कौन हैं केके मुहम्मद? जिनके सम्मान में राज्यपाल ने किया किताब का विमोचन

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कौन हैं केके मुहम्मद? जिनके सम्मान में राज्यपाल ने किया किताब का विमोचन
कौन हैं केके मुहम्मद? जिनके सम्मान में राज्यपाल ने किया किताब का विमोचन

राजभवन में बोलते आईपीएस विकास वैभव.

बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने केके मुहम्मद के सम्मान में ग्लिंपसेज ऑफ आर्ट एंड आर्कियोलॉजी ऑफ इंडिया एंड साउथ एशिया पुस्तक का विमोचन किया. इस दौरान कार्यक्रम में मौजूद आईपीएस अधिकारी विकास वैभव ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर अपना अनुभव साझा किया और कार्यक्रम की तस्वीरें भी शेयर कीं.

पटना राजभवन के दरबार हॉल में पद्मश्री पुरातत्वविद केके मुहम्मद के सम्मान में ‘ग्लिंपसेज ऑफ ऑर्ट एंड आर्कियोलॉजी ऑफ इंडिया एंड साउथ एशिया’ पुस्तक के विमोचन पर बिहार के राज्यपाल और उपस्थित इतिहासकारों, पुरातत्वविदों, विद्वानों को संबोधित करते हुए विकास वैभव ने कहा कि भारत के अनेक क्षेत्रों में केके मुहम्मद ने जो खोज की है वह अपने-आप में एक विरासत का रूप ले चुके हैं.

डकैतों से भी नहीं डरे केके मुहम्मद

उन्होंने कहा कि वैसे तो उनसे मेरी पहली मुलाकात नवंबर, 2019 में विक्रमशिला के अवशेषों के बीच हुई थी और उन्हें तब करीब से जानने का मौका मिला था.आईपीएस अधिकारी ने कहा कि हालांकि उसके बहुत पहले उनके विराट व्यक्तित्व से मेरा परिचय फरवरी, 2015 में ही हो चुका था जब मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण के लिए पहुंचा था.

तब मैंने जाना था कि अपराध से जूझ रहे चंबल क्षेत्र के ऐतिहासिक बटेश्वर मंदिर काम्प्लेक्स में बिखरे-पड़े अवशेषों का अध्ययन करते हुए 80 से अधिक मंदिरों के पुनर्निर्माण के क्रम में निर्भर सिंह गुज्जर समेत अनेक स्थानीय डकैत गिरोहों से जब उनका मिलना हुआ था तब भी वह घबराए नहीं थे और विरासतों के संरक्षण में उस तरह के लोगों को भी सहयोग के लिए उन्होंने प्रेरित करने का काम किया था.

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देश के सामने हमेशा सच को रखा

विकास वैभव ने कहा कि केके मुहम्मद के सहज व्यक्तित्व के कारण डकैतों ने भी उनका विरोध कभी नहीं किया और आज पूरा मंदिर परिसर उनकी गाथाओं का जीवंत प्रतीक बन चुका है. इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के अति-उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी विरासतों के संरक्षण के क्रम में उग्रवादियों से भी वह कभी नहीं डरे और अपना कार्य करते रहे. केके मुहम्मद की तारीफ करते हुए विकास वैभव ने कहा कि उनके विराट व्यक्तित्व में सबसे अधिक प्रेरणा सत्य के प्रति उनके समर्पण तथा अडिग भावों से मिलती है, हालांकि किसी भी परिस्थिति में वह सत्य से कभी विमुख नहीं हुए और बिना किसी भय अथवा पक्षपात के उन्होंने राष्ट्र के सामने हमेशा सत्य को ही रखा.

सामने आया राम जन्मभूमि का सच

1976 में वह प्रोफेसर बीबी लाल के कुशल नेतृत्व में रामजन्मभूमि, अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद क्षेत्र के जांच टीम में सम्मिलित रहे थे और जब विवाद के कारण पूरे देश में तनाव था, तब देश के सामने सभी तथ्यों को रखते हुए उन्होंने वहां विशाल प्राचीन मंदिर के अवशेषों के होने की पुष्टि की थी, जबकि तमाम इतिहासकार तथ्यों से परे बयान देकर देश को भ्रमित कर रहे थे. सरकारी सेवा में रहते हुए सत्य के प्रति ऐसा समर्पण अपने-आप में अत्यंत सराहनीय है.

अपने संबोधन में आईपीएस विकास वैभव ने आगे कहा कि विरासत में समाहित जिस असीम शक्ति का अनुभव केके मुहम्मद ने अपने लंबे कार्यकाल में किया था और जिसके कारण डकैतों और उग्रवादियों ने भी संरक्षण के कार्य में कभी अवरोध नहीं किया गया था, उसका साक्षात अनुभव मैंने भी बगहा और रोहतास के अपने कार्यकाल में किया था और उनसे मिलने पर उनके साथ साझा भी किया था, जिससे वह प्रभावित हुए थे. तब से हमारा जुड़ाव और गहरा होता चला गया था.

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अपराधियों और उग्रवादियों का आत्मसमर्पण

उन्होंने कहा कि बगहा, जिसे पत्रकारों ने मिनी-चंबल और अंग्रेज अधिकारियों ने कभी यूनिवर्सिटी ऑफ क्राइम कहा था. साथ ही रोहतास, जहां उग्रवादियों का अघोषित साम्राज्य स्थापित था. साल 2002 में डीएफओ, 2006 में डीएसपी और अनेक पुलिसकर्मी शहीद भी हो चुके थे. लेकिन यहां विरासतों में समाहित प्रेरणा के प्रसार से समाज में सकारात्मक परिवर्तन के भावों की उत्पत्ति हुई थी और जिसके बाद सभी अपराधियों और उग्रवादियों का आत्मसमर्पण संभव हो सका था, जिसे कभी असंभव माना जाता था.

आईपीएस ने आगे बताया कि पिछले चार सालों से Let’s Inspire Bihar अभियान में बिहार के भविष्य निर्माण के लिए लाखों बिहारवासी जुड़कर जाति-संप्रदाय, लिंगभेद और विचारों के मतभेदों से उपर उठकर योगदान दे रहे हैं.

किताबों में संरक्षित करना जरूरी

अपने संबोधन के अंत में विकास वैभव ने पुस्तक के दोनों संपादकों (गीता और ओपी पांडेय) को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि केवल एक ही फैलिसिटेशन वाॅल्यूम उनके कृतित्वों के अनुसार पर्याप्त नहीं है बल्कि पूरे भारतवर्ष सहित बिहार में भी केसरिया, राजगृह, वैशाली समेत अनेक स्थलों पर उनके कृतित्वों से जुड़ी गाथाएं अब ऐतिहासिक हो चुकी हैं. उन्हें किताबों में संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है. आईपीएस ने कहा कि आगे ऐसे अनेक अन्य वाल्यूम भी प्रकाशित हों, जिसमें संबोधित गाथाएं और संस्मरण भी सम्मिलित हों, इसके लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए.

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