर्क में ला दिया. उस समय यह सोचा गया था कि यह रसायन जहरीला नहीं है हालाँकि बार-बार इसके संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है. अमेरिका ने 1950 और 1960 के दशक में भी ऐसा ही किया था. 2021 में, एक फेसबुक पोस्ट वायरल हो गई जिसमें दावा किया गया कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने केमट्रेल्स के माध्यम से मौसम में “हेरफेर” किया जिसकी वजह से फरवरी में टेक्सास हफ्ते भर भीष्ण ठंड में रहा.
सच्चाई क्या है फिर, एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
2017 की स्टडी की गई थी जिसमें 1,000 लोगों से बातचीत की गई थी. इसमें पाया गया कि लगभग 10% अमेरिकियों ने साजिश को “पूरी तरह से” माना, जबकि 30% से अधिक अमेरिकियों ने कम से कम इसे “कुछ हद तक” सच पाया. समस्या को बढ़ाने में सोशल मीडिया की भी भूमिका रही है. सोशल मीडिया का एल्गोरिथम ही ऐसा है कि लोगों के पास वही जानकारी पहुंचती है जिन मान्यताओं में वो विशवास करते हैं. वैज्ञानिकों ने कहा है कि केमट्रेल्स के अस्तित्व का कोई सबूत नहीं है. हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने कहा कि भले ही विमान के कन्ट्रेल्स में कोई सरकारी साजिश चल रही हो लेकिन इतने बड़े पैमाने के कार्यक्रम को चलाना मुश्किल है