NATO के कौन से देश पैसा खर्च करने में आनाकानी कर रहे? ट्रंप के हड़काने के बाद हड़कंप… – भारत संपर्क

फिर एक बार रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के लिए ताल ठोक रहे डोनाल्ड ट्रंप अपने दिलचस्प बयानों के कारण सुर्खियों में रहते हैं. आलोचकों और समर्थकों, दोनों को वे एक बयान देकर बझा (भोजपुरी का एक शब्द जिसका आशय है काम पर लगाना) देते हैं.
शनिवार को वे चुनावी रैली के लिए दक्षिण कैरोलिना में थे. इसी दौरान उन्होंने कह दिया कि अगर वह इस बार राष्ट्रपति बनते हैं तो पैसे नहीं देने वाले नाटो देशों के खिलाफ रूस को हमले के लिए प्रोत्साहित करेंगे. ट्रंप के बयान का सीधा मतलब है पहले पईसा निकालिए, फिर सुरक्षा पाइये.
ट्रंप ने ये कह कर 31 देशों के संगठन नाटो की असल जमापूंजी ही पर जैसे हमला कर दिया. फिर क्या, झट से संगठन के प्रमुख जेन्स स्टोलेनबर्ग को बयान जारी करना पड़ा कि चाहें कोई अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीते, यूएस नाटो का सहयोगी बना रहेगा.
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स्टोलेनबर्ग ने ट्रंप का नाम तो नहीं लिया लेकिन कहा कि इस तरह के किसी भी सुझाव से न सिर्फ अमेरिका बल्कि यूरोप के देशों के लिए भी सुरक्षा का संकट खड़ा हो जाएगा. उधर, व्हाइट हाउस ने तो ट्रंप के बयान को भयावह और अनुचित तक कह दिया. बाइडेन की भी प्रतिक्रिया इसी के आसपास रही.
सवाल है जिस पैसे और खर्च की बात ट्रंप कर रहे हैं, वह क्या है. नाटो का बजट कितना है. सभी सदस्य देश इसके मद में कितना खर्च करते हैं.
2 परसेंट का टारगेट, हीलाहवाली
नाटो के सदस्य देशो के बीच फंड का मामला काफी पुराना है. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद नाटो के देशों ने अपने रक्षा बजट में भारी कटौती कर दी थी. मगर 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया, इसके बाद यूरोप में ये देश सुरक्षा को लेकर नए सिरे से चिंता जाहिर करने लगे.
इसी साल नाटो ने तय किया कि सभी सदस्य देश एक दशक के भीतर अपने डिफेंस खर्चे को जीडीपी के 2 फीसद तक ले जाएंगे. अगले दस बरस में इस टारगेट तक पहुंचना था मगर नाटो के इस मिलिट्री फंड में पैसा खर्च करने पर इन देशों में हीलाहवाली दिखी.
2023 आ गया मगर 20 देश नाटो ने जो पुराना खर्च का टारगेट तय किया था, वहां तक नहीं पहुंच सके. पिछली बार, 2014 में जब नाटो ने पैसा-कौड़ी का हिसाब-किताब लगाया था तब तो क्रीमिया ही की बात थी. इस बार इनको यूक्रेन भी दिख रहा था.
यूरोप में एक देश है लिथुआनिया, इसकी राजधानी विनियस ही में पिछले साल जुलाई में नाटो का एक शिखर सम्मेलन हुआ. यहां सहयोगी देशों के बीच सहमति बनी कि सभी अपनी जीडीपी का कम से कम 2 फीसदी रकम मिलिट्री पर खर्च करेंगे ही.
कन्फ्यूज नहीं होना है. इस बार सहमति कम से कम 2 पर बनी, पिछली बार 2 तक ले जाने की बात हुई थी.
2014 में नाटो के केवल 3 देश डिफेंस बजट वाले टारगेट को पूरा कर पा रहे थे. ये संख्या 2022 में 7 देशों तक पहुंची और 2023 में कुल 11 देश ऐसा करने लगे. यानी 20 देश अब भी ऐसे हैं जो नाटो के मिलिट्री फंड में उतना पैसा नहीं दे रहें या फिर यूं कहें कि डिफेंस पर नहीं खर्च कर रहे जितना नाटो ने तय किया है. जाहिर सी बात है ट्रंप का इशारा इन्हीं 20 देशों की तरफ होगा.
11 देश जो अपनी जीडीपी का कम से कम 2 फीसदी बजट जीडीपी पर खर्च कर रहे हैं – अमेरिका, ब्रिटेन, हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया, फिनलैंड, ग्रीस, पोलैंड, एस्टोनिया, लिथुआनिया और लातविया.
20 देश जो अब भी जीडीपी के कम से कम 2 फीसदी बजट को डिफेंस पर नहीं खर्च कर रहें – बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, पुर्तगाल, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, नीदरलैंड, तुर्किये, जर्मनी, स्पेन, चेक रिपब्लिक, बुल्गारिया, स्लोवेनिया, अल्बानिया, क्रोएशिया, मॉटेनेग्रो, उत्तरी मेसेडोनिया
जीडीपी के कम से कम 2 फीसदी डिफेंस पर खर्च करने वाले टारगेट के डोनाल्ड ट्रंप बहुत पुराने हिमायती रहे हैं. 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि गठबंधन के सहयोगी अगर 2 फीसदी के टारगेट को पूरा नहीं करते हैं तो फिर अमेरिका नाटो की संधि से बाहर आ सकता है.
ट्रंप नाटो, यूक्रेन और पर्यावरण से लेकर और दूसरे मोर्चों पर अमेरिका के भारी-भरकम खर्चे पर सवाल खड़ा करते रहे हैं और बहुत हद तक कुछ को नाजायज बताते हैं.
NATO मिलिट्री बजट: किसका योगदान कितना
अमेरिका और जर्मनी नाटो के मिलिट्री बजट में सबसे अधिक योगदान देते हैं. संगठन के कुल फंड का 30 फीसदी से भी अधिक पैसा अमेरिका और जर्मनी ही के खाते से आता है. 2022 में अमेरिका ने नाटो के कुल मिलिट्री बजट का करीब 16 फीसदी खर्चा उठाया था जबकि जर्मनी ने भी लगभग 16 ही फीसदी ही नाटो को दिया.
इसके बाद यूके, फ्रांस, इटली, कनाडा, स्पेन, तुर्किये, नीदरलैंड, पोलैंड, बेल्जियम का योगदान रहा. इन 11 देशों के अलावा बाकी 20 सदस्य देशों का योगदान 2 फीसदी से नीचे रहा. यूके नाटो के मिलिट्री बजट का 11 फीसदी के करीब तो फ्रांस साढ़े 10 फीसदी और इटली 9 फीसदी के लगभग खर्च उठाता है.
वहीं, इन टॉप 5 देशों के अलावा कनाडा 7 फीसदी के करीब, स्पेन 6 फीसदी, तुर्किये 4.7 फीसदी, नीदरलैंड साढ़े 3 फीसदी, पोलैंड 3 फीसदी और बेल्जियम 2 फीसदी के लगभग नाटो का खर्च उठाता है. बाकी के सभी सदस्य देशों का योगदान कुल नाटो के मिलिट्री बजट का 2 फीसदी से भी कम है.
नाटो का सिविल, मिलिट्री बजट
नाटो ने 2024 में लगभग 2 बिलियन यूरो यानी 18 हजार करोड़ रूपये का मिलिट्री बजट तय किया. ये पिछले साल की तुलना में 12 फीसदी अधिक था. वहीं नाटो ने सिविल बजट का टारगेट इस साल करीब 438 मिलियन यूरो यानी 4 हजार करोड़ का रखा है. यह पिछले साल की तुलना में तकरीबन 18 फीसदी अधिक है.
सिविल बजट का इस्तेमाल नाटो के मुख्यालय, कर्मचारियों से जुड़े खर्च के काम आता है. साथ ही. नाटो जो शिखर सम्मेलन या और दूसरे कार्यक्रम आयोजित करता है, उसका पैसा भी इसी मद से जाता है. जबकि मिलिट्री बजट के जरिये दुनियाभर में जारी नाटो के मिशन और ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है.