फिल्म के नाम पर ‘फाइल्स’ बनाने का फैशन…’सच’ दिखाने की होड़ में कहां है… – भारत संपर्क


फिल्मों में सच दिखाने का दावा
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री जिसे बॉलीवुड कहते हैं, भेड़चाल के लिए भी विख्यात है. एक हिट फिल्म कैसे ट्रेंड बनाती है, उसका ताजा की-वर्ड है- फाइल्स. इस मामले में चर्चित डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री का नाम सबसे ऊपर है. उनकी हर फिल्म एक फाइल होने लगी है. दी कश्मीर फाइल्स बनाकर उन्होंने दुनिया भर में शोहरत बटोर ली. लोग भूल गए कि उन्होंने इससे पहले भी एक फाइल बनाई थी, जिसका नाम था- दी ताशकंद फाइल्स, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री की सादगी की तरह ही वह फिल्म भी बिना सुर्खियां बटोरे फाइलों में दबी रह गई. दी कश्मीर फाइल्स आई तो विवेक की तरह इस फिल्म का भी भाग्योदय हुआ. विवेक अब आगे जो भी फिल्म बना रहे हैं, उसमें भी फाइल्स शब्द को जरूर जोड़ा है.
ऐसा लगता है बॉलीवुड में फाइल्स एक टोटका हो गया है. फिल्म के टाइटल में अगर इस शब्द को जोड़ लें तो कई तरह के फायदे दिखते हैं. बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की संभावना बढ़ जाती है. विवेक रंजन अग्निहोत्री ने इस ट्रेंड को स्थापित किया तो उनके नक्शेकदम कुछ और डायरेक्टर-प्रोड्यूसर फिल्म के नाम पर फाइल्स बनाकर रातों-रात सुर्खियों का शिखर हासिल करने में जुट गए. सबसे ताजा मामला उदयपुर फाइल्स (Udaipur Files) विवाद है. इसका मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है. कानूनी अड़चनों के चलते इसे तय तिथि पर नहीं दिखाया जा सका. याचिकाकर्ता और फिल्म निर्माता की ओर से अपने-अपने पक्ष में दलीलें जारी हैं.
रियलिस्टिक बनाम प्रोपेगेंडा सिनेमा की बहस
वैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश में फिल्म किसी भी विषय पर बन सकती है. फिल्म के लिए कहानी कुछ भी हो सकती है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. दुनिया के तमाम मुल्कों की तरह हमारे देश में भी घटिया और बढ़िया सभी किस्म की फिल्में बनती हैं. फिल्म की अलग-अलग श्रेणियां इसीलिए बनाई गई हैं- ए ग्रेड, बी-ग्रेड या सी-ग्रेड यहां तक कि डी-ग्रेड भी. इन्हीं श्रेणियाों में सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, पौराणिक घटनाओं और कहानियों पर सालों से तमाम फिल्में बनती रही हैं, यह सिलसिला हाल के सालों में और बढ़ा है. बायोपिक्स के साथ ही किसी घटना विशेष पर केंद्रित फिल्में बनाने का चलन तेजी से उभरा है. इसे मेकर्स अपने फायदे के लिए रियलिस्टिक फिल्में कहते हैं तो समीक्षक प्रोपेगेंडा फिल्म.
किस फायदे के लिए ‘फाइल्स’ बनाने की होड़
सबके अपने-अपने तर्क हैं. लेकिन एक सबसे बड़ी चीज है- मनोरंजन, जिसके लिए फिल्में सालों से बनती रही हैं. इस रियलिस्टिक बनाम प्रोपेगेंडा फिल्म के विवाद में सिनेमा के मूल तत्व मनोरंजन को ही भुला दिया गया. वह मनोरंजन जिसे कभी महान पारिवारिक और महान सामाजिक कहा जाता था. आज इसका परिवेश ही नहीं बल्कि इसकी परिभाषा भी बदल गई है. निर्माता-निर्देशक मनोरंजन कम संवेदना ज्यादा झकझोरना चाहते हैं. मेकर्स की ओर से इसमें सच दिखाने का दावा किया जा रहा है. ऐसी फिल्मों की लंबी सूची है. एक सोच बन गई है कि जितनी संवेदना झकझोरेंगे, जितनी हिंसा दिखाएंगे, जितनी नफरती भावना उड़ेलेंगे फिल्में उतनी ही बहस में आएंगी और संभव है- बॉक्स ऑफिस कलेक्शन उतना ही बढ़ेगा.
उदयपुर फाइल्स फिल्म पर क्या है विवाद?
उदयपुर फाइल्स के निर्माता-निर्देशक की क्या मंशा है, वे ही जानें. फिलहाल मैं उनकी चर्चा भी नहीं करुंगा. केवल यह बताने की दरकार है कि इस फिल्म की कहानी उदयपुर के कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित है. यह एक नृशंस हत्याकांड था, जिसकी भर्त्सना पूरे देश में हुई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पेशे से दर्जी कन्हैया लाल ने बीजेपी की एक नेता के एक विवादित बयान का समर्थन किया था और सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर की थी. इसके बाद कन्हैया लाल की हत्या कर दी गई थी. ये मामला काफी चर्चा में रहा और इसी दौरान सर तन से जुदा जैसे विवादित नारे ने भी सुर्खियां बटोरी. मामला पूरी तरह से सांप्रदायिक रंग ले चुका था.
अब डायरेक्टर-प्रोड्यूसर ने संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का सहारा लेकर इस घटना पर आधारित यह फिल्म बनाई. इस फिल्म में जाने-माने कलाकार विजय राज ने कन्हैया लाल का रोल निभाया है. विजय राज कई फिल्मों में कभी कॉमेडी तो कभी कैरेक्टर रोल निभा चुके हैं. जाहिर है फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा कि कन्हैया लाल हत्याकांड को केंद्र में रखकर यहां जो कहानी बुनी गई है, उसमें क्या-क्या है लेकिन ट्रेलर ने फिल्म पर से एक तरह से पर्दा हटा दिया है.
CBFC से 55 कट्स के बाद मिला सर्टिफिकेट
मेकर्स की तरफ से कहा गया कि पचपन कट्स के बाद सीबीएफसी से सर्टिफिकेट मिला. आपत्ति के बाद इसमें कई सीन हटाए गए. यह फिल्म सिर्फ सामाजिक अपराध पर आधारित है. लेकिन दूसरी तरफ याचिकाकर्ता की तरफ से इस फिल्म को समाज में वैमन्यसता बढ़ाने वाला बताया गया है. कोर्ट में इस पर कांवड़ यात्रा तक रोक लगाने की अपील की गई.
चलिए उदयपुर फाइल्स से बाहर निकलते हैं. वापस फाइल्स के प्रणेता फिल्ममेकर विवेक रंजन अग्निहोत्री पर आते हैं. गौरतलब है कि बॉलीवुड में इन दिनों फ्रेंचाइजी बनाने का चलन भी जोरों पर है. टाइगर फ्रेंचाइजी, मालामाल, हाउसफुल, भूल-भुलैया, स्त्री वगैरह ये सारे फ्रैंचाइजी हिट हैं. अक्षय कुमार का दुर्भाग्य कि उनका केसरी फ्रेंचाइजी नहीं बिक सका. लेकिन ये एक टोटका बन चुका है बॉलीवुड में फ्रेंचाइजी हिट होती है. इस होड़ में विवेक रंजन ने अपनी एक अलग ही फ्रेंचाइजी गढ़ी है.
फिल्म के बहाने सच सामने लाने का दावा
विवेक ने फाइल्स का टोटका पकड़ लिया. सबमें सच सामने लाने का दावा किया गया है. द कश्मीर फाइल्स के बाद उनकी फिल्मों के नाम पर गौर करें तो सबमें फाइल्स ही फाइल्स है. मससन- दिल्ली फाइल्स बनाम बंगाल फाइल्स. द कश्मीर फाइल्स साल साल 2022 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म साबित हुई. इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों का दर्द देखने के लिए देश भर के सिनेमा हॉल में दर्शक उमड़े. इससे उत्साहित होकर उन्होंने अगले ही साल दी कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड (The Kashmir Files: Unreported) नामक एक डॉक्यूमेंट्री बनाई. फीचर फिल्म में जो नहीं दिखा सके, उसे उन्होंने इस डॉक्यूमेंटरी में दिखाया. इसके बाद विवेक दी वक्सीन वॉर (The Vaccine War) के लेकर आए. शुक्र है कि इसमें उन्होंने फाइल्स शब्द नहीं जोड़ा.
विवेक अग्निहोत्री की अगली फिल्म दी बंगाल फाइल्स
अब उनकी एक और महत्वाकांक्षी फिल्म आने वाली है- जिसका नाम है- दी बंगाल फाइल्स (The Bengal Files). इस फिल्म का पहला नाम दी देहली फाइल्स-दी बंगाल चैप्टर था. लेकिन अब इसका नाम दी बंगाल फाइल्स है. इस फिल्म में भी दी कश्मीर फाइल्स के कलाकार मसलन- मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, पुनीत इस्सर, गोविंद नामदेव, पल्लवी जोशी नजर आएंगे. यह फिल्म इसी साल सितंबर में रिलीज प्रस्तावित है. देखना होगा कि यह फिल्म दी कश्मीर फाइल्स की तरह थिएटर में कितने लोगों को खींच पाती है.
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