जब अंग्रेजों की रगों में दौड़ने लगा दूषित खून, होने लगी मौतें…UK के जानलेवा ब्लड… – भारत संपर्क

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जब अंग्रेजों की रगों में दौड़ने लगा दूषित खून, होने लगी मौतें…UK के जानलेवा ब्लड… – भारत संपर्क
जब अंग्रेजों की रगों में दौड़ने लगा दूषित खून, होने लगी मौतें...UK के जानलेवा ब्लड स्कैंडल की खौफनाक कहानी

ब्लड क्लॉट (सांकेतिक)Image Credit source: KATERYNA KON/SCIENCE PHOTO LIBRARY

एक रिपोर्ट ने यूनाइटेड किंगडम में हड़कंप मचा दिया है. इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यूके के दशकों पुराने ब्लड स्कैंडल को छुपाया गया था. जिसमें संक्रमित खून से इलाज के बाद हजारों लोगों की मौत हो गई और इसे सही कदम उठा कर काफी हद तक टाला जा सकता था. ब्लड स्कैंडल रिपोर्ट के मुताबिक, 1970 और 1990 के दशक की शुरुआत के बीच ब्रिटेन में दूषित खून दिए जाने के बाद 30,000 से अधिक लोग HIV और हेपेटाइटिस जैसे वायरस से संक्रमित हो गए थे. सोमवार को इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने माफी मांगी है.

इस पूरे मामले पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने सोमवार को कहा कि उन्हें इस पूरे कांड पर खेद है. उन्होंने सांसदों से कहा, “मैं इस भयानक अन्याय के लिए पूरे दिल से और स्पष्ट रूप से माफी मांगना चाहता हूं.” उन्होंने प्रभावित लोगों और मरने वालों के परिवारों को मुआवजा देने का वादा किया है. आइये जानते हैं 1970 से 1990 के बीच चले गंदे खून चढ़ाने के जानलेवा घोटाले के बारे में.

क्या है पूरा मामला?

1970 और 1990 के दशक के बीच दूषित खून दिए जाने की वजह से ब्रिटेन में हजारों लोग HIV या हेपेटाइटिस से संक्रमित हो गए थे. इनमें वे लोग शामिल थे जिन्हें दुर्घटनाओं, सर्जरी या डिलीवरी के बाद खून या प्लाज्मा चढ़ाया गया था. इस बीच इन लोगों को जो खून दिया गया था वे संक्रमित खून था, जिससे इन लोगों में खतरनाक बीमारियां फैली. एक अनुमान के मुताबिक, हर चार दिन में संक्रमित खून के वजह से एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी. इस पूरे घोटाले में 3,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और अन्य को आजीवन स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ा है.

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हीमोफीलिया के लिए बना था नया इलाज

हीमोफीलिया एक ऐसा डिसऑर्डर है जिसमें खून जमना बंद हो जाता है. ऐसे में अधिकांश लोगों में प्रोटीन की कमी होती है जो खून का थक्का बनाने में मदद करता है. 1970 के दशक एक नए इलाज की खोज की गई जिसमें इस कमी के इलाज के लिए फैक्टर कॉन्संट्रेट बनाया गया जो लापता क्लॉटिंग एजेंट को मानव रक्त प्लाज्मा से बदलता था. फैक्टर कॉन्संट्रेट बनाने के लिए निर्माताओं ने हजारों लोगों के प्लाज्मा को इकट्ठा किया, जिससे कॉन्संट्रेट में हेपेटाइटिस और एचआईवी सहित वायरस से संक्रमित खून होने का खतरा बढ़ गया.

कैदियों को बनाया गया डोनर

हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों का इलाज ब्रिटिश और अमेरिकी ब्लड प्रोडक्ट्स से किया जाता था. यूके-निर्मित फैक्टर कंसंट्रेट की कमी का मतलब था कि डॉक्टर अमेरिका से आयात पर निर्भर थे, जहां जेलों में लोगों को संक्रमण होने के जोखिम के बावजूद उनसे ब्लड लिया जाता था. इन्हीं कारणों की वजहों से ब्रिटेन के लोगों को गंदा खून दिया गया जिससे बीमारियां फैली.

कब शुरू हुई थी जांच?

पूर्व प्रधान मंत्री थेरेसा मे ने पीड़ितों और उनके परिवारों की सालों की मांग के बाद जुलाई 2017 में जांच का आदेश दिए थे. उस समय इस घोटाले की वजह से 2,400 लोग मारे गए थे, लेकिन अब यह संख्या 3,000 से ज्यादा होने का अनुमान है. मे ने कहा था कि यह घोटाला एक “भयानक त्रासदी” थी जो कभी नहीं होनी चाहिए थी.उन्होंने कहा कि हज़ारों मरीज़ों को उम्मीद थी कि हमारा एनएचएस विश्व स्तरीय देखभाल के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन उनके साथ धोका हुआ.

जांच अध्यक्ष सर ब्रायन लैंगस्टाफ ने 2019 और 2023 के बीच आरोप लगाने वाले लोगों के आरोप सुने. इस जांच के दौरान 374 लोगों ने बयान दर्ज कराए और पूछताछ में 5,000 से अधिक गवाहों के बयान लिए गए और 100,000 से अधिक दस्तावेजों की समीक्षा की गई है. जिसके बाद इस जांच का निष्कर्श निकाला गया.

पीड़ितों को कितना मुआवज़ा मिला?

सरकार पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए तेजी से काम कर रही है. लगभग 4,000 संक्रमित लोगों को एक लाख यूरो का अंतरिम मुआवजा दिया गया है. मंत्रियों ने हाल ही में घोषणा की कि ये अंतरिम भुगतान “मृतकों की संपत्ति” तक बढ़ाया जाएगा और बचे हुए लोगों को भी जल्द मुआवजा मिलेगा.

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